Sunday, February 16, 2020

इत्तेफाक with radio

"इत्तेफ़ाक"

सैजला बिल्कुल एक सीधी-साधी लड़की थी,जिसे सब कुछ अच्छा लगता है सिवाय नफ़रत के,ऐसा भी कुछ नहीं था कि उसे सब कुछ प्यार ही दिखता हो बल्कि उसे खुद अपने आप  से ही बहुत प्यार था फ़िर उसकी जिंदगी में किसी और के आने का हक़ कैसे हो सकता था,लेकिन ये जिंदगी किसे,कब,कैसे,कहाँ लाकर खड़ा कर दे कोई नहीं जानता कुछ ऐसा हुआ था सैलजा के साथ वो अपनी जिंदगी बड़े सुकून से जी रही थी न किसी की फ़िकर, न किसी का डर, हाँ ऐसा ही होता है, जब हम बिल्कुल अपने आप को फ़्री फ़्रीडम कर बैठते हैं, मगर जिंदगी में जिस पल से प्यार शब्द उग आता है उसी दिन से सारा सुकून एक उल्फ़त में बदल जाता है हाँ कुछ ऐसा हुआ था सैलजा के साथ क्योंकि जब हम प्यार की राह पर चलने लगते हैं तो तब हमें खुद पर भी खुद का अधिकार नहीं रह जाता है,शायद इसी को दुनियाँ सच्चा प्यार कहती है, आज सैलजा अपने कॉलेज कोई अपने निजी काम से नहीं बल्कि अपनी फ़्रेंड निया के जबर्दस्ती करने पर गई थी, क्योंकि सैलज़ा आज के एक साल पहले ही वो काॅलेज से पढाई करके पास आऊट हो चुकी थी,आखिर अब वो क्यों जाती है पुरानी यादों में लौटकर खुद की आंखों में नमी लाने क्योंकि पढ़ाई के दिनों में ही उसे अपने जिस प्यार पर भरोसा किया था उसी में धोखा मिला था, सैलज़ा तभी से इतनी सीधी और सरल हो गई थी, क्योंकि अब वो उस राह पर नहीं चलना चाहती थी,लेकिन निया की बात भी वो कैसे टाल सकती थी क्योंकि वो हर बात निया को बताए बिना नहीं रह पाती थी, आखिर निया के साथ सैलज़ा जाने तैयार हो गई, निया ने जैसे ही काॅलेज के अन्दर अपने कदम रखे उसे बीता कल अपना याद आने लगा, सैलज़ा अपने पिछले प्यार में कोई चेहरे पर शांति का मुखौटा ओड़े अपने आप खोई हुई धीमे कदमों से जा रही थी वो पुरानी यादों में इतनी मशगूल हो गई कि सामने आते सुभाष का उसे आभास तक न हुआ और उससे टकरा गई दोनों ने बिना गुस्सा किए एक-दूसरे को बड़े ही प्यार के भाव से देखा अब ये समझो कि सुभाष और सैलज़ा नहीं टकराए थे बल्कि दोनों दिल एक दूसरे से मिले थे अब ऐसा प्रतीत हो रहा था इसे इत्तेफाक ही समझो कि आज वैलेन्टाइन डे था 
इसे कहते हैं प्यार का अन्जान रास्ता होता है वो पहली ही क्षण मात्र की मुलाकात में एक-दूसरे के ऐसे हुए की बात साथ जन्मों तक के रिश्ते में बंध गए, 
ऐसे होता है प्यार क्योंकि प्यार कभी भी उम्र का,जाति का,धर्म का या धन का मोहताज़ नहीं होता जो सच्चा प्यार होता है,आखिर ये इत्तेफ़ाक ही तो था 
वो क्यों जाती निया के साथ जब वो सब भूल चुकी थी ये संयोग था  क्योंकि उसका प्यार उसे पुकार रहा था आज फ़िर इस वैलेन्टाइन डे पर दो अजनबी दिल एक-दूसरे के आधीन हो गए और बन गया एक और प्यार का रास्ता।

    लेखक 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

"राहें बताती रही"

"राहें बताती रही"

मैं कहता रहा वो सुनती रही 
जिंदगी की हर कली खिलती रही 
हम उसे अपना अपना कहते रहे 
वो आँखों से आँखें मिलाती रही

ऐ़ त़जुर्बा नहीं है मोहब्बत का मुझे 
वो रोज़  मोहब्बत सिखाती रही 
  हम कहाँ थे कहाँ आ गए हैं 
  वो मुझको राहें बताती रही 

ख़्वाब और सपने बड़े उसके भी हैं 
हम समझते थे हम अकेले ही हैं 
ये जिंदगी कहाँ क्या कर जाए 
हम ऐसी राहों पर चलते ही हैं 


~  शिवम अन्तापुरिया
 कानपुर उत्तर प्रदेश

मैं नदी हूँ

" मैं नदी हूँ "

सिसकती हूँ,
 मचलती हूँ,
कई मौकों पर 
गरजती हूँ,
उलझती हूँ 
फिर भी हर 
रोज मंजिल की
 तरफ बढ़ती हूँ,
मैं नदी हूँ...
कभी किनारों पर, 
कभी गहरे दरियों पर,
हर रोज नए 
लोगों से मिलती 
और बिछङती हूँ,
मैं नदी हूँ...
पता नहीं मेरा 
प्रेमी मुझसे छूटा 
है या रूठा है,
उसी की तलाश में मेरा
हर पल बीता है,
रात-दिन की बिन 
परवाह किए मैं 
अकेली ही बहती हूँ,
मैं नदी हूँ...
कहीं कल-कल
 की आवाज तो 
कहीं छल-छल 
की आवाज
मैं सुनती हूँ,
फिर प्रेमिका की तरह
खुद से ही लरजती हूँ,
मैं नदी हूँ...

~ रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश
+919454434161
+919519094054

देख रहा हूँ

"देख रहा हूँ"

 कितनों के साथ अधूरे हैं 
    कुछ पूरे हुए अधूरे हैं 
यही फ़लसफ़ा चलता रहे 
होंगेे अधूरे ख्वाब भी पूरे हैं 

दुनियाँ मुझको समझ रही है 
 मैं भी उनको समझ रहा हूँ 
जीवन की निर्णायक मंजिल 
अभी उसपर ही भटक रहा हूँ 

उसने प्रेम पत्र लिख लिख भेजे
 मैं उनको अब पढ़ भी रहा हूँ 
जीवन की बहती धाराओं में 
खुद को भी अब देख रहा हूँ 

         रचयिता 
~ शिवम अन्तापुरिया
 कानपुर उत्तर प्रदेश

स्टार कैसे बनते

चार लाईन पढूँगा उसी में 32 इशारे करूँगा 
समझ हो तेरी फ़ितरत में तो समझ लेना 
वर्ना मैं तो अकेला ही रहूँगा 

शिवम अन्तापुरियातुम' '*, हो मैं # ही सही,
न * के बिना काम चलता है न # के बिना 
अगर फोन रखते हो तो.....
अगर हम #ही न होते तो तुम * कहाँ से बनते..

नवाबों का शहर तहज़ीबों की गलियाँ
आज जा रहे हैं छोड़ करके ये गलियाँ 
वक्त ए़ मोहब्बत ऐसे हीे साथ देना 
फिर से ज़ल्दी बुलाएँ ये गलियाँ 

शिवम अन्तापुरिया

जो कह नहीं पाए

"जो कह नहीं पाए"

लिख दिए वो खत तुम्हें जो कह नहीं हम पाए थे 
वो कठिन सा दौर था जो सह नहीं तुम पाए थे 
जिंदगी में एक घड़ी वो और आने वाली थी 
दर-बदर भटके फ़िरे तुम न खोज हमको पाए थे 

हम तुम्हारे हो गए और तुम हमारे हो गए 
रास्ते मंजिल वहीं थीं तुम किनारे हो गए 
ये सफ़र था कुछ कठिन और तुम सरल को मुड़ गए 
जीत कर भी हारे हम थे तुम फ़िर हमारे हो गए 

नाम क्या दें इस सफ़र का क्या मोहब्बत है यही 
उसने पगला कह दिया और खुद भी पगली हो गयी 
ऐ शिवम तू बच के रहना है कहानी नयी नयी...
नाम तेरा एक है और अनगिनत वो पढ़ रही...

शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश 
+91 9454434161
+91 9519094054

Monday, February 10, 2020

कैसे समझाऊँगा

"कैसे समझाऊँगा"

बिना तेरे जिंदगी नहीं जी पाऊँगा 
 नादान हैं वो कैसे समझाऊँगा 
   है जिंदगी तो अँधेरों में 
कैसे उज़ाले में ला पाऊँगा 

ये दुनियाँ हर इशारे समझ 
नहीं समझती 
सबको इससे कैसे 
वाकिफ़ कराऊँगा 

ये जिंदगी सदा चलती है रहती 
अपना पता किसे कैसे दे पाऊँगा 

   रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
  कानपुर उत्तर प्रदेश

कहानी नौकरी की तलाश

"नौकरी की तलाश"

रोहन अपनी जिंदगी में थक हार कर जिंदगी को कोशता हुआ अपने आप को भला बुरा कह रहा था आखिर मुझे क्यों बनाया भगवान ने,मुझे क्यों भेजा ये ताने मारने वाली दुनियाँ में इससे अच्छा था मुझे अपने पास बुला लिया होता, जब मैं इस भौतिकी संसार के लायक ही नहीं था,दरअसल रोहन अब एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक़ रखता है खैर वो बात और थी जब उसके परदादा जमीदार हुआ करते थे ये सब रोहन अपने पिता जी और अपने बाबा से सुना करता था कि कभी हम ऐसे थे वैसे थे फ़िर भी उसे अपने घर वालों से कोई परेशानी नहीं थी, रोहन अपनी पढाई पूरी कर चुका था और अब एक नौकरी की तलाश में था लेकिन सबसे बड़ी बात यही थी कि आज का युग और उसपर भी रिश्वत का दौर तो आजकल बहुत ही जोरों से चल रहा है,ऐसा भी नहीं है कि रोहन पढने में कमजोर हो,पढाई में अव्वल होने की वजह ये थी कि रोहन पढाई के दिनों सोचा करता था कि मुझे नौकरी बहुत ही जल्दी मिल जायेगी, लेकिन यहाँ तो कुछ और ही हुआ,अब तक रोहन बहुत कंपनियों में अपने फ़ार्म डाल चुका था लेकिन हर जगह निराशा ही हाथ लगी,आज फ़िर रोहन एक इन्टरव्यू देकर लौट रहा फ़ोन पर बेल  बज़ी उसने मैसेज को पढ़ा तो पता चला की आपका चयन नहीं हुआ है रोहन बस के शीशे में सिर टेक कर हे भगवान कहकर बैठ गया,बगल में बैठी लड़की ने रोहन से पूछ ही लिया क्या हुआ ? रोहन कुछ नहीं बोला लेकिन बार बार पूछने पर रोहन ने उदास मन से झेंपते हुए कहा न कुछ नहीं (थोड़ी सख्त आवाज़ में) ये कम्पनियों वाले भी न जाने क्या समझते हैं अपने आपको (रोहन ने धीरे से, अपने आप से कहा) लेकिन इस बार रोहन का गुस्सा खतम ही हो गया जब लड़की ने फ़िर पूछा अरे बताओ न ऐसा हुआ आपके साथ (थोड़ा लरज़ते हुए प्यार भरी आवाज़ में) अब रोहन ने एक साँस में अपनी सब कथा सुना दी ये जो दुनियां है न यहाँ सबकी किस्मत रिश्वत से ही बनती है सही ही कहा गया है कि कलयुग में "मेहनत से न किस्मत से बनता मुकद्दर रिश्वत से" रोहन ने कहा मुझे एक नौकरी की तलाश है और अब मैं बिल्कुल हताश हो चुका हूँ अब लगता कि बस रिटायरी का ही फ़ार्म भर दूँ ,लड़की ने रोहन से बातों ही बातों नाम पूछा और रोहन ने उससे लड़की ने अपना ना कलिका बताया महज़ चंद समय में दोनों एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए कलिका ने रोहन की आंखों में आंखें डालकर कहा क्या आप अपना रिज्यूम दिखा सकते हैं रोहन उसे अपना रिज्यूम दिया कलिका ने अपने पापा की कम्पनी में रिज्यूम व्हाट्सएप किया और रोहन को अब एक मेल आता है महज़ दस मिनट में कि आपको बधाई आपका सिलेक्सन हो गया है आपको मेरी कम्पनी में इन्जीनियर के पद पर कार्यभार सौंपा जाता है, अब रोहन कलिका को एक टक देखता ही रहा मानों जैसे उसमें अब जान ही न हो और जब उसका मौन टूटा तब तक कलिका की झील जैसी गहरी आंखों में भी पानी भर आया था 
और रोहन के आँशू अब तक उसके गालों को भिगाते हुए उसके शर्ट पर टप टप की आवाज दे रहे थे मानों कह रहे हो कि अब मुझे अपनी आँखों से जुदा न करो, रोहन के आँशू कलिका ने पोंछने के लिए जैसे हाथ बढ़ाया रोहन अपने सँभालते हुए कुछ कह पाता कि कलिका ने उसे अपनी बाहों में ले लिया, 
चंद क्षण में ही दोनों एक दूसरे के हो गए ।....

  लेखक 
शिवम अन्तापुरिया
  उत्तर प्रदेश

71वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ


अब हर लिबास में अच्छे लगने लगे 
कफ़न में तो सबसे अच्छे लगने लगे 
अब शायद ऐसे ही हो गए हैं हम 
तभी लोग कंधों पर लेकर चलने लगे 

शिवम अन्तापुरिया

गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 

जो खड़े हिमालय की हिम पर उनका तुम आभास करो 
एक नहीं सौ बार सदा उनकी कुर्बानी याद करो 

       Poet/Writer 
   शिवम अन्तापुरिया

बहुत हुए आदेश मैं करता हूँ फ़रमान एक जारी 
आवाम की ताक़त के आगे अब राजनीति भी हारी 
शिवम अन्तापुरिया

नाता न जोड़

"नाता न जोड़"

बहुत कुछ हुआ अब तक जिंदगी के साथ 
क्योंकि वो नहीं रह सके थे मेरे आस-पास
अपने आप पर वो गुरूर करते चले गए 
हम कोई मज़बूर न थे छोड़ दी उनकी आस

 अब वो सोचने लगे कि हम खुदा हो गए हैं 
अब तेरी जिंदगी के भी हम खुदा हो गए हैं 
हाँ जिंदगी का सफ़र बनने के सपने गढ़े थे 
ऐसा नहीं कि हम उन्हीं के सहारे हो गए हैं

 हर वक्त बदल जाएँगे जिंदगी के हर मोड़ 
तू जरा किसी से एक रिश्ता तो ले जोड़
मैं प्यार तो नहीं कर सका उसके प्यार से 
सदा कहता रहा हूँ मुझसे ये नाता न जोड़

शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

Friday, February 7, 2020

आवाज़ दे दे

"आवाज दे दे"

रहें साथ मेरे सदा साथ दें वो 
नज़र ये मिले या कभी न मिलें वो
सफ़र जिंदगी का एक तेरा मेरा 
जाओ जहाँ तुम दिखे चेहरा मेरा 

  जिंदगी फ़कत में होना यही है 
मुझे तुमको अब यूँ खोना नहीं है
 चले जाओ तुम अब दूर हमसे 
   यादों में तेरे जीना यहीं है 

कोई दिल के लफ्जों को 
   एक आवाज़ दे दे 
ऐसे किसे अपनी जिंदगी का 
   हम हकदार कह दें 

   रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

Tuesday, February 4, 2020

तलवार लिखूँगा

" तलवार लिखूँगा "

बहुत हुआ श्रंगार आज तलवार लिखूँगा 
खन खन करते तेगों की आवाज़ लिखूँगा
बहुत हुआ लैला-मज़नू को पढ़ते पढ़ते 
आज भरी महफ़िल में वीरों का इतिहास पढ़ूँगा 


आज निडर चमचमाती तलवारों का प्रकाश लिखूँगा 
कृषकों के खेतों में देशी हल की 
आवाज सुनूँगा 
बहुत लिखा इश्क,मोहब्बत पर डरते डरते 
आज नज़र से नज़र मिलाकरके 
वीरों से इश्क करूँगा 

शिवम अन्तापुरिया

बहुत लिखी आवाज़ तुम्हारी मेरी होंगी दुनियाँ की हर बात तुम्हारी मेरी होंगी जब भी याद करोगे तुम अपने यारों को उसमें सबसे पहली हिचकीं मेरी होंगी शिवम अन्तापुरिया

बहुत लिखी आवाज़ तुम्हारी मेरी होंगी 
दुनियाँ की हर बात तुम्हारी मेरी होंगी 
जब भी याद करोगे तुम अपने यारों को 
उसमें सबसे पहली हिचकीं मेरी होंगी 

शिवम अन्तापुरिया

लिबास ओढ़े हैं

"लिबास ओढ़े हैं"

  ये जिंदगी कितनी खूब है 
लड़खड़ाकर भी मुस्कुराती है 
   कोई साथ दे या न दे 
फ़िर भी मन्ज़िल की ओर जाती है 

बेवजह समस्याओं से घिर जाते हैं
 फ़िर भी उनसे दरकिनार नहीं 
    बल्कि उनसे उलझकर 
खुद को साबित निकाल लाते हैं 

  हर मंजिलें कठिनाईयों का 
      एक लिबास ओढ़े हैं 
जो पार कर जाते हैं मुसीबतों को 
    वही इतिहास रचे बैठे हैं 

    रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश