Sunday, June 30, 2019

अधूरा इश्क के शैर

हमारे प्यार में जीकर
अधूरे ख्वाब में रह लेना ...
टूटे सपनो से सज़कर
कभी तन्हा भी जी लेना...

--शिवम अन्तापुरियाअधूरा इश्क है तेरा
हमारा नाम लो चाहें
मैं तुझसे हार करके भी
तुझको हार पहनाऊँ

कोई चाहत में मुझको
खोजकरके
गुम हो जाता है
मैं हूँ प्रेम का तिनका
प्रेम में बहता जाता हूँ..

~  शिवम अन्तापुरिया

शैर

वो इश्क की फ़रियाद में खुद में
खुद को भिगोता रहा,
मैं अकेला खुद को अकेला
ही महसूस करता रहा

शिवम अन्तापुरिया

बोझ तले

लेखन का कदम क्रम - 2

*बोझ तले*

बहुत सारी ख्वाहिसो का
बंधन है
अरे शिवम इन कवियों के
माथे लगा ही राष्ट्र का बंदन है

देश का बोझ है
दुनियां का बोझ है
समाज़ का बोझ है
जाति का बोझ है
अब कुछ न पूछो
सब घर सहित
बोझ ही बोझ है

खुद की जिंदगी को
ढो रहे हैं
दूसरो को ढोने को
मंजिल बता रहे हैं

हम कवि तो कवि ठहरे
गहराईयों में भी
राष्ट्र भूमि का गीत
       गा रहे हैं

-कवि शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश

Saturday, June 29, 2019

शायर

वो छोड़ कर जाते जाते कह गयी
तुमको तन्हा ही छोड़ जाऊँगी यहाँ
मैनें कहा कलम जब तक है मेरे साथ मैं तन्हाँ हूँ ही कहाँ

©©शिवम अन्तापुरिया उत्तर प्रदेश भारत

ये पैगाम देता हूँ
तेरा नाम देता हूँ
साहब! आज से छोड़ता हूँ तेरा हाथ "इश्क"
ये सरेआम कहता हूँ ..

`•शिवम अन्तापुरिया

ये जो दिल के रिश्ते हैं
तोड़ा जा नहीं सकता
   जो हैं प्रेम पंछी
उन्हें उड़ाया जा नहीं सकता

~शिवम अन्तापुरिया

वो मोहब्बत को कर गई
सरेआम थी,
वो मोहब्बत में हो गई
नाकाम थी,

©®शिवम अन्तापुरिया

Wednesday, June 26, 2019

माता है हिन्दी

हिन्दी माता है मेरी
तो उर्दू मौसी है मेरी
ये रिश्तों की है डोरी
जो इंग्लिश, तमिली
गुजराती,मलयालम
पंजाबी से है जोड़ी

~§ शिवम अन्तापुरिया

ये जो दिल के रिश्ते हैं
तोड़ा जा नहीं सकता
   जो हैं प्रेम पंछी
उन्हें उड़ाया जा नहीं सकता

~शिवम अन्तापुरिया

चरित्रहीन कौन

आज का विचार
अगर पुरुष चरित्रहीन न होता
तो स्त्री चरित्रहीन कैसे होती
क्योंकि स्त्री को चरित्रहीन बनाने में एक चरित्रहीन पुरुष का ही हाथ होता है
~शिवम अन्तापुरिया

Sunday, June 23, 2019

योग बना ढोग

रचना अच्छी लगे तो कवि का नाम हटाए बिना *शेयर करें*
*नेताओं के योग पर व्यंग्य*

      *योग बना ढोंग*
लिखने को जी अकुलाया है
   तब ये कदम उठाया है
  पहनी टोपी नेता बन गए
   योग दिवस मनवाया है

       योगासन करते हुए
    जो कैमरा में कैद हो गए
क्या रोज़ यही नियम बनाया है
देश का अन्नदाता बीमार,लाचार
क्या उसको भी स्वस्थ रखने का
   कोई नियम बनाया है

   पहनी टोपी नेता बन गए
   योग दिवस मनवाया है

देख हालात किसानों के
  मेरा दिल घबराया है
तभी आज़ मैनें नेताओ
  पर ये प्रश्न उठाया है

बैठे योगासन फोटो खिंच गया
  तो क्या निरोगी हो गए तुम
अगर रोज़ योगासन करते हो
तो नेताओ कैसे रोगी हो गए तुम

      हर नेताओं के घर में
  एक न एक बीमारी पलती है
  गौर करो गर योगासन करते हों
तो क्यों विदेशों से दवाई चलती है

ये जनता को दिखावा है
  ये भीे एक छलावा है

युवा कवि/लेखक

*शिवम अन्तापुरिया*

*उत्तर प्रदेश भारत*
*सर्वाधिकार सुरक्षित*
9454434161

Saturday, June 22, 2019

रचना

बरसात के दिनों में

सौंधी सौंधी सुगंध आ रही है हवाओं से
ये दिल कह रहा है देखकर निगाहों से

- ©®शिवम अन्तापुरिया 

[6/22, 22:54] @शिवम अन्तापुरिया लेखक: पूछते हैं जहाँ में लोग मॢुझसे *शिवम*
तूने अब तक कमाया क्या है  ?
मैं कहता हूँ
साहब
ये पूछो साहित्य में मैने अब तक गवाया क्या है??
अन्तापुरिया

[6/22, 22:54] @शिवम अन्तापुरिया लेखक: सूर्य उगा चला गया
चंद्र निकला चला गया
कवि शब्द ऐसा जन्मा
जो चंद्र रवि से भी आगे
चला गया
//कवि शिवम अन्तापुरिया //

[6/22, 22:54] @शिवम अन्तापुरिया लेखक: मैं लेख लिखता हूँ
अफ़वाह नहीं
ठोस लिखता हूँ फ़ुल्ल्ड नहीं
...शिवम अन्तापुरिया

मेरी चाहत के तौहीन चेहरे,
आजकल रह रहे हैं अकेले..
शिवम अन्तापुरिया
जब तुम्हें दुनियां सताती हो तो
जीभ का अनुशरण करके
      जीना सीखो |
किस तरह वो दाँतो का प्रहार सहकर  जीवन बिताती है ||

       //शिवम अन्तापुरिया //

रचना

बरसात के दिनों में

सौंधी सौंधी सुगंध आ रही है हवाओं से
ये दिल कह रहा है देखकर निगाहों से

- ©®शिवम अन्तापुरिया 

[6/22, 22:54] @शिवम अन्तापुरिया लेखक: पूछते हैं जहाँ में लोग मॢुझसे *शिवम*
तूने अब तक कमाया क्या है  ?
मैं कहता हूँ
साहब
ये पूछो साहित्य में मैने अब तक गवाया क्या है??
अन्तापुरिया

[6/22, 22:54] @शिवम अन्तापुरिया लेखक: सूर्य उगा चला गया
चंद्र निकला चला गया
कवि शब्द ऐसा जन्मा
जो चंद्र रवि से भी आगे
चला गया
//कवि शिवम अन्तापुरिया //

[6/22, 22:54] @शिवम अन्तापुरिया लेखक: मैं लेख लिखता हूँ
अफ़वाह नहीं
ठोस लिखता हूँ फ़ुल्ल्ड नहीं
...शिवम अन्तापुरिया

मेरी चाहत के तौहीन चेहरे,
आजकल रह रहे हैं अकेले..
शिवम अन्तापुरिया
जब तुम्हें दुनियां सताती हो तो
जीभ का अनुशरण करके
      जीना सीखो |
किस तरह वो दाँतो का प्रहार सहकर  जीवन बिताती है ||

       //शिवम अन्तापुरिया //

गज़ल

*फ़ितरत रही है*

जिन राहों पर तुम चल रहे हो
    वो राहें तुम्हारी नहीं हैं
सफ़र जिंदगी का है नाज़ुक
    जो तुम्हारे बस में नहीं है
आजकल के हैं दरम्याँ से वाकिफ़
तेरा इन खिताबों से रिश्ता नहीं हैं-2

जिन राहों पर तुम चल रहे हो
    वो राहें तुम्हारी नहीं हैं

गम के साओं से दूर रहकर
     जिंदगी जो कटे
   ऐसा मुमकिन नहीं है -2
लाखों साथी भले ही हो तेरे
मिलना धोखा एक छोटा नहीं है

जिन राहों पर तुम चल रहे हो
    वो राहें तुम्हारी नहीं हैं

    हर घड़ी नफ़रत से
    तुम न मुझको देखो
मेरी नफ़रत से मोहब्बत की
     फ़ितरत रही है -2

जिन राहों पर तुम चल रहे हो
    वो राहें तुम्हारी नहीं है
लेखक
  ~ *शिवम अन्तापुरिया*
9454434161

Tuesday, June 18, 2019

Book poem

1-   *मुशाफिर हूँ*

मैं मुशाफिर हूँ
     न रूकता हूँ
       न ठहरता हूँ
बस चलता हूँ 
   तेरे कदमों की आहट से
बस मैं तो सिसकता हूँ,

ठिकाना है
          न मंजिल है
मुझे बस चलते जाना है
न रोता हूँ न हँसता हूँ
  महज गीत के तारों से
दुनियाँ को आजमाता हूँ,

  न नजरें मिलाता हूँ
न किसी से टकराता हूँ
बस अपनी मंजिल
     को पाने को
ये गीत गुनगुनाता हूँ,

मुशाफिर हूँ मैं घायल हूँ
नहीं मरहम लगाता हूँ
कुछ शब्दों की सीढ़ी से
    गहराईयों में
     उतरता जाता हूँ,

  2-   *नई राह*

जिंदगी पतझङ सी हो गई
नई कोपियाँ भी आने लगीं
भोर के कलरव से दुनियाँ
नई राह पर चलने लगी,

मन मेरा ठहरकर भी
अस्थिर हवा में हो गया
मनचला ये दिल मेरा
मानों मोह से है घिर गया,

हो रहा अब आभास मुझको
तन फिरंगा चल दिया
क्यों धूल,धूसर, बादलों से
मोह मेरा बढ़ने लगा,

 
3- *होश है बेहोश*

है हवा खामोश
शायद मुझसे नाराज है
गुमशुदा से एक थपेङे ने फिर
छेङा अपना राग है
जा रहा मुझसे बिछङकर
जरा बता मुझे क्या बात है

रूठकर तेरा ऐसे जाना
सहन मुझसे होता नहीं
राहों और हवाओं ने ही
     है पाला मुझे
चल रहा हूँ बनकर पथिक
अनजानी राह पर
है जाना मुझे

होश है बेहोश फिर भी
कुछ होश है रखना मुझे
जिंदगी की जंग में
जीत भी हासिल करनी
    है मुझे

4- *फिरंगी हवा*

है हवा ये फिरंगी
    न कोई लगाम है
हर झोंकों से निकलता
इसके किसी का नाम है,

टोकती हर शक्स को
रोकती हर शक्स को
इस अलबेली हवा का
बस यही एक काम है,

कभी झकझोरती है मुझे
कभी खेलती अटखेलियाँ
रहती न तन्हा कभी है वो
बस हवा का यही नाम है,

5-  *रंग-रूप ढेरों*

शरद ऋतु में सर्दी
बिखेरे
ग्रीष्मकालीन गर्मी
है हवा ही नाम उसका
जो कभी बन जाती है
बेदर्दी,

कभी सन-सन करती
गुजरती
कभी तो स्वर मन को मोहे
कभी भूचाल सी बनकर
है चलती
चमचमाते महलों को है
खण्डहर करती,

हैं हवा के रंग-रूप ढेरों
चाहें तूफान, बवण्डर
और चाहें वायु कह लो
  

6-*सावनी वायर*

   तन घरों में घूमता
मन है राहों में विचल रहा
मैं ठहरा "निर्मोही"
उस हवा का पीछा कर रहा,

  हो रहा बेचैन मन अब
घूमता घनघोर जंगल फिरा
  मैं अधूरा सा ठिठककर
लौट बचपन में गया,

मुझे याद रहता है सदा
हवा का वो एक झकोरा
जिसने वर्षों से मुझे
खुद अपने में है रॅग रखा,

ए शिवम बेखौफ अब तू
कर सफर इस सैर का
बह रहा प्यारा सा झोंका
    सावनी बयार का

7-*बताने दे मुझे*

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे,
कैसा लगता है
अहसास कर
लेने दे मुझे,

मैं भी तो जानूँ
इंशानियत क्या है
मरने की इजाजत
जरा सी दे दे मुझे,

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे,

बनकर हवा आसमान में
उङ लेने दे मुझे
नए जीवन में पिछले
जन्म की कुछ तो यादें
पास रखने दे मुझे,

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे,

उस स्वर्ग की खबरें
कुछ तो नर्क में
बताने दे मुझे,

अब जरा मरकर
देख लेने दे मुझे

   8-*सोचता ही रहा*

मैं सोचता ही रहा चंद पल भर के लिए
फुरसत मैं हुआ नहीं
अपनों से मिलने के लिए,

आसमाँ पर पहुँचे
जमीं पर भी रहे
कुछ ख्वाब थे मिले
कुछ खो भी गए
मैं सोचता ही रहा
चंद पल भर के लिए,

हवाओं ने ढूँढा
आवाजों ने बुलाया
मैं खो ही गया
कुछ पल के लिए...

मैं सोचता ही रहा
चंद पल भर के लिए

9-*छाई बेदर्दी *

मन खिन्न है
मन भिन्न है
बने चेहरे पर
हजारों चिन्ह हैं,

कुछ खाश
कुछ उदास
कुछ निराश
ऐसे ही मानव
के दुनियाँ में
लाखों रूप हैं,

कहीं निराशा
छट रही है
तो कहीं पर
बिछ रही है,

कहीं खुशियों की
चहलकदमी है
तो कहीं छाई
गमों की गर्मी है,

करे शिवम अब
क्या जब दुनियाँ
में छाई ही बेदर्दी है,

   
10-*मुशाफिर हूँ*

मैं मुशाफिर हूँ
     न रूकता हूँ
       न ठहरता हूँ
बस चलता हूँ 
   तेरे कदमों की आहट से
बस मैं तो सिसकता हूँ,

ठिकाना है
          न मंजिल है
मुझे बस चलते जाना है
न रोता हूँ न हँसता हूँ
  महज गीत के तारों से
दुनियाँ को आजमाता हूँ,

  न नजरें मिलाता हूँ
न किसी से टकराता हूँ
बस अपनी मंजिल
     को पाने को
ये गीत गुनगुनाता हूँ,

मुशाफिर हूँ मैं घायल हूँ
नहीं मरहम लगाता हूँ
कुछ शब्दों की सीढ़ी से
    गहराईयों में
     उतरता जाता हूँ,

11-  *हजारों जबाव*

वो हवाओं से भीगे
   दिन भी मेरे आज हैं
वक्त के नीचे दबे
खुलते सभी ही राज हैं,

क्या भरोसा कर सकूँ
जिंदगी और मौत का
कभी न दोनों साथ हैं
टिकती भी न वो पास हैं,

कोशिश हजारों नाकाम हों
मौत का उत्तर भी मौत है
क्या करूँ उससे मैं प्रश्न
देती हजारों जबाव है,

12-*चलूँ हवाओं में*

हवाओं ने मुझे
वो सफर है कराया
जो सोचा न था कभी
   वो याद है कराया

चलती हवाओं ने
समुद्र की लहरों
में है घुमाया
कंकीङीले, पत्थरों, बंजरों
में मुझे है चलाया

फिर भी हवाओं ने मुझको
     न दर्द है
महसूस कराया
रेत के रेतीले पहाड़
पर चढ़कर
गिरा हूँ फिसलकर नीचे
आवाज सी बनकर
हुए थे जख्म जो हल्के
वो हवा ने पल भर
में भर डाले

13- *अनजाना मैं*

उस दर्द से रूबरू था
अपनों से दूर था
वक्तों की महफिल में
वो वक्त न मेरा था

मैं समझूँ दुनियाँ को
दुनियाँ न समझे मुझको
चलता हूँ तूफानों में
महसूस न होती हवा है

घूमू मैं ऐसे हवा में
   जैसे कैथे को
खाता हाथी है
सबको महसूस हो ऐसे
जैसे ठण्डक
    देती हवा है

हवाओं का चलना
मौसम ही है
वक्त को ठहराना
बस में नहीं
तूफानों में साहिल
को जलाना
हर एक हाथों में
था दम ही नहीं

14- *राहों में मन*

मैं ऐसी जगहों पर रहता
जहाँ रहता न कोई है
मैं ऐसा आवारा झोंका
   बनकर हूँ बहता
जहाँ बहता न कोई है

गाँव की गलियों से होकर
शहर में चंद दिन ठहर जाता हूँ
मिलकरके अपने देश से
विदेश चला जाता हूँ

लिपटकर हवा के झोंकों में
आसमान में पहुँच जाता हूँ
मिलकर आसमाँ से अंतरिक्ष को निकल
   जाता हूँ

पानी में उतरकर नहरों में कूद जाता हूँ
भरता है मन जब लम्बी छलाँगे
तो समुद्र में पहुँच जाता हूँ

रास्तों को मेरा मन है चाहता
भरी भीङ वाले रास्ते में
मन को छोङ देता हूँ
फिर चलते रास्तों में मन
को नहीं ढूँढ पाता हूँ

15 - *राही अकेला*

चलता हूँ बस अकेला
मिलता न साथ तेरा
जो साथ थी हवाएँ
वो भी अब विपरीत हैं
खींचती हैं पीछे
मकानों हम डोर हैं

हम खुद न जान पाते हैं
कहाँ खो जाते हैं
सोच के समुन्दर में
होते जो तूफान हैं
वो बनते आँधियों से हैं
चलते तेज तूफानों से
निकलती जो आवाज है
लगता है मेरे दिल की
बस यही पुकार है

16-   *हवाओं के महल*

मासूम था चेहरा जो मेरा
मिला फूलों से
  दिया मुझको
फूलों ने काँटो में रहकर
जीना सिखा दिया मुझको
  हवाओं के महल
में दिखे जब दरवाजे
घुसकर बैठ गया
उसमें कहानी बनाने

उस कहानी को
सामने लिख लाया
हूँ सामने तुम्हारे
पढ़कर मन खिल
उठा तुम्हारा
सैर करूँ मैं
जैसे धूप में हो छाया

17-   *किसान दुर्दशा*

1 -हाँफकर भी श्वास लेता है
सब उगा कर भी
   भूखा सोता है,
मन उमङता है
चिल्लाता है
फिर खुद ही समझाता है
क्योंकि सुनाने के लिए कोई पास नहीं होता है,

जिंदगी की दौङ में
दौङकर भी सबसे पीछे रहता है
हाँ हाँफकर भी श्वास लेता है।

2- पानी पीने की जगह
तपती धूप में खून को पसीना बनाकर बहाता है
जरा सी प्रकृति की मार में
वो अपने हाथों में कुछ नहीं बचा पाता है,

क्यों होती किसानों की दुर्दशा है,
जब सारा संसार उन्हीं
पर टिका है,
हाँफकर भी श्वास लेता है।।

18-  *छू लो आसमान "

उङते आसमाँ में पंछी
धरती वालों से कहते हैं
जरा सोच अब
    मन में कर लो,
मन के अरमान भी
    ऊँचे कर लो
उङना सीखो
मेरे जैसे ख्वाबों के पंख
लगाकर तुम,
जरा ख्वाब भी होंगे तेरे
तो सपने सच
कर लोगे तुम,
उङते रहो सदा
आसमान में,
नभ, तारे भी छू लो तुम,
ख्वाबों के आगे
हारी है गरीबी
अरमानों को सच
कर लो तुम ।।

19-  " मैं नदी हूँ "

सिसकती हूँ, मचलती हूँ,
कई मौकों पर गरजती हूँ,
उलझती हूँ फिर भी हर रोज मंजिल
की तरफ बढ़ती हूँ,
मैं नदी हूँ...
कभी किनारों पर,
कभी गहरे दरियों पर,
हर रोज नए लोगों से मिलती
और बिछङती हूँ,
मैं नदी हूँ...
पता नहीं मेरा प्रेमी
मुझसे छूटा है या रूठा है,
उसी की तलाश में मेरा
हर पल बीता है,
रात-दिन की बिन परवाह किए
मैं अकेली ही बहती हूँ,
    मैं नदी हूँ...
कहीं कल-कल की आवाज तो
कहीं छल-छल की आवाज
मैं सुनती हूँ,
फिर प्रेमिका की तरह
खुद से ही लरजती हूँ,
मैं नदी हूँ...

~  शिवम अन्तापुरिया

Saturday, June 15, 2019

*समस्याओं ने घेरा*

समस्याओं ने मुझे
  इस भाँति घेरा
रात सा दिन हो गया
   शाम सा लगने
     लगा सवेरा

न डरा और न रुका
  मैं चल दिया हूँ
   उससे लड़ने अकेला
थामा जो साहस का दामन
    तो बढ़ गया
   हौंसला फिर मेरा

कील कंकड़ पत्थरों ने
  रोकना चाहा मुझे
रूक सका न मैं कहीं
मैं डरा अंधकारों से नहीं
   हो गया है कारगर
जब सारी दुनियाँ से
हूँ जंग मैं लड़ा

कवि शिवम अन्तापुरिया
उत्तर  प्रदेश

कवि होने के नाते
सोते समय जब पी लेता हूँ
     पानी
तो बस जी लेता हूँ
एक कहानी
-शिवम अन्तापुरिया

*नज़्म पेश करता हूँ*

है इन्शान दुनियां में न कोई अब
वो तड़पती रही,चीखती भी रही
हवश का शिकार भी होती रही
न सुरक्षित दिखे़ं
    दुधमुहीं बेटियाँ भी अब

लोग कहते हैं,कपड़े इनके छोटे हुए
तब से दुष्कर्म इनपर हैं होने लगे
पूछता हूँ दरबारों से अब,
    *एक सवाल मैं*
कैसे मासूम (ट्विंकल) को
     साड़ी पहना दूँ अब

#मासूम_टविन्कल
को #नमन

आज फ़िर कोई हवशी है कातिल बना
काम मौलाना है, फ़िर भी जाहिल बना
   जान है फ़िर गई एक मासूम की
साथ  इज़्ज़त का भी है ज़नाज़ा उठा
हाथ भी काटे हैं, पैरों को भी काटा
सारी हद पार की, आँखो को भी नोचा
बर्बरता यही पर भी न है रुकी
सारे शरीर को भी खोखला है किया

शिवम अन्तापुरिया

जुल्म वो नहीं होते साहब !
जिन्हें तुम जुल्म कहते हो
जुल्म वो होते हैं
जिन्हें तुम सिर झुकाकर
सहते हो।
संवेदना
*ट्विन्कल* के लिए

शिवम अन्तापुरिया

"अपराध के फ़ैलते पाँव"

अपना भारत देश जिस  सभ्यता व संस्कृति के लिए जाना जाता है
दुनियां भर में अब मुझे वो सब  लुप्त होता दिख रहा है,
इन्शान के अन्दर इन्शानियत तो बिल्कुल ही मर चुकी है
"इन्शान का इन्शान दर्द समझे
वो अब इन्शान कहाँ रहा,
इन्शानियत को खाने वाले दिख रहे हैं हैवान, अब ऐसा माहौल बन रहा "
विश्वास के पात्र में धोखा का भोजन परोसा जा रहा है
सबसे बड़ी बात तो ये है कि आज के युवा अपराध की ओर ज्यादा बढ़ रहे हैं जिससे मुझे ये आभास हो रहा है कि आधुनिक युग के बच्चों को संस्कार सिखाने की जगह उनको अपराध दिखाने व उनके कड़े परिणामो से अवगत कराना होगा ताकि वो अपराध की ओर कदम रखने से पहले एक बार सोचे जरुर,संस्कार की जगह अपराधो से अवगत कराने को मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज के बच्चों को संस्कार तो सिर्फ ढोंग-धतूरा लगता है उन्हें ये लगता है जो मै कर रहा हूँ बस वही सही है युवाओ को जब तक जुर्म के बारे में पता नहीं होगा की कौन से जुर्म में कानून की कौन सी धारा व दंड का प्रावधान है तब तक उनके अन्दर डर पैदा नहीं होगा,
अपने देश में बढ़ते बलात्कार ज्यादातर युवाओ की ही तो देन है
अगर ये अपने परिवार और घर के सम्मान,संस्कारो पर जरा भी ध्यान दिया करे तो ऐसे कदम कभी नहीं रखें,
अभी टविन्कल के साथ घटी घटना सबके जुबा पर है उसपर
सिर्फ़ इतना ही कहून्गा

मासूम टविन्कल को नमन

आज फ़िर कोई हवशी है कातिल बना
काम मौलाना है, फ़िर भी जाहिल बना
   जान है फ़िर गई एक मासूम की
साथ  इज़्ज़त का भी है ज़नाज़ा उठा
हाथ भी काटे हैं, पैरों को भी काटा
सारी हद पार की, आँखो को भी नोचा
बर्बरता यही पर भी न है रुकी
सारे शरीर को भी खोखला है किया ।

कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश

कोई लाचार है
कोई बीमार है
मेरे पास सिर्फ़
मोहब्बत ही
इ लाज़ है
शिवम अन्तापुरिया

वो चाहत का मेरी
आशियाना बना दे
मोहब्बत से दिल की
महफ़िल सजा दे

मैं था अधूरा उन
वादियो में अब
जरा महकता हुआ
मुझको उपवन बना दे

~•शिवम अन्तापुरिया

~क्या है दुश्मनी तेरी
ये मुझसे इस जहाँ में अब
तू मुझको मार सकती है
मैं तुझसे जीत सकता हूँ

हिमाकत की फ़िजाओ में
  मैं रहने लगा हूँ अब
अदाओ से भरी दुनियां से
मैं डरने लगा हूँ अब

शिवम अन्तापुरियाhttps://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/shivam-antapuriya-hisse-men-maanhttps://shivamantapuriya.blogspot.com/2019/01/blog-post_45.htmlवो चाहत का मेरी
आशियाना बना दे
मोहब्बत से दिल की
महफ़िल सजा दे

मैं था अधूरा उन
वादियो में अब
जरा महकता हुआ
मुझको उपवन बना दे

~ शिवम अन्तापुरियाकैसन लागी मेरे इश्क की झङियाँ ।
    सुनो मेरी रनियाँ-सुनो मेरी रनियाँ ।।
प्यार में तेरे मर मिट जाएँ
       बिना तुहरे हम जी भी न पाएँ,
कब तू बनैलू हमरी दुल्हनियाँ-2
सुनो मेरी रनियाँ-सुनो मेरी रनियाँ......
बफाई मेरे रंग रंग में बसी है
      तेरे बिना जीना न जिंदगी है..
तेरे बिना कैसे लूँ अंगडाइयाँ-2
सुनो मेरी रनियाँ-सुनो मेरी रनियाँ....
प्यार मेरा लिए बैठा इश्क की कहानियाँ
तू अनजान क्यों बने मेरी रनियाँ..
सुनो मेरी रनियाँ-सुनो मेरी रनियाँ...
कैसन लागी मेरे इश्क की झङियाँ ।
सुनो मेरी रनियाँ-सुनो मेरी रनियाँ ।।
लेखक/कवि/शायर
    शिवम यादव अन्तापुरियाhttps://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/shivam-antapuriya-shayariबहुत बढ़े बहुत बढ़े राज़ दिल में दफ़ना रखे हैं,
इसीलिए तूफ़ानो में चिराग जला रखे हैं,
शिवम अन्तापुरियातू मुझसे दूर इतनी है
मैं तेरे पास रहता हूँ,
मैं भली और भाँति कहता हूँ,
मैं तेरे दिल में रहता हूँ,
शिवम अन्तापुरियातुम्हें सौगंध है उन ताबूतों जिन्होंने जानें गँवाईं है।
छोड़कर घर वार भी अपना,जिन्होंने सरहदे सजाईं  हैं।।
शिवम अन्तापुरियाhttps://myhindiweb.blogspot.com/2019/05/blog-po

हँसी खुशी में तो सब कोशो दूर       तक चले जाते हैं
गम का बोझ सिर पर रखकर कोई दो कदम चलकर दिखाए

...-शिवम अन्तापुरिया

वो तो बेकार है इस शहर के लिए,
वो तो ज़हर है इस शहर के लिए
शिवम अन्तापुरिया

*मौन शक्ति*

जो भी पाना है तुम्हें
सब कुछ मिल जाएगा
आसमाँ भी थोड़ा
झुक जाएगा
मुझे बस मौन रहना है

लोग बुरा कहते हैं
वो डराते हैं
वो आलोचना करते-करते
जीत कर भी हार जाएंगे
मुझे बस मौन रहना है

कष्ट सहकर,दर्द सहकर
मुझे मंजिल की ओर जाना है
टूटे गर मौन भी मेरा तो
मुझे बस मुस्कराना है
मुझे बस मौन रहना है

मौन दुनियां की सबसे
बड़ी शक्ति है
जिसका मुझे उपयोग
करना है
इसे पाना सबसे साधारण है
मुझे बस मौन रहना है
-
~•कवि शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
+919454464161

मुश्किलों में कोई दोस्त
  दरम्यान नहीं आए
और तुम्हें गर अब भी
    समझ नहीं आए।
साहब!
तो बस समझ लेना
तुम्हारा दिमाग एक
बंद कमरा है
जिसमें ईश्वर ने कोई
दऱ़वाजे नहीं लगाए।।

- कवि शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश

वो बचपन की शैतानी अब बन चुकी है कहानी
      अब बचपन बना है जिंदगी
जो बस चलते चलते ही है बितानी

मुश्किलों में कोई दोस्त
  दरम्यान नहीं आए
और तुम्हें गर अब भी
    समझ नहीं आए।
साहब!
तो बस समझ लेना
तुम्हारा दिमाग एक
बंद कमरा है
जिसमें ईश्वर ने कोई
दऱ़वाजे नहीं लगाए।।

- कवि शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश

Monday, June 10, 2019

कविता

*समस्याओं ने घेरा*

समस्याओं ने मुझे
  इस भाँति घेरा
रात सा दिन हो गया
   शाम सा लगने
     लगा सवेरा

न डरा और न रुका
  मैं चल दिया हूँ
   उससे लड़ने अकेला
थामा जो साहस का दामन
    तो बढ़ गया
   हौंसला फिर मेरा

कील कंकड़ पत्थरों ने
  रोकना चाहा मुझे
रूक सका न मैं कहीं
मैं डरा अंधकारों से नहीं
   हो गया है कारगर
जब सारी दुनियाँ से
हूँ जंग मैं लड़ा

कवि शिवम अन्तापुरिया
उत्तर  प्रदेश