हम निपट हैं रहे बेबशी से यहाँ
रोज़ है पैदा होती बेरोजगारी यहाँ
जेबें खाली हुईं हार मानी नहीं
जिंदगी है चिता बन रही अब यहाँ
जेबें फ़ट भी जाएँ मलाल ही क्या
कौड़ी है ही नहीं तो गिरेगी क्या
बेरोजगारी से लड़ते लड़ते रहेंगे
गर मर भी गए तो होना ही क्या
हम तो बेकार हैं और लाचार हैं
जिंदगी में सही अब मिले यार हैं
जिंदगी जो बची वो गुजर जाएगी
बस बचे अब मेरे काम दो-चार हैं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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