जिन्दगी ये मेरी कोई शीशा नहीं
खेलकर तोड़ दो है खिलौना नहीं
वर्षों लगी हैं मुझे सजाने में इसे
छोड़कर जाऊँ कोई है मकाँ नहीं
बेजह तुम बनें जिन्दगी यूँ रहे
साथ मेरे करते खिलवाड़ क्यों रहे
हम तो अकेले थे बनें रहने देते
अधूरा साथ मुझको देते क्यों रहे
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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