Wednesday, December 11, 2019

चले जाओ

खिड़कियों से बुरे लोग आने लगे 
उनको अच्छे खाशे जब ताने मिले 
जिन्दगी के सबब हैं नहीं छूटते 

वो अपने आप ही अब मुस्कुराने लगे

" चले जाओ "

छोड़ कर चले जाओ 
मुझे कोई गुरवत नहीं 
मगर दिल के खातिर 
एक दुआ दे दो अभी 

मैं हूँ अकेला अकेला 
देखना अब तुम्हें है नहीं 
मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा हूँ 
ये अब न सोचना कभी 

क्या क्या मुझपे बीता 
कैसे कैसे हूँ मैं जीता 
फ़िकर हूँ करता नहीं 
खुल से मुँह मोड़ता नहीं 

       रचयिता
 शिवम अन्तापुरिया 
     उत्तर प्रदेश

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