उनको अच्छे खाशे जब ताने मिले
जिन्दगी के सबब हैं नहीं छूटते
वो अपने आप ही अब मुस्कुराने लगे
" चले जाओ "
छोड़ कर चले जाओ
मुझे कोई गुरवत नहीं
मगर दिल के खातिर
एक दुआ दे दो अभी
मैं हूँ अकेला अकेला
देखना अब तुम्हें है नहीं
मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा हूँ
ये अब न सोचना कभी
क्या क्या मुझपे बीता
कैसे कैसे हूँ मैं जीता
फ़िकर हूँ करता नहीं
खुल से मुँह मोड़ता नहीं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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