लेखन का कदम क्रम - 2
*बोझ तले*
बहुत सारी ख्वाहिसो का
बंधन है
अरे शिवम इन कवियों के
माथे लगा ही राष्ट्र का बंदन है
देश का बोझ है
दुनियां का बोझ है
समाज़ का बोझ है
जाति का बोझ है
अब कुछ न पूछो
सब घर सहित
बोझ ही बोझ है
खुद की जिंदगी को
ढो रहे हैं
दूसरो को ढोने को
मंजिल बता रहे हैं
हम कवि तो कवि ठहरे
गहराईयों में भी
राष्ट्र भूमि का गीत
गा रहे हैं
-कवि शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
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