Sunday, February 16, 2020

देख रहा हूँ

"देख रहा हूँ"

 कितनों के साथ अधूरे हैं 
    कुछ पूरे हुए अधूरे हैं 
यही फ़लसफ़ा चलता रहे 
होंगेे अधूरे ख्वाब भी पूरे हैं 

दुनियाँ मुझको समझ रही है 
 मैं भी उनको समझ रहा हूँ 
जीवन की निर्णायक मंजिल 
अभी उसपर ही भटक रहा हूँ 

उसने प्रेम पत्र लिख लिख भेजे
 मैं उनको अब पढ़ भी रहा हूँ 
जीवन की बहती धाराओं में 
खुद को भी अब देख रहा हूँ 

         रचयिता 
~ शिवम अन्तापुरिया
 कानपुर उत्तर प्रदेश

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