Wednesday, December 11, 2019

चले जाओ

खिड़कियों से बुरे लोग आने लगे 
उनको अच्छे खाशे जब ताने मिले 
जिन्दगी के सबब हैं नहीं छूटते 

वो अपने आप ही अब मुस्कुराने लगे

" चले जाओ "

छोड़ कर चले जाओ 
मुझे कोई गुरवत नहीं 
मगर दिल के खातिर 
एक दुआ दे दो अभी 

मैं हूँ अकेला अकेला 
देखना अब तुम्हें है नहीं 
मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा हूँ 
ये अब न सोचना कभी 

क्या क्या मुझपे बीता 
कैसे कैसे हूँ मैं जीता 
फ़िकर हूँ करता नहीं 
खुल से मुँह मोड़ता नहीं 

       रचयिता
 शिवम अन्तापुरिया 
     उत्तर प्रदेश

दो अधिक रचना

चलो अब क्या बताएं हम
 यहाँ क्या होने वाला है 
किसी पर छाई मायूसी
 किसी को गम ने मारा है 
कहते लोग दुनियाँ में 
यही सब बोलबाला है 
सहेंगे जुर्म कब तक हम 
अगर ये होने वाला है 

शिवम अन्तापुरिया

तुम आए तो महफ़िल में शाम ए जान आ गई 
जिनके अब तक बन्द थे होंठ अब उनमें भी जान आ गई 

शिवम अन्तापुरिया

जिन्हें हम उठाने की कोशिश करते हैं 
वही मुझे गिराने की कोशिश करते हैं 

   शिवम अन्तापुरिया
जिन्हें हम उठाने की कोशिश करते हैं 
वही मुझे गिराने की कोशिश करते हैं 

   शिवम अन्तापुरिया

" सर्द हवाएँ "

यही तो ओस की बूँदे,
मुझे अवगत करातीं हैं 
नमीं कितनी है मौसम में 
सभी को ये बतातीं हैं 

   कहीं की सर्द हवाएँ 
सदा मुझसे ही मिलतीं हैं 
कहें क्या हम उनसे अब 
वो दुआ रब से करतीं हैं

कोई नफ़रत से जीता है 
कोई खुशियों में पलता है 
हिफ़ाजत मेरी करती है 
और मुझको ही डराती है 

    रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

" फ़ूल मेहँदी के "

आज फ़ूल मेहँदी के बने तेरे हाथों में थे
तुझे समझना जज्बात मेरे आंखों में थे 
जिन्दगी मिली है और गुज़र जायेगी 
साथ देना न देना फ़ैसले तुम्हारे दिल की अदालत में थे 

शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

मन भावन चित्र सुहावन 
   पावन दर्पण है 
तेरे मुखाड़े को देख 
मन प्रफ़ुल्लित है 
मन रीझ गयो तेरी 
सोभा पे है 
भूलना चाहे अगर शिवम 
तो तुझको भूल न पावत है 

शिवम अन्तापुरिया 
  उत्तर प्रदेश

Monday, December 2, 2019

याद इतना मुझे तुम नहीं कीजिए. भविष्य बताएगा

याद इतना मुझे तुम नहीं कीजिए 
आंख फ़ड़कें मेरी ऐसे न सताया कीजिए 
याद ज्यादा मेरी आए तुमको अगर 
इनकमिंग है शुरु काॅल कर लीजिए 

©®शिवम अन्तापुरिया

ये तो भविष्य बताएगा शिवम 
जब कफ़न में तिरंगा आएगा

शिवम अन्तापुरिया

शिवम यह तो भविष्य बतायेगा,

जब कफन में तिरंगा आयेगा।

काम न मोदी आयेंगे

दिल के अरमान दिल में छुपे रह गए 
प्यार के वास्ते वो बंधे रह गए 
कोई तो कहे 
           क्या कहे 
हम कहें 
             या वो कहे 
किसी के दिल 
           की बात यार 
हम क्यों कहें 
हम उसके कैसे हो जाए 
जब मुझे हज़म नहीं होता

बातें जो थीं छिड़ीं वो छिड़ीं रह गईं 
उनके चाहत की हस्ती सजी रह गई 
प्यार में हम नहीं इतने मशहूर थे 
जितनी बेवफाई मुझको सुर्खियाँ मिल गईं
©®शिवम अन्तापुरिया

काम मोदी नहीं योगी जी आयेंगे 
गाँव और वो गली में
 नहीं आयेंगे 
बात आयेगी इन्शानियत की अगर 
काम गाँव के ही इन्शान आयेंगे 

©®शिवम अन्तापुरिया

मुक्तक

बीतते शाम के रात आ जाएगी 
तुम आ जाओगे प्यास बुझ जाएगी 
ये तो सफ़र हैं कहाँ तक ले जाएंगे 
जिन्दगी क्या है तब समझ आयेगी 

 ताँका झाँका नहीं कीजिए 
जिन्दगी को खुशी से जी लीजिए 
आज हैं हम यहाँ कल कहाँ जाएंगे 
आप खुद से जरा ये सवाल कीजिए 

भारत के युवाओं 
एक बार हम जागे फ़िर ऐसे सुलाए गए 
कि अब तक जाग नहीं पाए हैं 

जय हिंद 

शिवम अन्तापुरिया

हम खुशी हो गए वो मौन हो गए 
 चलते चलते प्यार में ही उसके
मुझसे सारे रिश्ते खतम हो गए 

शिवम अन्तापुरिया

चल दिए हम सफ़र छोड़ करके सभी।
अपनी मन्ज़िल तक न पहुँचे थे अभी।।
" गीत "

1- छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- अब है जाना तुम्हें
 तो चले जाइए 
अब ये नज़रे न 
हमसे मिलाना कभी...

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- न ही हम दूर थे 
न ही तुम दूर थे 
एक दम क्या हुआ 
तुम बिखर से गए....

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

2- कोई दीवाना कहे 
कोई फ़साना कहे 
तुम मोहब्बत में 
कैसे जकड़ से गए...

छोड़ कर प्यार की 
राह तुम चल दिए 
इस कदर तेरा जाना 
न हम सह सके...

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश


शिवम अन्तापुरिया

कल 28/11/19 को मध्य प्रदेश के अखबार राष्ट्रीय नवाचार में भी प्रकाशित लेख

किसान हित में 

पैदा होती बेरोजगारी

"पैदा होती बेरोजगारी"

हम निपट हैं रहे बेबशी से यहाँ 
रोज़ है पैदा होती बेरोजगारी यहाँ 
  जेबें खाली हुईं हार मानी नहीं 
जिंदगी है चिता बन रही अब यहाँ 

जेबें फ़ट भी जाएँ मलाल ही क्या 
कौड़ी है ही नहीं तो गिरेगी क्या 
बेरोजगारी से लड़ते लड़ते रहेंगे 
गर मर भी गए तो होना ही क्या 

हम तो बेकार हैं और लाचार हैं 
जिंदगी में सही अब मिले यार हैं 
जिंदगी जो बची वो गुजर जाएगी 
बस बचे अब मेरे काम दो-चार हैं 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

हम क्या करें

"हम क्या करें"

उनको खुद से ही 
फ़ुरसत नहीं है 
मुझे देखने की 
चाहत नहीं है 

अपने दिल के ख्वाब 
   सभी सामने रखने 
बिन पूछे ही बताने की 
   मेरी आदत नहीं है 

वो मानते ही नहीं 
   कि हम उनको 
     चाहते ही नहीं 
जबरन समझाने की 
है मेरी आदत नहीं 
बिल्कुल फ़ितरत नहीं 
सोच सकता नहीं 
क्यों वो मानता है नहीं 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश