"लिबास ओढ़े हैं"
ये जिंदगी कितनी खूब है
लड़खड़ाकर भी मुस्कुराती है
कोई साथ दे या न दे
फ़िर भी मन्ज़िल की ओर जाती है
बेवजह समस्याओं से घिर जाते हैं
फ़िर भी उनसे दरकिनार नहीं
बल्कि उनसे उलझकर
खुद को साबित निकाल लाते हैं
हर मंजिलें कठिनाईयों का
एक लिबास ओढ़े हैं
जो पार कर जाते हैं मुसीबतों को
वही इतिहास रचे बैठे हैं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
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