*नज़्म पेश करता हूँ*
है इन्शान दुनियां में न कोई अब
वो तड़पती रही,चीखती भी रही
हवश का शिकार भी होती रही
न सुरक्षित दिखे़ं
दुधमुहीं बेटियाँ भी अब
लोग कहते हैं,कपड़े इनके छोटे हुए
तब से दुष्कर्म इनपर हैं होने लगे
पूछता हूँ दरबारों से अब,
*एक सवाल मैं*
कैसे मासूम (ट्विंकल) को
साड़ी पहना दूँ अब
#मासूम_टविन्कल
को #नमन
आज फ़िर कोई हवशी है कातिल बना
काम मौलाना है, फ़िर भी जाहिल बना
जान है फ़िर गई एक मासूम की
साथ इज़्ज़त का भी है ज़नाज़ा उठा
हाथ भी काटे हैं, पैरों को भी काटा
सारी हद पार की, आँखो को भी नोचा
बर्बरता यही पर भी न है रुकी
सारे शरीर को भी खोखला है किया
शिवम अन्तापुरिया
जुल्म वो नहीं होते साहब !
जिन्हें तुम जुल्म कहते हो
जुल्म वो होते हैं
जिन्हें तुम सिर झुकाकर
सहते हो।
संवेदना
*ट्विन्कल* के लिए
शिवम अन्तापुरिया
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