Wednesday, December 11, 2019

चले जाओ

खिड़कियों से बुरे लोग आने लगे 
उनको अच्छे खाशे जब ताने मिले 
जिन्दगी के सबब हैं नहीं छूटते 

वो अपने आप ही अब मुस्कुराने लगे

" चले जाओ "

छोड़ कर चले जाओ 
मुझे कोई गुरवत नहीं 
मगर दिल के खातिर 
एक दुआ दे दो अभी 

मैं हूँ अकेला अकेला 
देखना अब तुम्हें है नहीं 
मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा हूँ 
ये अब न सोचना कभी 

क्या क्या मुझपे बीता 
कैसे कैसे हूँ मैं जीता 
फ़िकर हूँ करता नहीं 
खुल से मुँह मोड़ता नहीं 

       रचयिता
 शिवम अन्तापुरिया 
     उत्तर प्रदेश

दो अधिक रचना

चलो अब क्या बताएं हम
 यहाँ क्या होने वाला है 
किसी पर छाई मायूसी
 किसी को गम ने मारा है 
कहते लोग दुनियाँ में 
यही सब बोलबाला है 
सहेंगे जुर्म कब तक हम 
अगर ये होने वाला है 

शिवम अन्तापुरिया

तुम आए तो महफ़िल में शाम ए जान आ गई 
जिनके अब तक बन्द थे होंठ अब उनमें भी जान आ गई 

शिवम अन्तापुरिया

जिन्हें हम उठाने की कोशिश करते हैं 
वही मुझे गिराने की कोशिश करते हैं 

   शिवम अन्तापुरिया
जिन्हें हम उठाने की कोशिश करते हैं 
वही मुझे गिराने की कोशिश करते हैं 

   शिवम अन्तापुरिया

" सर्द हवाएँ "

यही तो ओस की बूँदे,
मुझे अवगत करातीं हैं 
नमीं कितनी है मौसम में 
सभी को ये बतातीं हैं 

   कहीं की सर्द हवाएँ 
सदा मुझसे ही मिलतीं हैं 
कहें क्या हम उनसे अब 
वो दुआ रब से करतीं हैं

कोई नफ़रत से जीता है 
कोई खुशियों में पलता है 
हिफ़ाजत मेरी करती है 
और मुझको ही डराती है 

    रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

" फ़ूल मेहँदी के "

आज फ़ूल मेहँदी के बने तेरे हाथों में थे
तुझे समझना जज्बात मेरे आंखों में थे 
जिन्दगी मिली है और गुज़र जायेगी 
साथ देना न देना फ़ैसले तुम्हारे दिल की अदालत में थे 

शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

मन भावन चित्र सुहावन 
   पावन दर्पण है 
तेरे मुखाड़े को देख 
मन प्रफ़ुल्लित है 
मन रीझ गयो तेरी 
सोभा पे है 
भूलना चाहे अगर शिवम 
तो तुझको भूल न पावत है 

शिवम अन्तापुरिया 
  उत्तर प्रदेश

Monday, December 2, 2019

याद इतना मुझे तुम नहीं कीजिए. भविष्य बताएगा

याद इतना मुझे तुम नहीं कीजिए 
आंख फ़ड़कें मेरी ऐसे न सताया कीजिए 
याद ज्यादा मेरी आए तुमको अगर 
इनकमिंग है शुरु काॅल कर लीजिए 

©®शिवम अन्तापुरिया

ये तो भविष्य बताएगा शिवम 
जब कफ़न में तिरंगा आएगा

शिवम अन्तापुरिया

शिवम यह तो भविष्य बतायेगा,

जब कफन में तिरंगा आयेगा।

काम न मोदी आयेंगे

दिल के अरमान दिल में छुपे रह गए 
प्यार के वास्ते वो बंधे रह गए 
कोई तो कहे 
           क्या कहे 
हम कहें 
             या वो कहे 
किसी के दिल 
           की बात यार 
हम क्यों कहें 
हम उसके कैसे हो जाए 
जब मुझे हज़म नहीं होता

बातें जो थीं छिड़ीं वो छिड़ीं रह गईं 
उनके चाहत की हस्ती सजी रह गई 
प्यार में हम नहीं इतने मशहूर थे 
जितनी बेवफाई मुझको सुर्खियाँ मिल गईं
©®शिवम अन्तापुरिया

काम मोदी नहीं योगी जी आयेंगे 
गाँव और वो गली में
 नहीं आयेंगे 
बात आयेगी इन्शानियत की अगर 
काम गाँव के ही इन्शान आयेंगे 

©®शिवम अन्तापुरिया

मुक्तक

बीतते शाम के रात आ जाएगी 
तुम आ जाओगे प्यास बुझ जाएगी 
ये तो सफ़र हैं कहाँ तक ले जाएंगे 
जिन्दगी क्या है तब समझ आयेगी 

 ताँका झाँका नहीं कीजिए 
जिन्दगी को खुशी से जी लीजिए 
आज हैं हम यहाँ कल कहाँ जाएंगे 
आप खुद से जरा ये सवाल कीजिए 

भारत के युवाओं 
एक बार हम जागे फ़िर ऐसे सुलाए गए 
कि अब तक जाग नहीं पाए हैं 

जय हिंद 

शिवम अन्तापुरिया

हम खुशी हो गए वो मौन हो गए 
 चलते चलते प्यार में ही उसके
मुझसे सारे रिश्ते खतम हो गए 

शिवम अन्तापुरिया

चल दिए हम सफ़र छोड़ करके सभी।
अपनी मन्ज़िल तक न पहुँचे थे अभी।।
" गीत "

1- छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- अब है जाना तुम्हें
 तो चले जाइए 
अब ये नज़रे न 
हमसे मिलाना कभी...

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- न ही हम दूर थे 
न ही तुम दूर थे 
एक दम क्या हुआ 
तुम बिखर से गए....

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- कोई दीवाना कहे 
कोई फ़साना कहे 
तुम मोहब्बत में 
कैसे जकड़ से गए...

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश


शिवम अन्तापुरिया

कल 28/11/19 को मध्य प्रदेश के अखबार राष्ट्रीय नवाचार में भी प्रकाशित लेख

किसान हित में 

पैदा होती बेरोजगारी

"पैदा होती बेरोजगारी"

हम निपट हैं रहे बेबशी से यहाँ 
रोज़ है पैदा होती बेरोजगारी यहाँ 
  जेबें खाली हुईं हार मानी नहीं 
जिंदगी है चिता बन रही अब यहाँ 

जेबें फ़ट भी जाएँ मलाल ही क्या 
कौड़ी है ही नहीं तो गिरेगी क्या 
बेरोजगारी से लड़ते लड़ते रहेंगे 
गर मर भी गए तो होना ही क्या 

हम तो बेकार हैं और लाचार हैं 
जिंदगी में सही अब मिले यार हैं 
जिंदगी जो बची वो गुजर जाएगी 
बस बचे अब मेरे काम दो-चार हैं 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

हम क्या करें

"हम क्या करें"

उनको खुद से ही 
फ़ुरसत नहीं है 
मुझे देखने की 
चाहत नहीं है 

अपने दिल के ख्वाब 
   सभी सामने रखने 
बिन पूछे ही बताने की 
   मेरी आदत नहीं है 

वो मानते ही नहीं 
   कि हम उनको 
     चाहते ही नहीं 
जबरन समझाने की 
है मेरी आदत नहीं 
बिल्कुल फ़ितरत नहीं 
सोच सकता नहीं 
क्यों वो मानता है नहीं 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

Friday, November 29, 2019

आज फ़िर लखनऊ के अखबार ठोस कदम अखबार में

किसानों के हित में सन्जीत सिंह sannii ji 
का आभारी हूँ 
लेख प्रकाशित करने के लिए 

न पता था

"न पता था"

ये क्या प्यार में था 
सही और गलत था 
  नज़रे मिली वो 
 तुम्हारा हुआ था 


  प्यार की राह में उसे न 
  दिन-रात का पता था 
  चल दिया है किधर वो 
  न इस राह का पता था 

न जात का पता था 
न पात का पता था 
कब हुए एक दूसरे के 
न इस बात का पता था 

    रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
   उत्तर प्रदेश

हैं रूकते नहीं

"हैं रूकते नहीं"

हारे हिम्मत अगर 
इस जहाँ में पुरुष 
देखकर मेरा मन 
पिघल भी जायेगा 

सोचता हूँ मैं कैसा 
इरादा होता है इनका 
दृढ़ और अटल सारे 
गमों को भुला जाएगा 

कितनी भी बड़ी हो संवेदना 
कितनी भी बड़ी हो वो वेदना 
पैर मर्दों के हैं रूकते नहीं 
हर दुखःड़ा कलेजे में समा जाएगा 
 
      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

अधूरा साथ

"अधूरा साथ "
 
जिन्दगी ये मेरी कोई शीशा नहीं 
खेलकर तोड़ दो है खिलौना नहीं 
वर्षों लगी हैं मुझे सजाने में इसे 
छोड़कर जाऊँ कोई है मकाँ नहीं 

  बेजह तुम बनें जिन्दगी यूँ रहे 
साथ मेरे करते खिलवाड़ क्यों रहे
 हम तो अकेले थे बनें रहने देते 
 अधूरा साथ मुझको देते क्यों रहे 
       
         रचयिता 
  शिवम अन्तापुरिया 
      उत्तर प्रदेश

राह कहाँ छोड़ी है

"राह कहाँ छोड़ी है"

आज छोटी उड़ाने गगन चूम लें
मिलकरके ऐसा एक संकल्प लें
जीत मिलती सदा उन्हीं को यहाँ 
जो अपने हौंसलों को दृढ़ कर लें 

लोग कहते हैं कर पाएगा ये क्या 
अपने जज्बातों को दिखा दो यहाँ 
भरा है क्या मेरे  दिल में  जुनूँन 
सफलता इन्हें भी दिखा दो यहाँ 

अभी काम व पहचान छोटी है 
शोहरत की गली थोड़ी छोड़ी है 
चलते जाएँगे बढ़ने की राह में 
सफलता की राह कहाँ छोड़ी है 

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
   उत्तर प्रदेश

Sunday, November 24, 2019

गीत

" गीत "

1- छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- अब है जाना तुम्हें
 तो चले जाइए 
अब ये नज़रे न 
हमसे मिलाना कभी...

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- न ही हम दूर थे 
न ही तुम दूर थे 
एक दम क्या हुआ 
तुम बिखर से गए....

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- कोई दीवाना कहे 
कोई फ़साना कहे 
तुम मोहब्बत में 
कैसे जकड़ से गए...

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

गजल

" गजल "

लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।

आग घर की हो या फ़िर सियासत की हों 
इनकी लपटों से हैं कोई बचता नहीं...

लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।

लोग रहते जमीं आसमाँ पर जो हों 
आज ख्वाबों में घर ऐसे बनते नहीं...

लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।

तुमको चाहने वाले भी अंजान हों 
ऐसी चाहत पे करना भरोसा नहीं... 

लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।

कोई बेकार है कोई लाचार है 
दिल के दर्दों को कोई समझता नहीं...

लोग इनको जला राख कर देते हैं।
 ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।

   रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

फर्ज है तेरा

"फर्ज है तेरा"

माँ-बाप के अपने अहसानों
को भुला तुम यू कैसे सकोगे 
पाला है जिसने खुद जागकरके 
उसको तुम कैसे रुला सकोगे 

है श्राध्द में पानी देना फर्ज़ तेरा 
  फर्ज़ से कैसे मुकर सकोगे 
पानी से बुझती है प्यास उनकी 
   प्यासा उनको कैसे रखोगे 

पूर्वजों की मर्यादाओं का 
सम्मान तुम्हारे हाथ में है 
उम्मीदें हैं उनको तुम्हारी 
पूरी उनको तुम्हीं करोगे 

       रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
      उत्तर प्रदेश

Saturday, November 23, 2019

आज राजस्थान के अखबार में प्रकाशित लेख किसानों के हित में

"धर्म संकट में किसान"  

सदियों पुरानी बात है जिस तरीके से किसान अपनी खेती करते आए हैं लेकिन आज उन पर इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं।
जिससे मेरा दिल व्यथित हो उठा और मेरी कलम लिखने को रुकी नहीं और लिख दिया मैं सवाल करता हूँ सरकार से कि क्या किसान पहले अपनी पराली नहीं जलाते थे या बचे हुए अवशेषों को नष्ट नहीं करते थे क्या जो आज इन पर प्रदूषण फ़ैलाने का एक अपराध उन पर किया जा रहा है जबकि मेरा मानना ये है कि साहब! 
ये प्रदूषण तो अमीरों की दिवाली से छाया है !
और इल्ज़ाम किसानों की पराली पर आया है !!

आप ही सोचे शहर में तो किसान अपनी पराली जलाने जाते नहीं हैं जिससे कि शहर में प्रदूषण फ़ैल व बढ़ रहा है फ़िर अगर खेतों से बना प्रदूषण शहरों में पहुँच सकता है तो क्या शहर का प्रदूषण जो शहर के बड़े -बड़े कारखानों की चिमनियों से निकलता है वो क्या किसानों की फ़सलों पर दुष्प्रभाव नहीं डाल रहा है जिससे किसानों के फ़सलो की पैदावार घट रही है। और हर फ़सलें कोई न कोई रोग से अवश्य ग्रसित हो रही हैं फिर भी 
किसानों की पैदावार की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया कि आखिर क्यों ये सब हो रहा है, लेकिन उनकी पराली को लेकर उन पर दोष मढ़ा जाने लगा कि ये प्रदूषण सिर्फ़ किसानों की देन है और आनन-फ़ानन में उनपर जुर्माना भी लगाने का नियम लागू कर दिया गया। जबकि राजनेता कितने नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं फ़िर भी उनपर कोई जुर्माना का नियम नहीं पास किया गया न ही कोई दण्ड दिया जा रहा क्योंकि वो सत्ता में आसीन हैं आखिर ये दुघाती नहीं तो और क्या है किसानों के द्वारा नियम को तोड़ने पर 2 एकड़ की पराली पर ₹ 2500/ और 5 एकड़ पर ₹ 5000/ और इससे भी ज्यादा एकड़ की पराली पर 15000-25000 ₹ का जुर्माना पास कर दिया गया लेकिन ये नहीं सोचा सरकार ने कि इस साल अधिक बारिश की वजह से फ़सले 75% नष्ट हो गई हैं अगर वो जलाए न तो क्या करें जब उसमें लागत व मज़दूरों की मज़दूरी भी नहीं निकल रही है फ़िर वो ये जुर्माना कैसे भरेंगे या सरकार के डर से नुकसान को भूल जाएं और घर से पैसा लगा कर पराली को एकत्रित करें ।
ये बहुत बड़ा धर्म संकट है किसानों के सामने जिससे वो कैसे उबरे l 
एक बात और अगर किसानों की पराली से ही प्रदूषण फैल रहा है तो फ़िर किसानों के क्षेत्र यानी उनके गांवों में प्रदूषण क्यों नहीं दिख रहा है ।

  लेखक/कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

छन्द चाटुकारता

जो दिन रात रहते हैं 
चाटुकारिता के बस में
 उनको तो न्याय में 
भी अन्याय चाहिए, 
सच का लिबास
 ओढे रहते हैं झूठवादी 
उनको तो प्रकाश में 
भी अंधकार चाहिए,
बात हो भले ही 
अपने देश की 
मगर उनको तो 
हर जगह सियासत 
का खेल चाहिए,
हम तो कहते हैं अब 
निडर होके अब 
ऐसे झूठे देशभक्तों 
को मौत देनी चाहिए,

शिवम अन्तापुरिया

सियाचिन में जवान शहीदो को समर्पित

विनम्र #श्रद्धांजलि 💐🇮🇳🙏
   #सियाचीन के #बर्फीले #तूफान से लड़ते हुए हमारे जवान #शहीद हो गए, बहुत ही #दुःखद 🙏 कानपुर सिकन्द्रा से #शिवम_अन्तापुरिया अपनी #पंक्तियों से अपने जवानो को #विनम्र #श्रद्धांजलि 💐🇮🇳🙏


लोग घर में रजाई थे ओड़े पड़े 
वो सियाचिन में आंखे थे खोले खड़े 
 वो तो शहीद शान से हो गए  
वो तो भारत के अनमोल सम्मान थे 
वो तो बर्फ़ो की चट्टानें पिघला गए 
बर्फ़ जमती रही वो पिघलते रहे 
दिल के अरमान तूफ़ाँ से लड़ते रहे 
भारत माँ की गोद में हैं सो गए 

#शिवम_अन्तापुरिया
 #शहीदों के प्रति नम आँखों से #श्रद्धांजलि अर्पित करता है 💐
   🇮🇳💐🇮🇳-------->
"

किसी और के

"किसी और के"

हम चाटुकारिका हैं करते नहीं 
     जिन्दगी ये है अपनी
       कोई गैर की नहीं 
       वो होंगे जो इशारे 
     पर तुम्हारे चलते होंगे,

हम नहीं हैं कठपुतली
 कोई लकड़ी की 
जो नाचे हम तुम्हारे 
इशारे पर उंगली की

देश के समाज को जो 
   खोखला हैं कर रहे 
  वो दूसरों के पैरों में 
सुशोभित खुद को कर रहे 

काम सब वो कर रहे 
   इशारे किसी और के 
     रचे उत्पात सारे उनके 
सिर रखे जाते किसी और के 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

Friday, November 22, 2019

तेरे काबिल नहीं

ये मोहब्बत शिवम तेरे काबिल नहीं...
लोग करते हैं सज़दा होते शामिल नहीं...
जिन्दगी अब वज़ह बेज़ह है बनी ...
प्यार करके उसे चैन मिलती नहीं... 

शिवम अन्तापुरिया

Thursday, November 21, 2019

सर्दी की बात

"सर्दी की बात"

कट-कट-कट-कट 
बज़ते दाँत 
करने न देते हैं बात 
ये तो है
भाई सर्दी की बात 
अब तो हैं सर्दी के राज़ 
इनसे लड़ने की न 
करना बात 
कहीं मचा न दे ये उत्पात 
कहीं कोहरा का है बवाल 
कहीं है जनजीवन बेहाल 
गाँव-शहर के गलियारों में 
चलती बस सर्दी की बात 
ऊनी और मखमली कपड़े 
     देते हैं सर्दी को दाद 
भैया ये तो है सर्दी की बात 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
     उत्तर प्रदेश

खत्म संकल्प-प्रतीक्षा

"खत्म संकल्प-प्रतीक्षा"

कब तक भारत की माताएँ 
पीढाओं को सहती जाएंगी 
होते उनपर अनाचारों को 
अनदेखा वो करती जाएंगी 

बहुत हुए संकल्प-प्रतीक्षा 
अब वो न रुकने वाली हैं
ईटों के जवाब अब वो 
पत्थर से देने वाली हैं 

ये भरत भूमि है भारत की 
जो नारी शक्ति कहलाती है 
हिल जाते हैं पैर सभी के 
जब वो लक्ष्मी, अवन्ती,
अहिल्या बनकर धरती 
  पर अपना साहस 
      दिखलाती हैं 

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

Saturday, November 16, 2019

उठे जो हाथ हैं

"उठे जो हाथ हैं"

पुरानी परम्परा को 
जिन्दा रखना मेरा 
    रिवाज़ है 
खुशियों का इज़हार 
करना होता नेग है 

रिश्तों को मजबूत 
  अगर रखना है 
तो लोक रिवाज़ को 
जीवित रखना है 

किसी की मदद को 
  उठे जो हाथ हैं 
उन्हीं को प्यार से नाम 
 देते हम व्यवहार हैं 

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

घट गया पौरुख

"घट गया पौरूख"

  वो सफ़र था सुहाना 
   जब शरीर में भरपूर 
     चेतना थी हमारे 
    घट गया है पौरुख 
    ये शरीर हुआ अब 
       तुम्हारे हवाले ।

डर लगता है बुढ़ापे से 
दबा दबा सा रहता हूँ 
कहीं बुढ़ापा बिगाड़ न दें 
ये नए खून के दीवाने ।

आजकल बुजुर्गों के हाल 
बद से बदतर हो जा रहे हैं 
दुतकारते हैं बेटे माँ-बाप 
को ऐसे परिणामों का डर 
पल रहा है दिल में हमारे ।

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

उठे जो हाथ हैं

"उठे जो हाथ हैं"

पुरानी परम्परा को 
जिन्दा रखना मेरा 
    रिवाज़ है 
खुशियों का इज़हार 
करना होता नेग है 

रिश्तों को मजबूत 
  अगर रखना है 
तो लोक रिवाज़ को 
जीवित रखना है 

किसी की मदद को 
  उठे जो हाथ हैं 
उन्हीं को प्यार से नाम 
 देते हम व्यवहार हैं 

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

बात अपनो की

बात अपनों की तादाद बढ़ जाएगी 
बात मंदिर-मस्जिद की आ जाएगी ।
बीच में ये सियासत जो आती रही
बात हिन्दू-मुसलमाँ पे रूक जाएगी ।।

शिवम अन्तापुरिया

Saturday, November 9, 2019

गुणी विज्ञान है

"गुणी विज्ञान है"

बाल मन बाल हठ को 
पहचानना मनोविज्ञान है 
बाल बच्चों के दिमाग में 
  बस रहा है विज्ञान है 

बाल मन की बाल उम्मीदें 
   छू रहीं आसमान है 
इन उम्मीदों से ही आता 
  जमीं पर आसमान है 

बाल मन की कुछ आदतें 
    कर रहीं हैरान हैं 
क्या पनपतीं हैं सभ्यताएँ 
समझ सके जो इसे वही 
    गुणी विज्ञान है 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

Friday, November 8, 2019

सुर्ख आते रहे

सुर्ख आते रहे, सुर्ख जाते रहे 
हम जहाँ थे वहीं,मुस्कुराते रहे 

©® शिवम अन्तापुरिया
ख्वाब हैवान थे या नशेवान थे 
जिन्दगी के सबब से परेशान थे 
देखकर हाल उनका तो ऐसा लगे 
वो तो इन्शानियत के सैतान थे 

शिवम अन्तापुरियाख्वाब हैवान थे या नशेवान थे 
जिन्दगी के सबब से परेशान थे 
देखकर हाल उनका तो ऐसा लगे 
वो तो इन्शानियत के सैतान थे 

शिवम अन्तापुरियानौका मध्य धार में
और उसपार तुम हो
मिलन है अधूरा
कैसे मिलन हो

भंवर बीच फंस गई
है कस्ती हमारी

कोई न खेवाईया
आसरा अब तुम्हीं हो

शिवम अंतापुरिया

बदले नियम

"बदले नियम"
उम्र बढ़ती गई और बदल गए नियम
भाई भाई न समझे ये हैं नियम
था जमाना कि एक साथ खाते थे हम 
सोच में अब तो सबके जहर घुल गया 
तन्हा-तन्हा से अब तो रहते हैं हम 
याद उनको आती नहीं या सताती नहीं 
ये सोचकर है मुझे नींद आती नहीं 
वो जिंदगी के जख्म बन चुके हैं अब 
नासूर बनते उन्हें देख सकते नहीं हम 


शिवम अन्तापुरिया

डुबाया किसने

"डुबाया किसने"

विचरण है ये विहंगम है 
रात दिनों भर बहती रहती 
    यही है प्रेम का संगम है 
  कल-कल छल-छल 
करती बहती रहती कभी 
       न रुकना ही जीवन है ।

 पावन जल अर्पण करना 
ही दुनियाँ को ये मनोरम है 
जो रिश्ता है रात से इसका 
वही रिश्ता दिन से हरपल है ।

नदी को है डुबाया किसने 
पानी को है भिगाया किसने 
दुनियाँ की हर बुराई को लेकर 
  पानी रहता सदा ही निर्मल है ।

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

Wednesday, November 6, 2019

मेरा चौथा सम्मान

हिन्दी साहित्य अँचल मंच अररिया बिहार के कवि सम्मेलन में शिवम अन्तापुरिया को सम्मानित किया गया 

दैनिक जागरण अखबार में प्रकाशित मेरी रचना


समस्याओं ने मुझे 
  इस भाँति घेरा 
रात सा दिन हो गया 
   शाम सा लगने 
     लगा सवेरा 

न डरा और न रुका 
  मैं चल दिया हूँ 
   उससे लड़ने अकेला
थामा जो साहस का दामन 
    तो बढ़ गया 
   हौंसला फिर मेरा 

कील कंकड़ पत्थरों ने
  रोकना चाहा मुझे 
रूक सका न मैं कहीं 
मैं डरा अंधकारों से नहीं 
   हो गया है कारगर
जब सारी दुनियाँ से 
 हूँ जंग मैं लड़ा अकेला 

साथ हैं अब भी मेरे 
  समस्याएँ जैसे 
मानों उन्होंने ही 
हो पाला मुझे 
लगकर गले चल
 रही हैं ऐसे 
मानों अपना ही 
घर समझा है मुझे 

रचयिता 
कवि शिवम अन्तापुरिया 
उत्तर प्रदेश

मेरा तीसरा सम्मान

यु़वा साहित्य संगठन के आयोजन में होने वाले कवि सम्मेलन में शिवम अन्तापुरिया को सम्मानित किया गया 

मेरा दूसरा सम्मान

सीहोर मध्य प्रदेश के कवि सम्मेलन में शिवम अन्तापुरिया को "नई कलम सम्मान" सम्मानित किया गया 

साहित्य संगम संस्थान पर प्रकाशित

फ़िल्मो में आजकल 
अश्लीलता आ गई 
  लाज़,इज्ज़त सब 
  बँध कर रख गई 

फिल्मों में सारी 
हदें पार हो गई 
मर्यादाएँ सारी 
खण्डित सी हो गई 

लोग करने लगे 
फुल्लहड़ गीतों 
का भरोसा 
ज्ञान की गीता 
बंद रखी रही 

रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

छठ़वा सम्मान मिला

हिन्दी साहित्य अंचल मंच संयोजक में सम्मानित किया गया 

मेरा सातवाँ सम्मान

singing star समूह में हुए कवि सम्मेलन में मुझे ये सम्मान से सम्मानित किया गया जो कि मेरा सातवाँ  सम्मान है 

गीत ~लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।

" गीत "

लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।

जिंदगी फ़लसफ़ा,चलती जाती सदा 
लोग मौकों पर,इरादे बदल लेते हैं 

लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।

हम इरादों से अपने, न पीछे हटें 
लोग डरते हैं,वहाँ हम लड़ लेते हैं 

लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।

कुछ इरादे सबब में हैं पिघले हुए
हम बरफ़ की तरहा जम लेते हैं 

लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।

शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

"लिखकर भूल गए"

"लिखकर भूल गए" 

याद में तेरी बहुत 
कुछ लिख डाला 
मगर भेजने से ही 
पहले जला डाला 

तेरे प्यार में हमने 
बहुत जख्म पाए 
जिनपर आज है 
हमने पर्दा डाला 

दूर-दूर तक खोजा 
है तन्हाई  में ढूँढा 
जिसने है फिर मेरे 
जख्मों को कुरेदा 

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

"तुम मिले तो"

"तुम मिले तो"

मिले तुम जहाँ पर 
 सफ़र एक नया 
  शुरू हो गया 
मिलन हम दोनों का 
एक पर एक ग्यारह 
    सा हो गया 

हम एक अकेले थे 
  तुम मिले तो 
मेरा प्रभाव दस 
 गुना सा हो गया 

 बिना इज़ाज़त के 
तुम्हारे अब तो चलना 
   मुश्किल हो गया 
नए मिलन से तुम्हारे 
    नए लक्ष्य से 
मुकाबला हो गया 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

"गुमशुदा हो गए"

"गुमशुदा हो गए"

बिन कहे चल दिए 
वो प्यार के रास्ते 
  बन गए अनकहे 
रिश्ते प्यार के वास्ते 

  नाम दे न सके 
   ऐसे रिश्ते बने 
चलते हुए अजनबी 
   पथिक हम बने 

गुमशुदा वो हो गए 
  रिश्ते की राह में 
बाद वर्षों मिले तो 
वो शादीशुदा हो गए 

नाम देने से पहले 
वो बेनाम हो गए 
हम अधूरे-अधूरे 
से पैगाम हो गए 


शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

जख्म भर जाएंगे

गज़ल 

"जख्म भर जाएंगे"

प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।

प्यार की राह में, हम भटकते रहे 
प्यार ही प्यार में,हम तड़पते रहे 
जख्म लाखों मिले वो भी भर जाएंगे 

प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।

हम उसी राह पर हैं,अब भी खड़े 
दिल हमारे-तुम्हारे, फ़िर से मिल जाएंगे 

प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।

याद ही याद में उनकी यादें बनें 
बिन तेरे प्यार में हम बिखर जाएंगे 
तेरे खातिर हम जग उलझ जाएंगे 

प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।

शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

संवेदना का अकाल

विषय -संवेदना का अकाल 

वो हर ओर नज़र आते हैं 
संवेदना व्यक्त करते जाते हैं 

संवेदनाएँ कम पड़ती जाती हैं 
इतने संवेदना के अवसर आते हैं 

सड़क,चौराहे,गलियारे पर भी  
संवेदनाओ के अम्बार नज़र आते हैं 

कैसी दुर्दशा हो रही देश की 
इसके अन्ज़ाम नज़र आते हैं 

    रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

प्यार की भूमि वर्षों से सूखी पड़ी..

प्यार की भूमि वर्षों से सूखी पड़ी...
फसलें उगती नहीं भूमि बंजर पड़ी...
प्यार में थी तेरे उऱर्वरा की कमी...
फिर क्यों कहते हो खेती से उन्नत नहीं 


पल भर ही मैं लिखता हूँ...
कुछ ऐसी मेरी 
कहानी है...
आँख उठाकर देखो तुम...
तो दर्द से सजी कहानी है... 

शिवम अन्तापुरिया

अधूरा इश्क है तेरा 
हमारा नाम लो चाहें
मैं तुझसे हार करके भी 
तुझको हार पहनाऊँ

कोई चाहत में मुझको 
खोजकरके 
गुम हो जाता है 
मैं हूँ प्रेम का तिनका 
प्रेम में बहता जाता हूँ..


इश्क के हिस्से में उनके हिस्से बनें 
आजकल प्यार के मेरे किस्से बनें 
छोड़कर मुझको कैसे जाओगे सनम
प्यार के हम तुम्हारे सितारे बनें



लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
मन्ज़िल अपनी चलने कोई और नहीं आयेगा 
इस दुनियां में गिराने वाले बहुत हैं
उठाने कोई नहीं आयेगा 


प्यार की भूमि वर्षों से सूखी पड़ी...
फसलें उगती नहीं भूमि बंजर पड़ी...
प्यार में थी तेरे उऱर्वरा की कमी...
फिर क्यों कहते हो खेती से उन्नत नहीं 

शिवम अन्तापुरिया

खिल गए

"खिल गए"

कुछ पल बीते 
कुछ लब बीते 
बीत गई अब 
वो सारी जीतें

बीती रात आज 
  फ़िर वो थी 
    खिल गए वो 
जैसे कमल दल थे 

उनके भी चेहरे 
आ खिल गए 
जिनके माथे पर 
बनी सिलवटें थी 

खुशहाल माहौल 
   था जब घर में 
तब उसने दस्तक दी 
स्वागत के खातिर 
उसके न्योछावर सारे 
    कमल दल थे 

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

Saturday, November 2, 2019

उनकी पहचान थे

"उनकी पहचान थे"

साथ के सफ़र में हम 
 उनसे अनजान थे 
प्यार की राह में हम 
उनकी पहचान थे 

चलते चलते वो 
   चलते गए 
हम यादों में उनकी 
   बसते गए 

साथ जीने-मरने 
की उम्मीद लेकर 
साथ उनके कदम 
हम भी रखते गए 

शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

Thursday, October 31, 2019

नज्म

नज़्म 
"हम तो आज़ाद हैं"
  
हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैंं -2

बंदिशों से सदा उनकी लाचार हैं 
उनको लगता सदा हम तो बेकार हैं 
छोड़ दी हमने अब तलवार है
बन गई अब कलम मेरी पतवार है

हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं -2

लिखते लिखते नहीं हाथ थकते मेरे 
देश पर मेरा लिखने का अधिकार है 

हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं -2

देखकर लोग कहते हैं आवारा है 
 ये तो आवारा है -3, ये तो क्वाँरा है 
धड़कने उनके दिल की हैं बढ़ने लगीं 
फिर से कहने लगे वो तो बेचारा है
वो तो बेचारा है वो तो बेचारा है 

हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं -2

नज़्म 
"हम तो आज़ाद हैं"
  
हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैंं -2

बंदिशों से सदा उनकी लाचार हैं 
उनको लगता सदा हम तो बेकार हैं 
छोड़ दी हमने जबसे तलवार है
बन गई अब कलम मेरी पतवार है

हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं -2

लिखते लिखते नहीं हाथ थकते मेरे,
देश के मेरे हालत भी बर्बाद है,
मुझको लिखने का पूरा अधिकार है 

हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं -2

देखकर लोग कहते हैं हमारा हमें
कई लोगों की नफरत ने मारा हमें,
हम बने हैं अभी तक जो सिरताज हैं,
हम तो आजाद हैं–2

उनको लगता अभी भी हम आवारा है 
 ये तो आवारा है -3, ये तो क्वाँरा है 
धड़कने उनके दिल की हैं बढ़ने लगीं 
फिर से कहने लगे वो तो बेचारा है
वो तो बेचारा है वो तो बेचारा है 

हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं -2


~ शायर शिवम अन्तापुरिया


~ शायर शिवम अन्तापुरिया

कलम की पतवार हो

अपनी जिन्दगी में कलम को पतवार बनाओ या अब
हाथों में तलवार उठाओ 
फ़ैसला समझ कर ही करें 


अब दुनियाँ को सुधारने के लिए हाथों में तलवार नहीं 
हाथों में कलम की पतवार होनी चाहिए

शिवम अन्तापुरिया 

दिल के करीब

"दिल के करीब"

कुछ रिश्ते बहुत

 अजीब होते हैं 

जो दिल के बहुत ही 

करीब होते हैं 

कभी उनसे दूर 

नहीं रहा जा सकता 

साथ रहने वाले 

खुशनसीब होते हैं 



जिंदगी हमसफ़र बनकर 

यूँ ही निकल पड़ती है 

कोई साथ दे या न दे 

वो अकेले ही अपने 

लक्ष्य को भेद सकती है 



न सफर तय था 

न मंजिल पता थी

वो रिश्तों की डोरी 

    से बँधा था 

न इसकी खबर थी 



  रचयिता 

शिवम अन्तापुरिया 

     उत्तर प्रदेश

Tuesday, October 29, 2019

किस किस को सुनाए

किस किस को सुनाए ये दर्द अपने हम 
बेदर्द है जमाना जो ये ढाए है सितम 

 वो कायर नहीं जो पलट जाएंगे 
हम तो शायर हैं बात कह जाएंगे ...
जिंदगी है मेरी मौत से भी डरती नहीं 
सच के खातिर मौत से भी लड़ जाएंगे ...

-@OshayarShivam

मुझसे badmaashiya

लिखते गए अपनी खामोशियाँ 
लोग करते रहे मुझसे बदमाशियाँ

न जाने क्यों लोग मुझे बदनाम करने की कोशिसें व साजिशें रचा करते हैं 
मुझमे ऐसी गलती क्या है 
खुद ही खुद में खोजा करते हैं 

शिवम अन्तापुरिया

हिन्दी साहित्य अँचल मंच से शिवम अन्तापुरिया को सम्मानित किया गया

 हिन्दी साहित्य अँचल मंच  अररिया बिहार से आयोजित कवि सम्मेलन में शिवम अन्तापुरिया को 
"हिन्दी साहित्य अँचल"  सम्मान दिया गया २१/१०/२०१९ को 

पराए हो गए

हर थककर बैठ गए होंगे 
जब वो उससे मिले होंगे 



मेरी ये तो अल्हड़ जवानी नहीं है 
तेरी चाह की ये दीवानी नहीं है 
समझ आयेगा प्यार में तुझको जब तक 
भरी महफ़िल कहने के लायक वो कहानी नहीं है 


सभी की बातों को मैं 
सत्यता के घेरे में रखता हूँ 
कौन कितनी देर टिकते हैं 
बस ये देखता हूँ

उनके खट्टे-मीठे बोलो को हम सह लेते हैं 
मतलब ये नहीं कि हम उनको डरते हैं 
बस यही फ़र्क है उनकी मेरी शैली में 
क्योंकि हम तो अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं

हम तो उनके होके भी पराए हो गए 
खून के भी रिश्ते 
अब पराए हो गए 
लोग कहते हैं"""
कि अपने अपने अपने होते हैं 
अब यहाँ तो अपने भी गम के साए हो गए

शिवम अन्तापुरिया 

शिवम अन्तापुरिया साहित्यक लेफ़्टिनेन्ट अवार्ड से सम्मानित (मेरा पाँचवा सम्मान)

स्टोरी मिरर  महाराष्ट्र  मुम्बई  से साहित्य जगत में  लेखन के लिए  Literary Lieutenant से नवाज़ा गया है  
भारत से लेकर देश-विदेश के अखबारो में प्रकाशित होती रहती हैं रचनाएं, कहानी, लेख और भारत की बात की जाए तो प्रतिदिन चार से पाँच राज्यों के अखबारों में इनकी रचनाओं स्थान दिया जाता है, विदेश में भी इनकी रचनाओं को वाही वाही मिल रही है जैसे माँ पर आधारित रचनाएँ "हिस्से में माँ", "खूब खेला है", मानव के जीवन पर "समस्याओं ने घेरा" इस रचना को दैनिक जागरण अखबार से लेकर भारत के सभी बड़े अखबारों में जगह दी गई और यहाँ तक कि विश्व का सबसे बड़ा काव्य संग्रह "बज्म ए हिंद" में भी प्रकाशित की गई है। 
सम्मानों की बात की जाए तो महा कवि के हाथों सम्मानित, कई कवि सम्मेलनों में साहित्यक सम्मान और मुम्बई महाराष्ट्र के स्टोरी मिरर ने "लेफ्टिनेंट साहित्यक"अवार्ड से नवाजा, हिन्दी साहित्य अँचल मंच अररिया से दो बार सम्मानित, मध्य प्रदेश सीहोर से सम्मानित, युवा साहित्य संगठन से सम्मानित 
शिवम अन्तापुरिया का एक काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है राजमंगल प्रकाशन से "राहों हवाओं में मन" 
Shivamantapuriya.blogspot.com पर इनको 
बिल्कुल मुफ़्त में पढ़ सकते हैं आप Twitter.com/oshayarshivam 

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YouTube.com/shivamantapuriya

लोग प्यार से प्यार करते हैं फ़िर मौत से क्यों डरते हैं

सही था गलत मैं गलत हो गया हूँ 
अब खुद ही खुद की जिंदगी से 
         अलग सा हो गया हूँ

लोग प्यार से प्यार करते हैं 
फ़िर मौत से क्यों डरते हैं

किसी की तपन और ठण्डक से
 जमता-पिघलता रहता हूँ 
ऐसा कब-तक (कमज़ोर) चलेगा (समाप्त)
ये देखता हूँ 

न जाने क्यों लोग मुझे
 बदनाम करने की 
कोशिसें व साजिशें रचा करते हैं 
मुझमे ऐसी गलती क्या है 
खुद ही खुद में खोजा करते हैं 

लिखते गए अपनी खामोशियाँ 
लोग करते रहे मुझसे बदमाशियाँ

शिवम अन्तापुरिया 

Sunday, October 27, 2019

दीपावली पर पूरे देश के अलग अलग अखबारो में प्रकाशित मेरी रचनाए

27/10/2019 दीपावली

एक दीप जलाओ ऐसा सारी
   दुनियाँ में फैले प्रकाश 
   भरत भूमि के दीपों से
जगमगा उठे पावन आकाश  

आपको भी 💐💐💐
  सुख,समृद्धि,वैभव से 
भरा रहे आपका परिवार 
सुख शान्ति से गुज़रे 
  दीपावली का त्योहार 

रोशन हो घर 
साफ़ हो मन 
निरोग हो तन 
सद्भाव और शांति 
के साथ मिलकर 
इस दीवाली को 
मनाएँ सब जन

शिवम अन्तापुरिया 

दीपावली 27/10/2019

"जीत का त्योहार"

दीप घर घर में जले 
फ़ैला चहुँ ओर उजियार 
हँस कर सब गले मिले 
ये है खुशियों का त्योहार 

राम-रावण युद्ध हुआ 
  बहुत तेज़ तर्रार 
श्री राम की जीत पर 
खुशियाँ बढ़ी अपार 

देश-परदेश से सब आ रहे 
अपने घरों में मनाने त्योहार 
एक निशानी है और भी ये 
बुराईयों पर अच्छाई की 
   जीत का त्योहार 

चलो मनाए हम सब मिलकर 
पावन खुशियों का त्योहार 

   कवि/लेखक 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

राम राज लाने के चक्कर में

राम राज लाने के चक्कर में 
हम दैत्य व जंगल राज बना बैठे।
जो खुद को नहीं संभाल पाए 
हम उनको उत्तर प्रदेश थमा बैठे।।

कुछ आदते मानव को खराब बना देती हैं 
तो कुछ आदतें ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को महान बना देती हैं 
शिवम अन्तापुरिया

लेख

आपको भी 💐💐💐
  सुख,समृद्धि,वैभव से 
भरा रहे आपका परिवार 
सुख शान्ति से गुज़रे 
  दीपावली का त्योहार 

शिवम अन्तापुरियामुझपर बहुत दबाव रहता है 
जिंदगी का लगता रोज़ भाव रहता है 
किस किस किसके हो जाएं हम 
  साहब! चुनाव में तो हर नेता का 
        प्रभाव होता है 

~ शिवम अन्तापुरियारोशन हो घर 
साफ़ हो मन 
निरोग हो तन 
सद्भाव और शांति 
के साथ मिलकर 
इस दीवाली को 
मनाएँ सब जन

@OshayarShivamजारी है कोशिश अभी 
आगे बहुत बाकी है 
चलते जाना लक्ष्य है 
मन्ज़िल अभी बाकी है 

शिवम अन्तापुरिया

योगी जी

योगी जी 
तुम्हारी नजरों को हमने देखा 
बदल तुम्हारी नियत रही है

  हर खेत और खलिहानों 
पर गाय माँ अब भटक रही है 
हर शहर के चौराहे पर 
जनता सवाल तुमसे कर 
अब रही है 

योगी जी 
तुम्हारी नजरों को हमने देखा 
बदल तुम्हारी नियत रही है

हमारे प्रदेश की भी ये इज़्ज़त 
बेइज़्ज़त सी अब हो रही है 
दैत्य,दानवों की क्षमताएँ 
मानवता का हनन कर रही हैं 

योगी जी 
तुम्हारी नजरों को हमने देखा 
बदल तुम्हारी नियत रही है

अपराधियों और अन्यायियों की
  तादाद बढ़ती भी जा रही है 
गर सच्चाई चौथा स्तम्भ कह दे 
तो पुलिस उसका भी
एनकाउंर कर रही है 

योगी जी 
तुम्हारी नज़रो को हमने देखा 
बदल तुम्हारी नियत रही है

शिवम अन्तापुरिया

चलो

चलो हम सब आज मिलते हैं 
गम के दो-दो हाथ जड़ते हैं 
~ ©®शिवम अन्तापुरिया

राम राज के चक्कर में

राम राज लाने के चक्कर में 
हम दैत्य व जंगल राज बना बैठे।
जो खुद को नहीं संभाल पाए 
हम उनको उत्तर प्रदेश थमा बैठे।।

कुछ आदते मानव को खराब बना देती हैं 
तो कुछ आदतें ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को महान बना देती हैं 
शिवम अन्तापुरिया

देश हमारा भारत है 
सच कहना मेरी आदत है
देश में बढ़ते अत्याचारों से
योगी जी मुख मोड़ना 
    तुमपे लानत है 


 ~ शिवम अन्तापुरिया

रचाओ खूब तुम षड्यन्त्र,
  हम सारे काट जाएंगे ...
विरासत की लड़ाई को,
सफ़ल हम जीत जाएंगे ...
तुम पैतृक भूमि मेरी को, 
दबाना गर जो चाहोगे...
 हम खौलते लहू में अपने 
दफ़न तुमको करायेंगे ...

शिवम अन्तापुरिया

Thursday, October 24, 2019

शायरी 23/10/2019

सब लोग ही कच्ची दीवारों से 
निकल कर बाहर आए हैं 
   सभी के पुरखा कोई 
    फ़र्श पर थोड़ि पले हैं 

कुछ इश्क ज़ादे मेरे यारों को 
बेवफ़ाई के जख्म दिए बैठे हैं 
और हम... उन्हीं पर आश लगाए बैठे हैं 


आज मेरे यार ज़ाम के ऊपर 
ज़ाम के ऊपर ज़ाम पिए बैठे हैं 
और हम हैं कि उन्हीं अपनाए बैठे हैं 


चलो हम सब आज मिलते हैं 
गम के दो-दो हाथ जड़ते हैं 

जो खड़ी है कल से प्यार की राह में 
जरा उससे तो पूछिए 
किसके दिल में है घर बनाना जरा 
उससे तो पूछिए 


मै घङी की सुईयों की तरह चल तो नहीं सकता,
#क्योंकि मुझे रूकना पङ जाता है;*

काफ़िला गुज़र गया 
   कारवाँ निकल गया 
     हम भी कौन थे 
       दस घर के 
मेरा भी दिल भटक गया 


अब तो हर बात पर्सनल होने लगी 
पति को गैर की पुत्री पर्सनल. लगने लगी 


इश्क की छाँव में 
वो मोहब्बत है करने लगा... 
मिलकर उससे जिंदगी के फ़ैसले करने लगा... 

©®शिवम अन्तापुरिया

Friday, October 18, 2019

अमेरिका के अखबार में प्रकाशित

अमेरिका के अखबार में प्रकाशित मेरी रचना 
"आधार है गुरु"

दो कविताएँ 1-आहुति देकर, 2-सत्ता रुढी खानों में

"आहुति देकर"

हर हालात से हम गुज़रते रहे 
पुराने बिस्तरों पर हम सोते रहे 
चारपाई भी थी टूटी मेरी 
रात भर करवटें हम बदलते रहे

वो याद है शुष्क ठंण्ड थी रात में
खुले आसमान में हम लेटे रहे 
  तुम्हें पुकारा हजारों बार मैंने 
    और तुम चैन से सोते रहे 

       नज़दीकियाँ थी 
तुम्हारे-हमारे बीच बहुत सारी 
मगर मुश्किलों में साथ भी तुम 
  बीच राह में ही छोड़ते रहे 

तुम मुझसे प्रेम करते थे 
  या पाप करते रहे 
और हम सच समझकर 
खुद को प्रेम की ज्वाला में 
आहुति देकर जलाते रहे 

शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

"सत्तारुढी खानों में"

देख लिया है मैैंने उसके 
   बेवशी के मन्ज़र को 
  नीर नहीं मिल पाता 
   उसको मज़बूर है 
     आँशू पीने को 

मंजिल पथ पर खड़ा हुआ है 
खुद को कुछ सिखलाने को 
लोग पैर अब खींच रहे हैं 
मिट्टी में दफ़न कराने को 

कैसे कैसे लोग पड़े हैं 
सत्तारुढी खानों में 
जिनमें जरा न रहम बचा है 
   ऊँची सीढ़ी पाने को
  
शिवम अन्तापुरिया 
     उत्तर प्रदेश

प्रेम की कविता

"प्रेम की रचना"

मुझे हल्के में लेने से, तुम्हारा फ़ायदा ही क्या 
चलता रेत पर हूँ मैं, तुम्हें अन्दाज़ा है इसका क्या 
शराफ़त से भरी महफ़िल में, रहना शौक है मेरा 
वरना है दुनियां से, मुझे लेना ही देना क्या 
किसी के प्यार के आँशू ,किसी के पाप के आँसू 
बहते आँसुओं से है , तुमने जान पाया क्या 
हमारी याद में जलकर,उसने खुद को राख कर डाला 
मुझको न पता था कुछ, इसमें दोष मेरा क्या 
हजारों की सज़ी महफ़िल में, मेरा कोई दुश्मन है 
न मैंने खोज पाया है, उसमें दोष उसका क्या 
मेरे दिल की चौखट पर, प्यार ने दस्तक दे डाली 
मैंने गेट न खोला, इसमें उससे बुराई क्या 


शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

नई ओर

मैं सबके साथ धारा के प्रवाह में नहीं 
धारा से हटकर नई ओर बहता हूँ 

शिवम अन्तापुरिया

jio to jio

जिओ टू अन्य से अब बात करना बहुत मुश्किल है 
हमारा बात करता यंत्र अब ना इसके काबिल है 
फ्री में बात वालों से कहदो की संभल जाए 
अन्य से बात करने का लगा छः पैसे का बिल है
    ✍शिवम अन्तापुरिया

मुझसे जले जो

गीत 
       "मुझसे जले"

कोई दीपक बनकर मुझसे जले हम उज़ाले में उनके निखर जाएंगे

चाँद की चाँदनी अब शहर है मेरा 
हम उसी के उज़ाले में ढल जाएंगे 

कोई दीपक बनकर मुझसे जले हम उज़ाले में उनके निखर जाएंगे

गाँव और वो शहर की थी गलियां मेरी 
जिनपे चलते थे पग मेरे दौड़े-दौड़े

आजकल अब वो दिखती नहीं है वहाँ 
बिना उसके वहाँ हम न रह पायेंगे 

कोई दीपक बनकर मुझसे जले हम उज़ाले में उनके निखर जाएंगे

मान जाए जरा गर वो बात मेरी 
चाँद की चाँदनी से भी नहलाएंगे 

साथ दो तुम मेरा गर अभी भी कहीं 
जमीं पर तारे भी हम ले आएंगे 

कोई दीपक बनकर मुझसे जले हम उज़ाले में उनके निखर जाएंगे

है हवा भी मेरे साथ में अब नहीं 
 वरना तूफ़ानों से हमतो टकराएंगे 

कोई दीपक बनकर मुझसे जले हम उज़ाले में उनके निखर जाएंगे

- शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

पतिव्रत

पति व्रत के त्यौहार पर 
खुशियाँ बड़ी अपार 
करवा चौथ के चाँद संग 
स्त्रियों का त्यौहार 

~ अन्जू
धनन्जय 
    उत्तर प्रदेश

करवा चौथ

आया है आया है पावन 
फ़िर से पति व्रत का त्यौहार 
चलो मनाए सब सुहागन मिल 
  करवा चौथ का त्यौहार 

~ शीकासुमित 
उत्तर प्रदेश

Tuesday, October 15, 2019

लाचार किसान

कवि ने बरसते पानी को देख जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और किसानों की फ़सलें जो बर्बाद होती जा रही हैं इन सब स्थितयों को देखते हुए लाचार किसानों की पीड़ा सबके सामने लाने की कोशिश की है और पानी से रूकने की गुहार लगाई है।

    "लाचार किसान"

बरश रहा है देख रहा है
बादल धरती वालों को
है परेशान किसान देश
के कैसे बचाए अपने
   अनाजों  को...

  कभी तेज है कभी मन्द है
  करता अपने फ़ब्बारों को
रिमझिम-रिमझिम बूँदे बरशे
   सूरज को भी ढाँके है
कैसे बच पायेगी फ़सलें 
वो असहनीय पीड़ा देता
    किसानों को....
अपनी तड़-तड़ की आवाजों से

   जिस ओर नज़र जाती है
उनकी बादल घिरे ही दिखते हैं
जरा सी राहत के खातिर
  सूरज कहीं न दिखते हैं
पीढा़ उठती है मेरे दिल में
देख मजबूर-लाचार किसानों को...

हे! मेघराज़ अब रुक जाओ
पीड़ा समझो किसानों की
मेरा दिल भी व्यथित हुआ है
गलती गर हो गई हो उनसे
तो अब माफ़ कर दो किसानों को

  रचयिता -
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

+91 9454434161

कर्मभूमि

चलना तुम्हे है दुनियां तुम्हें चलाने नहीं आयेगी जब तक तुम उभरकर समाज से ऊपर नहीं आते और अपनी अलग पहचान नहीं बनाते

मनुष्य को अपने बारे में,
दुनियां के बारे में सोचने से कही ज्यादा अधिक सोचना चाहिए

कर्मभूमि और जन्मभूमि
जब मेरी हिन्दी ही है
इसलिए हर जज़्बातो में
मेरी आगे आती ही हिन्दी है

शिवम अन्तापुरिया

दूध वाला

"दूध वाला"

खड़ा होता है दर दर पर
   होता है दूध वाला ।
सुबह-शाम पहुँचता है घर घर
रुकता हुआ भी डग-डग
होता है वो भी दूध वाला ।
कहीं लेने कहीं देने चलता
रहता है जो हर दिन
समझता है सभी का दर्द
होता है दूध वाले में मर्म
चिलचिलाती धूप में चलकर
कड़ाके की ठंड को सहकर
सभी को बाँटता फ़िरता ।
दूध अपना समझकर
सभी की बातें सुनकर
निकाल देता बस हँसकर
गरजते बादलों में चलकर
भिगा देता है खुद को
कपकपाते हाथों से जब
साधता है वो लीटर
छलकते देख लीटर को
रो उठा दिल मेरा
देख धरती पर बहते
दूध को
हिल गया दूध वाला ।

  कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

बेचारा

"बेचारा"

मेरे हर ख्वाब को
उसने अपने दिल
में है पाला

करूँ क्या अब
इनायत मैं
अधूरा दिल
है बेचारा

सियासत के तूफ़ानों
में न देता कोई
है सहारा

चलो प्यार की राहें
देखें हम वो तड़पता
क्यों है बेचारा

कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
   उत्तर प्रदेश

Saturday, September 28, 2019

मुझे इतनी दूर

"मुझे इतनी दूर"

चले जाओ तुम छोड़कर
     मुझे इतनी दूर
तुम्हें छूने वाली हवा भी
         न लगे मुझे
मैं रह लूँगी,मैं सह लूँगी
ये बद्तर तन्हाई के दिन
  तू छोड़ दे बीच राह में
      मुझे इतनी दूर
मुझे होने लगे तुमसे नफ़रत
     ऐसा वाकया कुछ
मेरे साथ कर जाओ तुम
  मैं रह नहीं सकती
बिन तेरे ऐसा प्यार क्यों
   जन्मा मेरे दिल में
भूल जाऊँ मैं प्यार को
इस प्यार से कर दो तुम
  मुझे इतनी दूर

    कवि/लेखक
- शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

Thursday, September 26, 2019

.......

प्रस्तावना

राहों हवाओं में मन नामक किताब को लिखने का मेरा आशय है मैंनें प्रकृति रूपी हर मन को मोहने के लिए कई शब्द व्यक्त किए हैं, अपने व हर किसी पथिक के मन को राहों व हवाओं में एक सुहानी सैर करवाने का प्रयत्न किया है।
काव्य को पढने मात्र से हर शख्स  प्रक्तति रूपी दुनियाँ का अनुभव कर सके...
~~

समर्पण

इस किताब को मैं दुनियाँ के हर उस प्राणी समर्पित करना चाहता हूँ, जो प्रकृति के हर अंदाज को बङे ही भाव विभोर होकर अपने आगोश में लेने को तत्पर्य रहता है, जब मैं साहित्य की दुनियाँ से वाकिफ हुआ तो मन में लिखने की लहर ने उदघोश रूपी जन्म ले लिया.
~~ 
हवाओं ने पूछा

हवाओं की राहों में उसने ला करके पूछा
तू जाता किधर है क्यों मुझसे न पूछा ||

कङी धूप की एक बङी रोशनी ने
मेरी आँखों से टकराकरके पूछा ||

तू बङा ही अजीब है
तूसा दूजा न देखा ||

हवाओं की महफिल से
आसमाँ कैसे थम गया
इश्की इत् मिनान से सूरज ने चंदा से पूछा ||

बादलों की काली घटा छा गई थी
जब हुई न वर्षा तो मानव ने ईश्वर से पूछा
हवाओं की राहों में उसने ला करके पूछा... ||

~~

तबाह हुए हम

जिंदगी तबाह कर देती है जीने को
रात तबाह कर देती है अँधेरे को
आने के लिए
मजबूर कर देते हैं फूल
सुगन्ध को उङने के लिए
हैरान कर देता है 'सूर्य'
प्रकाश को फैलने के लिए
महज 'लालच' में है मजबूर 'मानव'
गलत कदम उठाने लिए,
तो क्यों? नहीं तबाह कर सकते हो तुम
मानव को सँभलने के लिए
तबाह.... ||

~~

मिट गए अहसान

मिट गए खेतों से खलिहान जैसे
वैसे मिट गए अहसान
इस दुनियाँ से मेरे ||

क्या मिट गई किस्मत उनकी
कट गयीं हाथों से हथेली जिनकी ||

किस्मत न किसी के हाथों में है ढलती
गर है जुनूँ तो किस्मत है जज्बातों से बनती ||

चाहो मौत को दुलामा देकर तुम
उसे बचा न पाओगे
किस्मतों के खेल से बिन खेले
तुम्हारी किस्मत कुछ कर नहीं सकती
मिट गए खेतों से खलिहान जैसे... ||

~~

दिसम्बर निकल गया

न जाने कितने दिसम्बर निकल गए,
मगर मैं घर से बाहर न निकला
न जाने कितने जज्जात पिघल गए,
मैं घर से बाहर न निकला ||

उनके मेरे इंतजार में आँखे धूमिल हो गई
मैं घर से बाहर न निकला
समय के साथ वो
दरबदर बदलते गए,
मैं घर से बाहर न निकला ||

उम्मीदों के बोझ
तले में दबता गया
मगर मैं घर से बाहर न निकला ||

~~

ललक ही चाह

ललक भी एक चाह होती है'
चाहने वालों की दरगाह होती है' शिवम ||

रातों में सुबह और सुबह में शाम होती है
जिदगी हर भीड में  इंतढाँ लेती है ||

वहीं पर मनुष्य की  पहचान होती है
प्यार को ललक रखता शायद,
तभी तो तुझमें मोहब्बत की छठा दिखती है ||

इश्क के हालात से परे
बिन कराह के वो इच्छा
का दंश सहती है ||

~~

इंशाँ की हकीकत

इंशान को है इंशान से मिलने का वक्त कहाँ
जो पहले था इंशाँ वो अब कहाँ ||

जरा सीं बात पर मरने
मारने को उतर आते हैं
पहले वाले इंशानों वाला
अब के इंशान के अन्दर
सद्भाव रहा कहाँ
हकीकत की जमीन पर
इंशानियत की तौहीन है यहाँ
अरे इशां अपने बुजुर्गों
की तरफ जरा मुड़कर तो देखो
उनको ये आधुनिक का मानव
अब भी सिर झुकाता है यहाँ

~~

उनसे पूछो

मुझपर क्या बीती मुझसे न पूछो,
हजारों गवाह हैं मेरे
जरा उनसे तो पूछो
भर जाती हैं आँखे खुद
के कारवाँ याद करके,
जरा देर का वो इलाज
न पूछो, _
खुद जिंदगी को जख्म देकर
मरहम हूँ ढूँढने लगा
हजारों की महफिल में
दूर अकेला हूँ दिखने लगा
अपनी तारीफें क्या करूँ,
जरा उनसे तो जाकर पूछो
मैंने उसे देखा तक न था
वो मुझे चाहने कब लगा
जरा उनसे तो जाकर पूछो

~~
 "दूर रहना चाहता है"

ये मन बहलता भी नहीं है
अकेले खेलता भी नहीं है
  किसी के साथ खेलूँ
  तो रुकता भी नहीं है
ऐ प्रकृति तेरे आगोश में
  खेलना चाहता है मन
इसकी जिद बस यही है,

दूर दराज़ हवाओं के
झोंको में लहर कर
खुद से इठलाता है
तुतलाता है,ठहरता है
शायद इसकी चाह
   बस यही है,

आसमाँ से बात
और दिल के राज़
मुझसे हमेशा क्यों
छुपाए रखता है
आखिर दिल मेरा है
मुझसे क्यों दूरी
बनाए रखता है
शायद मुझसे दूर
रहना चाहता है अभी

~~

समस्याओं ने घेरा

समस्याओं ने मुझे
इस भाँति घेरा
रात सा दिन हो गया
  शाम सा लगने
लगा सवेरा

न डरा और न रुका
मैं चल दिया हूँ
  उससे लड़ने अकेला
थामा जो साहस का दामन
तो बढ़ गया
  हौंसला फिर मेरा

कील कंकड़ पत्थरों ने
रोकना चाहा मुझे
रूक सका न मैं कहीं
मैं डरा अंधकारों से नहीं
  हो गया है कारगर
जब सारी दुनियाँ से
हूँ जंग मैं लड़ा अकेला

साथ हैं अब भी मेरे
समस्याएँ जैसे
मानों उन्होंने ही
हो पाला मुझे
लगकर गले चल
रही हैं ऐसे
मानों अपना ही
घर समझा है मुझे
~~


"लगा मैं हवा हूँ"

लिखूँ मौसम की क्या ताकत
तेरे कदमों में लाने को
  मुशाफ़िर बन चुका हूँ मैं
तेरी चाहत को पाने को...

बना हूँ सिरफ़िरा खुद मैं
अभी आज़ाद बनने को
लगा मैं हूँ हवा की बारिश
खुद को भिगाने को...

यहाँ की भीड़ बस्ती को
मैं हवा का झोंका लगता हूँ
यहाँ की ख्वाब खामोशी के
बदले ज़रा सा प्यार दो मुझको...
~~


खबर न मुझे

"खबर न मुझे"
राहों का मन्ज़र हो
सफ़र हो सुहाना
जिन राहों पर
उसे हो बस
चलते जाना...

यहाँ से वहाँ तक
न खबर हो हमारी
तेरा साथ छूटा जैसे
वो वफ़ा हो हमारी...

कही जिंदगी का
सिलसिला रुकने न पाए
खबर है मुझको
कहाँ जिंदगी लिए ये जाए...
~~

मुशाफिर हूँ

मैं मुशाफिर हूँ
न रूकता हूँ
  न ठहरता हूँ
बस चलता हूँ
  तेरे कदमों की आहट से
बस मैं तो सिसकता हूँ,

ठिकाना है
  न मंजिल है
मुझे बस चलते जाना है
न रोता हूँ न हँसता हूँ
महज गीत के तारों से
दुनियाँ को आजमाता हूँ,

न नजरें मिलाता हूँ
न किसी से टकराता हूँ
बस अपनी मंजिल
को पाने को
ये गीत गुनगुनाता हूँ,

मुशाफिर हूँ मैं घायल हूँ
नहीं मरहम लगाता हूँ
कुछ शब्दों की सीढ़ी से
गहराईयों में
उतरता जाता हूँ
~~


नई राह

जिंदगी पतझङ सी हो गई
नई कोपियाँ भी आने लगीं
भोर के कलरव से दुनियाँ
नई राह पर चलने लगी,

मन मेरा ठहरकर भी
अस्थिर हवा में हो गया
मनचला ये दिल मेरा
मानों मोह से है घिर गया,

हो रहा अब आभास मुझको
तन फिरंगा चल दिया
क्यों धूल,धूसर, बादलों से
मोह मेरा बढ़ने लगा
~~


होश है बेहोश

है हवा खामोश
शायद मुझसे नाराज है
गुमशुदा से एक थपेङे ने फिर
छेङा अपना राग है
जा रहा मुझसे बिछङकर
जरा बता मुझे क्या बात है

रूठकर तेरा ऐसे जाना
सहन मुझसे होता नहीं
राहों और हवाओं ने ही
है पाला मुझे
चल रहा हूँ बनकर पथिक
अनजानी राह पर
है जाना मुझे

होश है बेहोश फिर भी
कुछ होश है रखना मुझे
जिंदगी की जंग में
जीत भी हासिल करनी है मुझे
~~

फिरंगी हवा

है हवा ये फिरंगी
न कोई लगाम है
हर झोंकों से निकलता
इसके किसी का नाम है,

टोकती हर शक्स को
रोकती हर शक्स को
इस अलबेली हवा का
बस यही एक काम है,

कभी झकझोरती है मुझे
कभी खेलती अटखेलियाँ
रहती न तन्हाँ कभी है वो
बस हवा का यही नाम है
~~


रंग-रूप ढेरों

शरद ऋतु में सर्दी
बिखेरे
ग्रीष्मकालीन गर्मी
है हवा ही नाम उसका
जो कभी बन जाती है
बेदर्दी,

कभी सन-सन करती
गुजरती
कभी तो स्वर मन को मोहे
कभी भूचाल सी बनकर
है चलती
चमचमाते महलों को है
खण्डहर करती,

हैं हवा के रंग-रूप ढेरों
चाहें तूफान, बवण्डर
और चाहें वायु कह लो
~~

सावनी वायर

  तन घरों में घूमता
मन है राहों में विचल रहा
मैं ठहरा "निर्मोही"
उस हवा का पीछा कर रहा,

हो रहा बेचैन मन अब
घूमता घनघोर जंगल फिरा
मैं अधूरा सा ठिठककर
लौट बचपन में गया,

मुझे याद रहता है सदा
हवा का वो एक झकोरा
जिसने वर्षों से मुझे
खुद अपने में है रॅग रखा,

ए शिवम बेखौफ अब तू
कर सफर इस सैर का
बह रहा प्यारा सा झोंका
सावनी बयार का
~~

बताने दे मुझे

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे,
कैसा लगता है
अहसास कर
लेने दे मुझे,

मैं भी तो जानूँ
इंशानियत क्या है
मरने की इजाजत
जरा सी दे दे मुझे,

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे,

बनकर हवा आसमान में
उङ लेने दे मुझे
नए जीवन में पिछले
जन्म की कुछ तो यादें
पास रखने दे मुझे,

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे,

उस स्वर्ग की खबरें
कुछ तो नर्क में
बताने दे मुझे,

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे
~~


सोचता ही रहा

मैं सोचता ही रहा चंद पल भर के लिए
फुरसत मैं हुआ नहीं
अपनों से मिलने के लिए,

आसमाँ पर पहुँचे
जमीं पर भी रहे
कुछ ख्वाब थे मिले
कुछ खो भी गए
मैं सोचता ही रहा
चंद पल भर के लिए,

हवाओं ने ढूँढा
आवाजों ने बुलाया
मैं खो ही गया
कुछ पल के लिए...

मैं सोचता ही रहा
चंद पल भर के लिए
~~


छाई बेदर्दी

मन खिन्न है
मन भिन्न है
बने चेहरे पर
हजारों चिह्न हैं,

कुछ खाश
कुछ उदास
कुछ निराश
ऐसे ही मानव
के दुनियाँ में
लाखों रूप हैं,

कहीं निराशा
छट रही है
तो कहीं पर
बिछ रही है,

कहीं खुशियों की
चहलकदमी है
तो कहीं छाई
गमों की गर्मी है,

करें शिवम अब
क्या जब दुनियाँ
में छाई ही बेदर्दी है
~~

 

मुशाफिर हूँ

मैं मुशाफिर हूँ
न रूकता हूँ
  न ठहरता हूँ
बस चलता हूँ
  तेरे कदमों की आहट से
बस मैं तो सिसकता हूँ,

ठिकाना है
  न मंजिल है
मुझे बस चलते जाना है
न रोता हूँ न हँसता हूँ
महज गीत के तारों से
दुनियाँ को आजमाता हूँ,

न नजरें मिलाता हूँ
न किसी से टकराता हूँ
बस अपनी मंजिल
को पाने को
ये गीत गुनगुनाता हूँ,

मुशाफिर हूँ मैं घायल हूँ
नहीं मरहम लगाता हूँ
कुछ शब्दों की सीढ़ी से
गहराईयों में
उतरता जाता हूँ
~~


11- हजारों जबाव

वो हवाओं से भीगे
  दिन भी मेरे आज हैं
वक्त के नीचे दबे
खुलते सभी ही राज हैं,

क्या भरोसा कर सकूँ
जिंदगी और मौत का
कभी न दोनों साथ हैं
टिकती भी न वो पास हैं,

कोशिश हजारों नाकाम हों
मौत का उत्तर भी मौत है
क्या करूँ उससे मैं प्रश्न
देती हजारों जबाव है
~~


चलूँ हवाओं में

हवाओं ने मुझे
वो सफर है कराया
जो सोचा न था कभी
वो याद है कराया

चलती हवाओं ने
समुद्र की लहरों
में है घुमाया
कंकङीले, पत्थरों, बंजरों
में मुझे है चलाया

फिर भी हवाओं ने मुझको
न दर्द है
महसूस कराया
रेत के रेतीले पहाड़
पर चढ़कर
गिरा हूँ फिसलकर नीचे
आवाज सी बनकर
हुए थे जख्म जो हल्के
वो हवा ने पल भर
में भर डाले
अनजाना मैं

उस दर्द से रूबरू था
अपनों से दूर था
वक्तों की महफिल में
वो वक्त न मेरा था

मैं समझूँ दुनियाँ को
दुनियाँ न समझे मुझको
चलता हूँ तूफानों में
महसूस न होती हवा है

घूमूँ मैं ऐसे हवा में
जैसे कैथे को
खाता हाथी है
सबको महसूस हो ऐसे
जैसे ठण्डक
देती हवा है

हवाओं का चलना
मौसम ही है
वक्त को ठहराना
बस में नहीं
तूफानों में साहिल
को जलाना
हर एक हाथों में
था दम ही नहीं
~~


राहों में मन

मैं ऐसी जगहों पर रहता
जहाँ रहता न कोई है
मैं ऐसा आवारा झोंका
बनकर हूँ बहता
जहाँ बहता न कोई है

गाँव की गलियों से होकर
शहर में चंद दिन ठहर जाता हूँ
मिलकरके अपने देश से
विदेश चला जाता हूँ

लिपटकर हवा के झोंकों में
आसमान में पहुँच जाता हूँ
मिलकर आसमाँ से अंतरिक्ष को निकल
  जाता हूँ

पानी में उतरकर नहरों में कूद जाता हूँ
भरता है मन जब लम्बी छलाँगे
तो समुद्र में पहुँच जाता हूँ

रास्तों को मेरा मन है चाहता
भरी भीङ वाले रास्ते में
मन को छोङ देता हूँ
फिर चलते रास्तों में मन
को नहीं ढूँढ पाता हूँ
~~


राही अकेला

चलता हूँ बस अकेला
मिलता न साथ तेरा
जो साथ थी हवाएँ
वो भी अब विपरीत हैं
खींचती हैं पीछे
मानों हम डोर हैं

हम खुद न जान पाते हैं
कहाँ खो जाते हैं
सोच के समुन्दर में
होते जो तूफान हैं
वो बनते आँधियों से हैं
चलते तेज तूफानों से
निकलती जो आवाज है
लगता है मेरे दिल की
बस यही पुकार है
~~


हवाओं के महल

मासूम था चेहरा जो मेरा
मिला फूलों से
दिया मुझको
फूलों ने काँटो में रहकर
जीना सिखा दिया मुझको
हवाओं के महल
में दिखे जब दरवाजे
घुसकर बैठ गया
उसमें कहानी बनाने

उस कहानी को
सामने लिख लाया
हूँ सामने तुम्हारे
पढ़कर मन खिल
उठा तुम्हारा
सैर करूँ मैं
जैसे धूप में हो छाया
~~


किसान दुर्दशा

1 -हाँफकर भी श्वास लेता है
सब उगा कर भी
  भूखा सोता है,
मन उमङता है
चिल्लाता है
फिर खुद ही समझाता है
क्योंकि सुनाने के लिए कोई पास नहीं होता है,

जिंदगी की दौङ में
दौङकर भी सबसे पीछे रहता है
हाँ हाँफकर भी श्वास लेता है।

2- पानी पीने की जगह
तपती धूप में खून को पसीना बनाकर बहाता है
जरा सी प्रकृति की मार में
वो अपने हाथों में कुछ नहीं बचा पाता है,

क्यों होती किसानों की दुर्दशा है,
जब सारा संसार उन्हीं
पर टिका है,
हाँफकर भी श्वास लेता है।।
छू लो आसमान

उङते आसमाँ में पंछी
धरती वालों से कहते हैं
जरा सोच अब
मन में कर लो,
मन के अरमान भी
ऊँचे कर लो
उङना सीखो
मेरे जैसे ख्वाबों के पंख
लगाकर तुम,
जरा ख्वाब भी होंगे तेरे
तो सपने सच
कर लोगे तुम,
उङते रहो सदा
आसमान में,
नभ, तारे भी छू लो तुम,
ख्वाबों के आगे
हारी है गरीबी
अरमानों को सच
कर लो तुम ।।
~~

मैं नदी हूँ

सिसकती हूँ, मचलती हूँ,
कई मौकों पर गरजती हूँ,
उलझती हूँ फिर भी हर रोज मंजिल
की तरफ बढ़ती हूँ,
मैं नदी हूँ...
कभी किनारों पर,
कभी गहरे दरियों पर,
हर रोज नए लोगों से मिलती
और बिछङती हूँ,
मैं नदी हूँ...
पता नहीं मेरा प्रेमी
मुझसे छूटा है या रूठा है,
उसी की तलाश में मेरा
हर पल बीता है,
रात-दिन की बिन परवाह किए
मैं अकेली ही बहती हूँ,
मैं नदी हूँ...
कहीं कल-कल की आवाज तो
कहीं छल-छल की आवाज
मैं सुनती हूँ,
फिर प्रेमिका की तरह
खुद से ही लरजती हूँ,
मैं नदी हूँ...
~~
***