Saturday, September 26, 2020

"अभी शेष है"

" अभी शेष है "

बहुत शेष है मुझको करना 
 सबसे सावधान है रहना 
जीवन की पतवार धरा पर 
खुद है खेकर पार लगाना 

  बहुत शेष है मुझको करना 

अब अंधकार के पथ हैं सारे 
जिनपर रोशन होकर चलना 
शासन सत्ता के गलियारों पर 
कभी नहीं तुम भरोसा करना 

  बहुत शेष है मुझको करना

यहाँ कर्म भूमि में युद्ध है लड़ना 
 सँभल-सँभल के पग है रखना 
 ये जीवन है आशाओं का डेरा 
 हाँ है आशाओं को पाले रखना 

   बहुत शेष है मुझको करना

      शिवम अन्तापुरिया
         उत्तर प्रदेश

Monday, September 21, 2020

कविताएँ अखबार में प्रकाशित

उतार चढ़ाव लाज़िमी है

"उतार चढ़ाव लाज़िमी है"

वक्त के साथ सब कुछ अपने माफिक चलने लगता है, 
ये पल मेरे अतीत के थे और बेसद खास और बेहद ही यादगार रहेगें क्योंकि ये वक्त उसी ने मुझे उपहार स्वरूप दिया था।
ये अतीत कोई वर्षों पुराना नहीं है यही कोई एक हफ्ते का अतीत है लेकिन ये वर्षों नहीं सदियों पुराना अतीत लगता है। 

"वक्त कैसे करवट लेता है अब पता चला" 
मगर मुझे तो बड़ी से बड़ी समस्याओं से जूझना पड़ा था 
बेहद कठिन तन्हाईयों में तो मैं जी ही रहा था कि कुछ बदलाव सा हुआ मेरे जीवन में मैंने खुद को बहुत सँभाला अपने आपको और रोका भी था, क्योंकि मैंने बहुत उदाहरण देखे थे ऐसे कि बाद में चिंताओ के सिवा और कुछ नहीं रह जाता ।

इस पर मेरा एक स्वंम का कथन है कि "चिंताओ ने पाला मुझे"
हालाँकि मैं छोटा था उससे फिर भी, 
यही नहीं मैंने उसे भी बहुत प्यार से समझाया था 
यार मुझे इन चीजों में नहीं पड़ना 
मगर उसने अपनी बहुत सारी बातें बताकर अच्छा खासा मुझमें विश्वास भर दिया कि वो सबसे अलग है 
वो वैसा नहीं जैसे सब होते हैं। 

मगर अचानक क्या घटित हुआ 
जिससे मैं अनभिज्ञ हूँ अगर मुझे सब कुछ ज्ञात करा सकता है तो सिर्फ वही मगर वो सच्चाई बताने से अपने आपको को पीछे हटा रहा है, फिर मैं उसपर इल्जाम नहीं लगा रहा क्योंकि जरूर उसकी कोई मजबूरी है अभी तक उसने मुझे हर बात बताई थी अब तक, आज क्यों छुपा रहा है जरूर कुछ अहम बात है और बात बेहद सच है फ़िर भी "मुझे सच्चाई स्वीकार है"
ये उसी का विचार है जो आज मैं दोहरा रहा हूँ मुझे अपनी बात बता दो जो भी हो एक शब्द मैं नहीं कहूँगा क्योंकि सच तो सच है 
मैं उस सच्चाई को गले लगाता हूँ न कि झूठ को ।
 
अब फ़िर कह रहा हूँ खुद को अपने आप से झूठ में न मिलाओ 
आखिर मैंने कभी कोई दबाव नहीं बनाया था तुम कि तुम मेरा साथ दो आज जब तुम्हारी बातों को मान लिया तब आज तुम्हीं 
मुझे गलत क्यों ठहरा रहे हो 
शायद जाने अनजाने में मुझसे कोई गलती हुई है क्या तो कम से कम मुझे बताते तो ...

कोई भी सच्चाई जानने की कोशिश न करे बाकी 

"तुम्हारी जिंदगी तुम्हारे फ़ैसले"

💞 शिवम अन्तापुरिया 💕
         उत्तर प्रदेश

Tuesday, September 15, 2020

story mirror se mila

रक्षा बंधन के लिए 

!! जन्मा बेटा था !!

"बेटा जन्मा था"

जिस दिन बेटा जन्मा था उस 
दिन खुशियों के अरमान खिले 
जिस दिन बेटा बोला था उस 
दिन थे गुब्बारों के हार खिले 

बेटा-बेटा की आवाज़ों से 
सारा आँगन भर जाता था 
खेल कूद में ही सबका वो 
भारी सा दिन कट जाता था 

आज खिलौना खुद बनता है 
कल ये ही खेल खिलाएगा 
उसकी मधुरी-पैनी अावाज़ों से 
  जब सारा घर चहँचाएगा 

अब छोड़ बचपना चला गया 
उसके काजल के टीकों को 
बची-खुचीं जो बचीं हैं यादें 
अब सँजो रहा उन लम्हों को 

हो गया सयाना बेटा उनका 
अब करने लगा वो गलती हैं 
पिता-मात में प्रेम भरा था 
मिल जाती आसान ये माफ़ी हैं 

खुद का सुख खोकरके माँ ने
जिसको दुनियाँ दिखलाई थी 
आज वही लाडले बेटे ने हाँ 
अपनी जहरी जुबाँ चलाई थी 

भूल गया वो मान प्रतिष्ठा 
कर्ज़, फ़र्ज़ भी भूल गया 
मात-पिता के कर्मों पर भी 
वो था सारा पानी फ़ेर गया 

संस्कार शब्द वो भूल गया 
वो खुद में ही परिपूर्ण हुआ 
अब अपने ऐशो आरामों में 
वो था बेहद चकनाचूर हुआ 

उसे पता क्या ममताओं का 
  माँ पर बोझ भी होता है 
जरा-जरा सी हर बातों का 
बोझ भी माँ पर होता है 


शिवम अन्तापुरिया
   उत्तर प्रदेश