वो सफ़र था सुहाना
जब शरीर में भरपूर
चेतना थी हमारे
घट गया है पौरुख
ये शरीर हुआ अब
तुम्हारे हवाले ।
डर लगता है बुढ़ापे से
दबा दबा सा रहता हूँ
कहीं बुढ़ापा बिगाड़ न दें
ये नए खून के दीवाने ।
आजकल बुजुर्गों के हाल
बद से बदतर हो जा रहे हैं
दुतकारते हैं बेटे माँ-बाप
को ऐसे परिणामों का डर
पल रहा है दिल में हमारे ।
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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