Friday, December 25, 2020

"यादें चाय की"

_*यादें चाय की*_ 

 _वो बचपन की चाय_ 
   _तोतली भाषा में_ 
   _माँगता वो चाय_ 

 _बचपन की यादों से_ 
 _अजपन की यादों तक_ 
 _दिल भरता है आहें_ 
 _याद करके वो चाय_ 

  _सुबह की चाय_ 
 _वो शामों की चाय_ 
 _यहाँ तक की वो_ 
 _कॉलेज के दोस्तों_ 
 _(पियूष, राघवेंद्र,धर्मेन्द)_ 
 _के साथ बीते कवि के_ 
 _पलों को तरोताजा_ 
   _करती है वो चाय_ 

     _गम में बैठकर_
    _गम को भुलाने_
_में भी अहम भूमिका_
  _निभाती है वो चाय_ 

 _इंतजार करना_ 
 _चाय का घर में_ 
 _इश्क जैसी रश्म_ 
 _पूरी करती है वो चाय_ 

 _शिवम अन्तापुरिया_ 
 _उत्तर प्रदेश_

Tuesday, December 22, 2020

"स्त्री पुरुष के बीच असमानता की खाई अभी भी है"

_"स्त्री पुरुष के बीच असमानता की खाई अभी भी है"_ 

अपने देश में स्त्रियों को देवी का रूप माना जाता रहा है,मानते भी आए हैं लेकिन वर्तमान में हमारा समाज अपने पुरखों के दिए हुए ज्ञान के कसौटी पर खरा बिल्कुल भी नहीं उतर पा रहा है इसमें अगर कमियाँ व्याप्त हुईं हैं तो इसका जीता जागता सुबूत हमारा समाज ही है, समाज ने अपनी भावी पीढ़ी को कहीं न कहीं संस्कारों से वंचित रखा है।

तभी तो देवी स्वरूप स्त्रियों की दशा आए दिन दुर्दशा में तब्दील होती जा रही है और हमारा समाज आज भी अपने मूल संस्कारों से कहीं दूर भटकता चला जा रहा है। आज भी अब भी सँभलने का एक अवसर है जिसे हम गँवाए नहीं भुनाने की कोशिस करें,

देश आजाद हुआ जिसमें किसी एक की भूमिका नहीं थी न कि मात्र देश को ही आजाद नहीं कराना था, अपना मकसद अंग्रेजों से ही आज़ाद होना भी नहीं था 
आजादी भी कई तरीके की थी जिसमें 
किसानों को जमीदारों से,निम्नवर्ग को मध्यम वर्ग से,मध्यम वर्ग को उच्च वर्ग से , आजादी चाहिए थी और स्त्रियों को अपने हक़ और पुरुषत्व की आजादी चाहिए थी। साथ ही साथ उन्हें शिक्षा का भी अधिकार मिले, उन्हें अपने फ़ैसले लेने का अधिकार मिले,

जब बात समानता की आती है तो कई जगह ऐसी हैं जहाँ तक अभी भी स्त्रियाँ नहीं पहुँच पाई हैं भारतीय न्यायालय की बात की जाए को (सी.जे.आई.) चीफ़ जस्टिस आॅफ़ इंडिया के पद पर देश को आजाद हुए सात दशक गुजर रहें हैं लेकिन एक भी महिला इस पद पर नहीं आसीन हो सकी, एक मात्र महिला हाईकोर्ट के न्यायायिक पद तज पहुँची है जिसे आप सब जानते हैं।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कई मौके ऐसे आते हैं जब न्यायायिक प्रक्रिया चलती है महिला अपने बयान एक पुरुष जज के सामने वो सटीक बातें नहीं पेश कर सकती है जो एक महिला जज के सामने बोल सकती है खैर ये तो बात अलग लेकिन भारत में उच्च न्यायलय में लगभग 1113 जज हैं जिसमें मात्र 82 महिला जज हैं पूरे भारत में सबसे ज्यादा महिला जजों का औसत हरियाणा और पंजाब में ही हैं।

        सबसे बड़ी समस्या तो तब  खड़ी हो जाती है जब आए दिन देश में स्त्रियों पर अत्याचार होने की खबरें अखबारों में छपती हैं।
वो भी जब तक बात नई रहती है या फ़िर पत्रकार उस बात को उठाते रहते हैं तब तक ही शासन के कानों आवाज़ जाती है और जैसे ही आवाज़ उठानी बंद कर दी जाती है वैसे सब शांत हो जाता है सरकार कुछ भी कानून बनाए लेकिन स्त्रियों की मुझे वही दिखती है फ़िर वो चाहें जो भी राज्य हो, किसी भी सरकार ने अपने किसी भी कानून को भले ही अमली जामा पहना लिया हो लेकिन स्त्रियों की दशा कोई परिवर्तन होता नहीं दिखता है। इस लिहाज़ हमारे समाज़ को एक बार बहुत ही गहराई में जाकर सोचने की घोर आवश्यकता है जिससे कोई न कोई हल अवश्य निकाला जा सके। क्योंकि 

 _हर समस्या का हल होता है।_
_आज नहीं तो कल होता है।।_

स्त्रियों को भले ही पुरुषों के समानता का अधिकार मिल गया हो लेकिन अगर कोई ये कहे की समाज में स्त्रियों को अब हक़ बराबर हो गया है ये मुझे बिल्कुल  नहीं लगता क्योंकि इसमें कहीं न कहीं कोई कमी जरूर छूट जाती है।
    इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता है कि स्त्रियों पर होते अत्याचार का जिम्मेदार सिर्फ़ पुरुष ही है इसमें कहीं न कहीं कुछ गलतियाँ स्त्रियों की भी सामने आती रहती हैं। मेरा मानना है कि अगर स्त्रियों को अपने स्वाभिमान को बचाना है तो वो खुद ही इतनी सशक्त बनें कि उनके विरोध में जब कोई खड़ा हो तो वो स्वंम ही विरोधी का सामना करने सामर्थवान होकर उसका सामना कर सकें, सरकारों ने स्त्रियों को हर विभाग में समानता का दर्ज़ा भले ही दे दिया हो लेकिन हर जगह किसी न किसी तरह से इनका शोषण जरूर किया जा रहा है इस बात से भी हमको अनदेखा नहीं करना चाहिए, इन्हें वो आज़ादी अभी तक नहीं मिल पाई है जिसकी इन्हें तलाश थी। स्त्रियों को जहाँ जाना होता उनके दिमाग में एक बात जरूर घर लेती है कि पुरुषों के बीच में मुझे जाना है इस बात की हिचकिचाहट सी रहती है क्योंकि स्त्री को पुरुष के नाम का डर सा भर गया है जो कि सही भी है ( ऐसा कभी भी कोई पुरुष को भी महसूस होता है क्या कि मैं स्त्रियों के बीच में जा रहा हूँ ) 
इस नज़रिये से देखा जाए तो ये काम सरकार नहीं बल्कि समाज का खुद ही है कि वो अपनी सोच  में बदलाव लाए स्त्रियों के प्रति हर स्त्री के अंदर ऐसे विचार आने चाहिए जब वो कही भी जा रही हो जैसे कि वो अपने पिता, भाई के साथ जाने में खुद को महसूस करती है अगर ऐसी सोच हमारे समाज में हो जाए तो कभी कोई भी स्त्री पर कोई भी आँच नहीं आ सकती है।
मैं एक बात ये भी कहता हूँ उन लोगों से जो स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाते हैं... उनके लिए  कि ये याद रहे पुरुषों को 

 _एक स्त्री को चरित्रहीन बनाने में_ 
 _एक चरित्रहीन पुरुष का ही हाथ होता है_ 
ये भी मत भूलिए 

      मैं पुरुषों से सवाल करता हूँ कि एक 16-20 साल की लड़की जब अपने 5-7 साल के भाई को लेकर सड़क पर निकलती है तो वो अपने आप को पूर्णतया सुरक्षित समझती है जब स्त्री पुरुषों को इतना कुछ समझती है तो हम पुरुषों को भी सोचना चाहिए कि हम भी उनकी रक्षा के लिए नहीं अपनी व समूचे समाज की सोच में बदलाव लाने की मुहिम शुरू करें अगर ऐसा एक बार हो गया न तो मुझे अपने बहन बेटियों की कभी भी सुरक्षा करने जरूरत नहीं पड़ेगी।

        लेकिन समाज में हमेशा कोई न कोई अपवाद जन्म लेते ही रहते हैं इसलिए मेरी तरफ़ से स्त्रियों को एक सलाह या शिक्षा है जिसको स्त्रियाँ जरूर अपने अंदर बैठा ले कि हर पुरुष पर आधुनिक युग में पूर्ण विश्वास साधारणतया नहीं कर लेना चाहिए क्योंकि 

दुनियाँ के हर व्यक्ति का चरित्र इस प्रकार अलग-अलग होता है।
जैसे बंदगोभी के हर पत्ते का स्वाद अलग-अलग होता है ।।

ये मानता हूँ कि हर कोई स्त्री रानी लक्ष्मीबाई,अवन्ती बाई नहीं बन सकती ।
लेकिन कितने समय कौन किसका रूप धारण कर ले ये भी नहीं कहा जा सकता ।।

 _शिवम  "अन्तापुरिया"_
     _कानपुर उत्तर प्रदेश_ 

  _+91 9454434161_

Monday, December 7, 2020

"खड़े हैं द्वार सुनो किसानों की पुकार"

"खड़े हैं द्वार सुनो किसानों की पुकार"

किसानों को इतने दिन हो गए हैं वो अपनी मांग को देकर दिल्ली पहुँच रहे हैं और सरकार उन्हें बरगलाती जा रही है कि हमने कुछ गलत किया नहीं है किसान कानून बिल्कुल सही है, मैं पूछना चाहता हूँ आखिर सरकार को कौन सी आपत्ति है जब किसान नहीं चाहते कि ये बिल लागू हो उन्हें कुछ न कुछ तो दिक्कत है ही इस कानून से तब तो वो इसका विरोध कर रहे हैं, "अगर सरकार किसानों के हित की ही बात करती हैं तो कानून को तत्काल प्रभाव से वापस ले और किसानों को उनके ऊपर छोड़ दे ये मेरी सलाह है सरकार को"
अगर ये वापस लेने में सरकार को ये लगता है कि मेरी थू थू होगी देश हँसाई होगी तो उसके लिए भी मैं उपाय ये बता रहा हूँ ।
'सरकार कहती है कि हम  बिचौलियों को खत्म करना चाहते हैं'

किसानों के बीच से हाँ आप हकीकत में अगर  किसानों के बीच से बिचौलियों को हटाना ही चाहते हैं तो फ़िर पेट्रोल,डीजल,कच्चे तेल से भी बिचौलियों को हटा दो तो किसानों का हित भी हो जाएगा आपका कानून भी हम स्वीकार कर लेंगे अगर ये आप कर देंगे तो पेट्रोल का मूल्य 32₹ से 35₹ हो जाएगा क्योंकि सरकार पेट्रोल बैरल में खरीदती है एक बैरल में 159 लीटर होते हैं और 54.58 डालर/बैरल में पेट्रोल को भारत खरीदता है अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पेट्रोल का मूल्य क्या चाहिए। 
  _"पेट्रोल का मुल्य कम्पनियां तय करती हैं ये सरकार का कहना है तो फ़िर किसानों के अनाज का मूल्य सरकार क्यों तय करती है"_ 

ये मनमानी कब तक चलाएगी सरकार जिस राज्य में चुनाव होता है तो कोरोना खतम चुनाव होते ही कोरोना बढ जाता है।


जल्द ही बिल से बाहर निकले केन्द्र सरकार ये मूषक की तरह छुपने से काम नहीं चलने वाला 
अन्दर बैठ कर ये कहना आसान है कि ... "कृषि कानून में संशोधन जरूरी, हम समपूर्णता से कर रहे संशोधन" 
ये बात भाती नहीं है जरा भी कि आप किसानों की बात सुनने से पीछे हट रहे हैं और संशोधन की बात करने लगे क्यों संशोधन जरूरी अगर बिल सही है आपका, सुधार उसमें किया जाता है जिसमें गलती होती है 
अब ये तो आपने ही स्वीकार कर लिया कि ये कानून गलत इसलिए किसानों की बात मानों और कानून वापस लो ।

अब बात करता हूँ पुलिस फ़ोर्स की...मैं सवाल करता हूँ पुलिस से कि आप जिन किसानों को आन्दोलन करने से रोक रहे हो 
यही किसानी परिवारों में आपने भी जन्म लिया है, कई पुलिस कर्मियों का ताल्लुक़ किसान परिवारों से है यही किसानी के खून पसीने के पैसे से ही पढ कर आप इस ओहदे पर हैं फ़िर भी आप अपने ही पिता समान किसानों पर लाठियां ,गोले, पानी बरसाते हो जरा भी शर्म नहीं आती, जबकि तुम्हें तो अपने किसानों का साथ देना चाहिए "चन्द पैसे के लालच में अपनों के ही खिलाफ खड़े हो उनका रास्ता रोके"
अगर आप साथ दें तो जरा भी वक्त नहीं लगेगा सत्ता को किसानों की बात मानने में 

मेरा फ़िर से एक आग्रह है देश के प्रधानमंत्री महोदय से 
कि इस सर्दी और अनसन में किसानों की मौत आंकडा बढे उससे पहले उनसे मिलिए और आन्दोलन को समाप्त कराइये ।

   कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

आए हैं द्वार

"आए हैं द्वार"

खड़े हैं द्वार पर आकर 
जो सबके अन्नदाता हैं
नहीं ठुकराओ तुम इनको
 तुम्हारे प्राण दाता हैं
अनाजों के बिना तुम एक 
कदम भी चल नहीं सकते 

समय ये आज तेरा है समय 
कल इनका आएगा
 क्यों सुनते नहीं आकर 
 अब तुम दर्द हो इनका
 जिन्हें तुम शान से 
कहते थे मेरे अन्नदाता हैं 

कवि शिवम यादव 
अन्तापुरिया कानपुर 
उत्तर प्रदेश 
+91 9454434161

हैं राहें

_"हैं राहें"_ 

वो मुस्कुराहती राहें 
वो कुछ बताती राहें 
वो राहें दिखाती राहें 
मुझे अपना बनाती राहें 
तुझे अपना बताती राहें 

 जरा सी शर्माती हुई राहें 
 कुछ वो हिलोरें लेती राहें 
कुछ मन्ज़िल दिखाती राहें 
थीं कुछ हिचकिचातीं राहें 
   मुझे वो छेड़ती राहें 


किसी को हँसाती राहें 
किसी को रूलाती राहें 
किसी को तड़पाती राहें 
किसी को बुलाती राहें 
किसी को सिखाती राहें 
किसी को इठलाती राहें 

   वो हैं बहुरूपी राहें 
कभी बन्ज़र, कभी खन्ज़र 
  कभी हैं मोम की राहें 
कभी प्यासी, कभी भूखी 
   कभी हैं टूटती राहें 
कभी प्यारी, कभी न्यारी 
   कभी हैं बेरूखी राहें 
 कभी यादें, कभी भूली 
 कभी गुज़रती वो राहें 
कभी प्रेमी, कभी दुश्मन 
  कभी हैं प्रेमिका राहें 
कभी नफ़रत, कभी चाहत 
  कभी हैं ढूँढती राहें 
कभी साहस, कभी राहत 
   कभी तूफ़ान हैं राहें 
कभी वो दिन, कभी रातें 
  कभी हैं चाँदनी राहें 
कभी सुबहा, कभी शामें 
  कभी दोपहर हैं राहें 

   _शिवम अन्तापुरिया_

"आपदाओं का सैलाब"

"आपदाओं का सैलाब"

किसानों की कथित पीढा सुनाने 
आज आया हूँ 
बने जो जख्म से नासूर दिखाने उनको आया हूँ 

बड़ा बेदर्द है शासन, सुनना कुछ भी नहीं चाहता 
केवल अपनी ही बातें सुनाना उसको है आता
 
कहीं भाषण,कहीं नारे, कहीं पर रैलियाँ देखीं 
सूखी कृषकों के घर की नहीं हैं रोटियाँ देखीं 

किसानों की यही पीढा मेरे आँसू बहाती हैं 
बहुत देखा है आँखों ने, नहीं अब देख पातीं हैं 

कभी ओले, कभी बारिश, कभी तूफ़ान आता है 
बेमौसमी आपदाओं का यही सैलाब आता है 

किसानों का मुखर चेहरा बड़ा मायूस रहता है 
नेताओं का दिया, भाषण जब भाषण ही रहता है 

   युवा कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

Monday, November 23, 2020

"आपदाओं का सैलाब"

"आपदाओं का सैलाब"

किसानों की कथित पीढा सुनाने 
आज आया हूँ 
बने जो जख्म से नासूर दिखाने उनको आया हूँ 

बड़ा बेदर्द है शासन, सुनना कुछ भी नहीं चाहता 
केवल अपनी ही बातें सुनाना उसको है आता
 
कहीं भाषण,कहीं नारे, कहीं पर रैलियाँ देखीं 
सूखी कृषकों के घर की नहीं हैं रोटियाँ देखीं 

किसानों की यही पीढा मेरे आँसू बहाती हैं 
बहुत देखा है आँखों ने, नहीं अब देख पातीं हैं 

कभी ओले, कभी बारिश, कभी तूफ़ान आता है 
बेमौसमी आपदाओं का यही सैलाब आता है 

किसानों का मुखर चेहरा बड़ा मायूस रहता है 
नेताओं का दिया, भाषण जब भाषण ही रहता है 

   युवा कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

Thursday, November 19, 2020

सरकार बताए क्या नाम दूँ

"सरकार बताए क्या नाम दूँ"

आज फ़िर एक लम्बे अंतराल के बाद तेज़ गुस्से वाली पीढ़ा के साथ ये लेख लिख रहा हूँ ...

मैं आज एक ही लेख में कई बातों व मुद्दों को आप सबके सामने रखूँगा, सबसे पहले तो कोरोना पर लिखूँगा जो इस प्रकार है 

     "कोरोना फ़ैलता ही नहीं"
अगर ये दो गलतियाँ न हुई होती 

 मैंने सबसे पहले कोरोना की खबर मध्यप्रदेश के अखबारों में पढ़ी थी नवम्बर 2019 में वहाँ सरकार ने चेताया भी था अगर वहाँ पर राजनीतिक पेंच वाज़ी न चल रही होती तो ये कोरोना इतने पाँव भारत में फ़ैला ही नहीं सकता था, लेकिन ये राजनेताओं को अपनी कुर्सी की पड़ी थी तब बिल्कुल ध्यान ही नहीं केन्द्रित किया केन्द्र सरकार ने...

खैर वो छोड़ो फ़िर भी जब कोरोना कुछ ही हद तक था लेकिन ट्रंप के साथ बातचीत करने के लिए लाखों की भीड़ को देश-विदेश भर से एकत्रित किया गया जिससे संक्रमण ने और तेज़ी पकड़ ली इसके बाद सब ठीकरा जनता पर रखपर उसी के रोजगार पर छुरियाँ चला दी गयीं 
अब मैं देश के प्रधानमंत्री से सवाल करता हूँ कि क्या आप अमेरिकी राष्ट्रपति से अकेले मीटिंग नहीं कर सकते थे लेकिन कोरोना फ़ैलाने की वजह जमात वालों पर रखा गया अब ये बताओ की जमात के लिए अनुमति तो सरकार ने ही दी होगी 
( कोई ये न सोचे की मैं पक्ष पात कर रहा हूँ सच को सच लिख रहा हूँ बस यहाँ कोई जाति धर्म की बात नहीं कह रहा हूँ )

"एक और सवाल आर्थिक स्थिति कैसे बिगड़ गई बिगड़ ही नहीं सकती"

मेरा इरादा किसी को अपमानित करने का नहीं है सिर्फ़ सच्चाई जानने का है जो भी हिम्मत रखता हो मुझे बताए... 
मैं कोई भी राजनीतिक दल से ताल्लुक़ नहीं रखता हूँ पिछली सरकारों ने भी बहुत बड़ी-बड़ी बीमारियों का सामना किया है टीबी, हैज़ा, पोलियो, एड्स और भी लेकिन सरकार ने लाकडाउन कभी नहीं किया जबकि एड्स, टीबी तो बिल्कुल लाकडाउन के हक़दार थे ही फ़िर बहुत ही आसानी काबू पा लिया गया और इसमें भारत बंद बावत भी कमी बीमारी में कमी हुई ही नहीं जिन्हें मरना था उन्हें मौत ने आगोश में ले ही लिया वायरस अभी भी खतम नहीं हुआ है क्या फ़ायदा हुआ बन्दी का बदले में नुकसान ही हुआ, 
पिछले समय में सन 1962, 65, 71  में युद्ध भी लड़े गएलेकिन आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं हुई न किसी का रोजगार छीना गया जो वेतन लागू होने वो लागू किए गए, मैं मानता हूँ उन सरकारों ने देश को लूटा है वर्तमान सरकार कहती है की वो देश को लूटते रहे हैं, खूब घोटाला भी हुए फ़िर भी देश आगे बढ़ता रहा है पीछे नहीं गया और अब आप तो कहते थे " देश नहीं झुकने दूँगा, देश नहीं बिकने दूँगा "
और आपने देश को झुका भी दिया आर्थिक स्थिति में और बेंच भी दिया बहुत कुछ अब आप पर भरोसा कैसे और क्या देख कर करूँ मैंने आपके पोर्टल पर एक पत्र भेजा उसका आजतक जवाब नहीं क्या जनता की सुनते हो... 

"जनता ने आपको रूपये दिए देश के लिए वो कहाँ गए"

पीएम केयर फ़न्ड में अनगिनत रुपये का चंदा पहुँचा अगर आप देश के लिए कार्यरत हैं तो ₹ कहाँ  किसके पेट में चले गए 
कोर्ट ने आदेश दिया उस फ़न्ड पर आरटीआई नहीं जाँच करेगा मान लिया लेकिन ये बताओ 
इसका मतलब ये हुआ की ऐसे संकट के समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री के नाम पर जनता को ठगा गया है फ़िर तो जब दान करने को कहा गया तब यही कहा गया था कि इस महामारी से लड़ने के लिए सब सहयोग करें 
फ़िर जब ये महामारी के लिए लिए गए थे ₹ तो अब पार्टी के कैसे हो गए अगर पार्टी के ही हुए तो ये पार्टी के लिए चंदा सारी जनता से महामारी के नाम पर क्यों लिए गए, इस सवाल का जवाब मैं कोर्ट से भी माँगता हूँ 
क्योंकि मैं जानता हूँ जब सरकार बहुमत में होती है तो न्यायालय घुटनों पर आ जाता है वो वही करता है जो सरकार कहती है मेरे पास पिछले दशकों के बहुत ही प्रमाण हैं इस प्रकार के, "इंदिरा गांधी ने कैसे क्या किया था" 
मेरा ख्याल यही है वो फ़न्ड के जरिए जनता को ठगा गया है 
आर्थिक स्थिति कुछ नहीं बिगड़ी है अपने पेट भरे गए हैं नहीं तो आप दान भर का ₹ अगर निकाल दें तो आर्थिक स्थिति लाइन पर आ जाए 

"क्यों कर रहे हो किसानों के साथ अन्याय"

पराली पराली पराली पिछले साल कोर्ट ने आदेश दिया था किसानों को परेशान न किया जाए उन पर जुर्माना न लगाया जाए फ़िर इस साल फ़िर वही मुद्दा उठा लिया गया है आख़िर क्यों... 

सदियों से किसान पराली जलाते आए हैं अब रोक क्यों 
अभी सभी किसान भाई तिलहन की खेती में कीड़ों से परेशान थे किसी ने नहीं सुना सारी फ़सल काट दी दुबारा बुआई करनी पड़ी उसमें भी नुकसान हो रहा है मैं स्वंम लखनऊ सेंटर कीड़ा भेजा कोई जवाब नहीं मिला 
पराली जलाने किसान को लाभ होता है न कि नुकसान कीट,पतंगे  हानिकारक तथ्य खतम हो जाते हैं अब वो भी करने से रोका जा रहा है,दवाओं का स्प्रे करने से भी रोका जा रहा है किसान करे क्या 
जबकि ये प्रदूषण की सच्चाई ये है ....

ये प्रदूषण तो अमीरों की दीवाली से छाया है l 
इल्ज़ाल किसानों की पराली पर आया है ll 

सरकार किसानों के खिलाफ जो लागू करे वो हाल लागू हो जाता है 
अभी केन्द्र ने 50₹ बढाकर गेंहूँ का मूल्य 1925₹ से 1975₹ किया किसान के गेहूँ  1400-1500₹ में लिया जा रहा है अब ये क्या है 
खाद का रेट बढते ही लागू हो जाते हैं 
पेट्रोल का रेट बढते ही लागू हो जाते हैं 
किराया बढते ही लागू हो जाते हैं 
किसान के अनाज़ का रेट घटते ही लागू हो जाते हैं 
लेकिन किसानों का तो जो रेट तय है फ़सल का वही नहीं मिल पा रहा है ये सब क्या है 
इसे क्या नाम दूँ l 

    लेखक/विचारक 
~शिवम अन्तापुरिया 
       उत्तर प्रदेश 

+91 9454434161
+91 9519094054

Wednesday, November 18, 2020

प्यार के पन्ने

" प्यार के पन्ने "

 जवानी है मोहब्बत है 
बुढ़ापा रोज़ आएगा 

सियासत में मोहब्बत है 
चुनाव फ़िर से आएगा 

शकल पे जो भी मरते हैं 
वो धोखा खा ही जाएगा 

 शिवम ये प्यार के पन्ने 
शलीके से ही पलटो तुम 

 हाथ लाखों मिलाएँगें 
समय एक ये भी आएगा 

        रचयिता 
~ शिवम अन्तापुरिया

Monday, November 9, 2020

"आँसू पीते देखा है"

सब कुछ अपना खोकर 
उसने धैर्य नहीं खोया होगा 
सारी रात जागकर भी 
वो दिन में नहीं सोया होगा 

मुझसे ज्यादा कृषकों के 
हालात कौन अब जानेगा 
जो फ़सलों को पानी देता 
क्या वो ही पानी को तरसेगा 


शिवम अन्तापुरिया



 कृषकों की पीढ़ा क्या है मैं 
सम्मुख तेरे लेकर आऊँगा
औकात तेरी क्या शासन है 
मैं तुझे बताने आऊँगा

"आँसू पीते देखा"

दुर्बल और निर्बल काया 
को मिटते हमने देखा है 
अभी टूटती साँसों का 
दम घुटते हमने देखा है 

अन्न उगाते सत्ता खाती खुद 
 को धूल फ़ाकते देखा है 
लाचार किसानों की काया 
को फ़न्दे पर लटका देखा है 

हाँ अब कृषकों की पीढ़ा 
का कैसे मैं आव्हृान करूँ 
सत्ता में निर्दयी सब बैठे हैं 
अब कैसे मैं ये सहन करूँ 

नहीं भाव मिलता है उसको 
मन्डी में लुटता हमने देखा है 
तुम कहते हो दोगुना करेंगे 
हमने तो सिंगल उसको देखा है 

तुम तो सत्ता में मस्त हुए 
किसान बेचारे पस्त हुए 
वो कहते खुशियाँ हमने बाँटी हैं 
हमने तो आँसू पीते देखा है 

   ~ शिवम अन्तापुरिया 
          उत्तर प्रदेश

Friday, November 6, 2020

"आत्महत्या कोई हल नहीं"

"आत्महत्या कोई हल नहीं"


"चिंता से बचें सुखी जीवन जिएँ"
खुद स्वस्थ रहें,दूसरों को भी प्रेरित करें" ....

आज मैं बहुत दिनों बाद ये लेख लिख रहा हूँ पिछला लेख मैंने इसी वर्ष मई में लिखा था कोरोना पर "जेलों में भी हो कोरोना का बचाव"
जिसका प्रभाव भी दिखा और आज पूरे पाँच महीने बाद लिख रहा हूँ कोई लेख शायद आपके सबके लिए ये महत्वपूर्ण साबित हो आप भी अपने परिवार को संतुलित रखें और अवसाद से सदा ही बाहर रखें,
 "क्योंकि मात्र जीवन ही सब कुछ नहीं है, जीवन से भी बढ़कर आपका स्वस्थ होना है"
 क्योंकि ? आज आप आए दिन देख रहे होंगे कि ...
एक तरफ पूरी दुनियाँ में लोग तरह-तरह की बीमारियों से लाखों लोगों की जानें जाती हैं तो एक तरफ लाखों लोग ऐसे भी हैं जो अपनी ही अपनी जान के दुश्मन बन बन बैठते हैं जिसका मूल आधार ही है चिंता से हारकर बहुत लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं जबकि आत्महत्या शब्द ही एक काँटे की भाँति चुभता है फ़िर भी लोग इसे सीने से लगा लेते हैं, कुछ का मानना है कि आत्महत्या को मनचाही मौत भी  कह सकते हैं जबकि आत्महत्या एक अनचाही व दर्दनाक मौत है जो सच भी है आत्महत्या के लिए लोग कई तरीके अपनाते हैं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रति वर्ष करीब 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं...

वहीं औसतन 40 मिनट पर आत्महत्या की एक घटना घटती है. जबकि प्रति 3 मिनट पर इसकी कोशिश की जाती है. हर आत्महत्या की अपनी परिस्थितियाँ और कारण होते हैं. आत्महत्या करने वालों में महिला, पुरुष के अलावा बच्चे भी शामिल हैं, जो डिप्रेशन व तनाव के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं.

आत्महत्या के कई कारण भी होते हैं और कई ऐसे भी कारण होते हैं जिन्हें कोई समझ भी नहीं पाता है जबकि... 

आत्महत्या के मुख्य कारक मानसिक विकार, संस्कृति, पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियाँ व अनुवांशिकी हैं पारिवारिक कलह, वित्तीय कठिनाइयाँ परीक्षा में असफलता, बेरोजगारी, गरीबी, बेघर होना आदि की वजह से तनाव में रहना...
हमेशा अवसादग्रस्तन रहना भी है आत्महत्या की वजह.

कोई गंभीर बीमारी, बहुत बड़ी क्षति होना या किसी अपने को खो देने का गम.
 कुछ मेडिकल कंडिशन जैसे किसी बीमारी में ठीक होने की संभावना खत्म हो जाना तक भी व्यक्ति यही कदम उठाने को तत्पर्य हो जाता है लेकिन मैं इनसे सवाल करता हूँ कि आखिर क्या हासिल कर पाओगे ऐसे 

आत्महत्या के  लक्षण कुछ इस प्रकार बताए गए हैं जो आपके सामने पेश कर रहा हूँ ...

 अक्सर आत्महत्या से पहले व्यक्ति इसी विषय पर बात करता है और बोलचाल में जाने-अनजाने कहता है कि मैं आत्महत्या कर लूँगा. या फिर इससे तो अच्छा होता मैं मर जाता,
व्यक्ति खुद को बहुत ही असहाय महसूस करता है.
जीवन के प्रति निराशावादी विचारधारा आने लगे 

व्यक्ति का अक्सर आत्महत्या के तरीकों के बारे में पूछताछ करना.
तेज गति से कम समय में अधिकाधिक लोगों से मिलने का प्रयास करना.
 मुलाकात के दौरान लोगों को अलविदा कहकर अंतिम मिलन का संकेत देना
खाने-पीने व सोने की आदतों में बदलाव आना.
डायरी लिखने में अधिक समय गुजारना.
अपनी सबसे फेवरेट चीजों से दूर हो जाना.
अपनी सबसे फेवरेट चीजों से दूर हो जाना.
व्यवहार में चिड़चिड़ापन आना.
जब किसी व्यक्ति के अंदर अचानक बिना किसी कारण रोने की भावना उत्पन्न होने लगे.

सामाजिक रिश्ते और जिम्मेदारियों से दूर भागना 
 लोगों से सुसाइड के बारे में बात करना 
व्यक्ति में आपराधिक सोच का आना 
ये सब तथ्य बड़ी मुश्किल से आप लोगों के बीच ला पाया हूँ इसके बहुत से तथ्य ऐसे हैं जिन्हें मुझे खोजना पड़ा सिर्फ़ो सिर्फ़ आप सबके लिए 
अब कुछ ऐसे आँकड़े आप सब के सामने ला रहा हूँ जिन्हें पढ़कर आप थोड़ा परेशान हो सकते हैं...

 भारय में हर 4 मिनट में कोई एक अपनी जान दे देता है और ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है यानी देश में हर 12 मिनट में 30 वर्ष से कम आयु का एक युवा अपनी जान ले लेता है। ऐसा कहना है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का। हाल ही में आए दुर्घटनाओं और आत्महत्या के कारण मौतों पर वर्ष 2009 के रिकार्ड के मुताबिक 2009 में कुल 1,27,151 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 68.7 प्रतिशत 15 से 44 वर्ष की उम्र वर्ग के थे। दिल्ली और अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में 55 प्रतिशत से ज्यादा 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के थे। दिल्ली में आत्महत्या करने वाले 110 में से 62 तथा अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वाले 1,477 में से 817 इस उम्र वर्ग के थे। रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या करने वालों में 34.5 प्रतिशत की उम्र 15 से 29 साल के बीच थी, जबकि 34.2 प्रतिशत की उम्र 30 से 44 साल के बीच थी। इसके अनुसार, देश में रोज 223 पुरुष और 125 महिलाएँ सभी को जोड़कर 347 पुरूष-स्त्री आत्महत्या करते हैं। इन महिलाओं में 69 घरेलू महिलाएँ हैं। एक दिन में 73 लोग बीमारी के कारण और 10 लोग प्रेम प्रसंग मोहब्बत के चक्कर में आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में आत्महत्या के मामलों में 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2008 में आत्महत्या के 1,22,902 मामले थे, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गए । 2009 में देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएँ पश्चिम बंगाल में हुईं। वहाँ एक साल में 14,648 लोगों ने अपनी जान ले ली। उसके बाद आंध्र प्रदेश का स्थान आता है, जहां 14,500 लोगों ने अपनी जान दे दी। फिर नंबर आता है तमिलनाडु (14,424), महाराष्ट्र (14,300) और कर्नाटक (12,195) का। इन पाँच राज्यों में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या देश में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या का 55.1 प्रतिशत है। दक्षिण भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल को मिलाकर देश में कुल आत्महत्या का 32.2 प्रतिशत इन्हीं राज्यों में होता है। 2009 में दिल्ली में 1,477 लोगों ने आत्महत्या की। वहीं उत्तर प्रदेश में आत्महत्या करने वालों की संख्या काफी कम रही। देश की 16.7 प्रतिशत जनसंख्या वाले राज्य में आत्महत्याओं का प्रतिशत केवल 3.3 रहा। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1999 के मुकाबले वर्ष 2009 में आत्महत्याओं की संख्या में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 1999 में आत्महत्या करने वालों की संख्या 1,10,587 थी, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गई। आत्महत्या के कारणों में पारिवारिक परेशानियां और बीमारियां सबसे ऊपर हैं। देश में 23.7 प्रतिशत लोग पारिवारिक परेशानी और 21 प्रतिशत बीमारियों के कारण आत्महत्या करते हैं। प्यार-मोहब्बत के चक्कर में सिर्फ 2.9 प्रतिशत और दहेज झगड़ों, ड्रग्स और गरीबी के कारण 2.3 प्रतिशत लोग आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुष सामाजिक और आर्थिक परेशानियों के कारण तथा महिलाएं व्यक्तिगत और भावनात्मक कारणों से आत्महत्या करती हैं।
ये सारे आँकडे भारत अपराध रिकार्ड ब्यूरो से लिए गए हैं ...

"हर समस्या का हल मौत नहीं होता"
"जो हार जाते हैं उनका अस्तित्व नहीं होता"


  लेखक/कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

"क्या क्या क्या लिख दूँ"

_"क्या क्या क्या लिख दूँ"_* 

_अब लैला का श्रंगार लिखूँ_ 
 _या धरती का श्रंगार लिखूँ_ 
 _अब पीढा़ की आवाज़ लिखूँ_ 
 _या नदियों की मैं धार लिखूँ_ 
 _इस मिट्टी का मैं स्वाद लिखूँ_ 
 _या मधुशाला का स्वाद लिखूँ_ 
 _ऋषियों का यशगान लिखूँ_ 
 _या नेताओं का हास्य लिखूँ_ 
 _भारत माँ का प्यार लिखूँ_ 
 _या फ़िल्मों वाला प्यार लिखूँ_ 
 _सैनिक का बलिदान लिखूँ_ 
 _या फ़ुल्हड़ता का मान लिखूँ_ 

_अब तुम्हीं बताओ सुनना_ ...
 _क्या है वो ही मैं आवाज़ लिखूँ_ ...

_वीरों का प्रहार लिखूँ या_ 
 _कायरों का आहार लिखूँ_ 
 _कृषकों की पीड़ा मैं लिख दूँ_ 
 _या नेताओं के रौब लिखूँ_ 
 _पीड़िता की आवाज़ लिखूँ_ 
 _या दुष्कर्मी का खौफ़ लिखूँ_ 
 _हाथरस वाली घटना लिख दूँ_ 
 _या प्रियंका की अावाज़ लिखूँ_ 
 _अपराधी के अपराध लिखूँ_ 
 _या अपराधी के सपने लिख दूँ_ 
 _राजनीति का रूप लिखूँ या_ 
 _जनता की चीत्कार लिखूँ_ 

  _अब तुम्हीं बताओ सुनना_ ...
 _क्या है वो ही मैं आवाज़ लिखूँ_ ...

_सूर्य उदय पश्चिम में लिख दूँ_
_या झूठे मैं आख्यान लिखूँ_
_नारी का मैं कवच बनूँ या_
_कवच तोड़ का मान लिखूँ_
_उत्तर में रत्नाकर लिख दूँ_
_दक्षिण में हिमराज लिखूँ_
_झूठे-झूठे लाखों वादे लिख दूँ_
_या सच्चाई मैं एक लिखूँ_
_अपनी कलमधार से झूठ लिखूँ_
_या सच्चाई का प्रवाह लिखूँ_
_नारी का पर्दा मैं लिख दूँ या_ 
_अश्लीलता के चित्र लिखूँ_ 
_अब लेखनी का मैं दर्द लिखूँ_ 
_या उसका भी उपहास लिखूँ_ 
_सत्यमार्ग का गान लिखूँ या_
_डग्गामारू अभियान लिखूँ_
_अंतिम पंक्ति में कहता हूँ_
_मैं सच्चाई के साथ खड़ा हूँ_
_बस सच्चाई का सार लिखूँ_ 

_अब तुम्हीं बताओ सुनना_ ...
 _क्या है वो ही मैं आवाज़ लिखूँ_ ...


_शिवम अन्तापुरिया_

Wednesday, October 28, 2020

पसंद नहीं

किसी मेरी आदत 
पसंद नहीं 
किसी को मैं 
पसंद नहीं 

किसी को मेरा साहित्य 
पसंद नहीं 
किसी को मेरा रहना 
पसंद नहीं 

किसी को मेरी बातें 
पसंद नहीं 

किसी को मेरा काम 
पसंद नहीं 

किसी को मेरी सलाह 
पसंद नहीं 


शिवम अन्तापुरिया

Friday, October 16, 2020

"सच्चा प्रेम विलक्षण"

 "सच्चा प्रेम विलक्षण"

हाँ प्रेम वही रहेगा सच्चा 
बस किरदार बदल जाएँगे 
तुम अपने घर में रोओगे 
हम अपने घर में रोएँगे 

प्रेम बहुत होता है विलक्षण 
ये अब तक जाना है किसने 
तुम अपने घर को जाओगे 
 हम अपने घर को जाएँगे 

प्रेम पात्र के दोनों पुजारी 
  हैं सच्चे-सच्चे मन के 
तुम मेरा रास्ता देखोगे 
हम तेरा रास्ता देखेंगे 

प्रेम नयन ये रहे तड़प हैं 
अब तेरे मिलन के प्यासे हैं 
तुम मुझे देखना चाहोगे 
हम तुम्हें देखते रह जाएँगे 


शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश 

Thursday, October 15, 2020

प्रेम नहीं पहचानेंगे"

"प्रेम नहीं पहचानेंगे"

नाम मोहब्बत का सुनते ही 
   मेरा दिल घबराता है 
याद तुम्हारी आती है 
ये बदन भीग सा जाता है 
सारी रात जागते हैं कोई 
उपचार नहीं मिल पाता है 

तट तटस्थ होकर थक जाते 
ये अश्रु नहीं रूक पाते हैं 
महज़ समाजी ठेकेदारों के 
कारण 
ये प्रेम विलय न हो पाते हैं 

बहुत लहू धाराएँ बहतीं 
बहुत बदन मिट्टी हो जाते हैं 
ये ढाई शब्द का बोझ जरा 
क्यों लोग नहीं सह पाते हैं 

द्वंद्व उठा आरोप लगा 
वो मन ही मन मुस्काते हैं 
जरा प्रेम की बात को लेकर 
वो अम्बार बनाते जाते हैं 

सच्चाई की दहलीजों को 
लोग तरसते जाते हैं 
प्रेम एक ये सच्चाई है 
जिससे लोग मुकरते जाते हैं 

प्रेम जरा भी करना हो तो 
सावधान होकर करना 
प्रेम ग्रंथ के पन्नों में 
इतिहास जरा होगा पढ़ना 

  ये घोर कलयुगी धारा में 
राधा-माधव,मीरा न पहचानेंगे 
जरा सन्देह बेबुनियादी साक्ष्यों से 
तुमको आरोपी बतला देंगे 

प्रेम बिछड़ जो जाता है 
तो मौत नहीं हल होता है 
जरा सब्र रखकर देखो 
सब पहले जैसा हो जाता है 


जरा-जरा सी बातों को क्यों 
दिल पर तुम ले जाते हो 
प्रेम पुजारिन राधा को क्यों 
भूल यहाँ पर जाते हो 


शिवम अन्तापुरिया
   उत्तर प्रदेश

Saturday, October 3, 2020

कुछ सीख तो

उसे आजतक मेरे आने का इंतजार है
अब मेरा भी दिल यहाँ पे बेकरार है


शिवम अन्तापुरिया

    जिंदगी है ये बहुत कुछ सीख देती है 
लेकिन उस सीख का अनुसरण करने वाला भी 
          अर्जुन की भाँति होना चाहिए 
                       ~ शिवम अन्तापुरिया

शहादत से भरी महफ़िल भगत के नाम मैं लिख दूँ 
_जिनसे है मिली आजादी कैसे उन्हें गुमनाम मैं कर दूँ 

शिवम अन्तापुरिया

साहब ! कई ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं 
जो मन को झकझोर जाती हैं 

शिवम अन्तापुरिया


मेरी जिंदगी में सदा वो निशाने रहे 

हाँ वो हमारे हम उनके दीवाने रहे

जिंदगी में थोड़ा सा फ़र्क ये रहा 

वो दिल्ली हम यूपी के दीवाने रहे 

      शिवम अन्तापुरिया


ये जिंदगी जितनी हँसती-मुस्कुराती हुई दिखती है न, क्योंकि अन्दर से उससे कई गुना ज्यादा दु:खी होती है न शिवम अन्तापुरिया

अपनी दीवार पर उसने मेरा फोटो ही टाँगा था_ 
_मगर घर वालों ने दो सूखे फ़ूल का माला भी डाला था_ 

_शिवम अन्तापुरिया

ये जिंदगी एक तन्हाइयों से_
 _भरा हुआ झोला है_
_इसे उठाकर जो चल दिया_ 
_वो चलता ही गया है_ 
_शिवम अन्तापुरिया_


पुरानी यादों के महल आज खाक कर दिए !!

उन्हें जो भी लगता हो हम तो माफ़ कर दिए !!


शिवम अन्तापुरिया

किरणें भी बहुत कुछ सिखाती हैं 
 बस सीखने कला मानव को ही सीखनी होगी  

©शिवम अन्तापुरिया

मेरे खौंफ़ से मेरे दुश्मन खंज़र भोंका करते हैं 
धोखे से भी दुश्मनों की नहीं हम निंदा करते हैं 
भले ही जान ले लें आज ही आकरके वो मेरी 
कभी भी जान की अपनी नहीं हम चिंता करते हैं 

शिवम अन्तापुरिया

अहमियत समझो सभी की

" अहमियत समझो सभी की "

ये जीवन बहुत ही अजीबो गरीब तरीके से पेश आता है आता है सभी की जिंदगी में 
अब बात आती इसे कौन कैसे जीते है 
यही कोई अभी 6 महीने ही बीते होंगे कि वो पल आजतक नहीं भूल पाया हूँ, 
जब उसने अपनी उंगलियों को हिलाते हुए मुझसे कहा था कि चार-चार वो इशारे आजतक मेरी आँखों में सपने की भाँति तैर जाते हैं और मैं वहीं मुद्रा में लीन हो जाता हूँ अब मुझे तो नहीं पता है कि शायद ही उसे वो पल अब तक उसी लहज़े में याद हो ...

खैर कोई बात नहीं मुझे तो याद है 
एक बात और सच है जीवन कि ये जिंदगी में अनजाने लोग अनजानी राह पर मिल जाते हैं और किसी के दिल में कुछ ऐसा छोड़ जाते हैं जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है ।


और वो बस कुछ ही अल्प समय में कल्प समय के लिए बेहद यादगार पलों के वो पौधों को जन्म दे जाते हैं जिनकी जिंदगी बहुत ही अनन्त होती है,
बहुत ही कम समय में ही वो अपनों से भी ज्यादा खास हो जाते हैं जिनका साथ अगर छूटने की नौबत आए तो ऐसा लगता है मानों शरीर से कोई आत्मा को लिर जा रहा है.... 

आज कल सोशल मीडिया का युग है मेरी भी मुलाकात बस उससे व्हाट्सएप के ग्रुप से ही हुई सिलसिला यूँ चला कि दोनों में बेचैनियाँ पनपने लगी एक दूसरे के बिन फ़िर क्या बेचैनियाँ सहना कौन चाहता है आजकल...

 बस बेचैनियाँ खतम करने की जुगत के चक्कर में हम लोग राह भटक कर कहीं और ही आ गए थे जहाँ आना नहीं चाहिए था 
फ़िर भी जहाँ आ गए थे वहाँ से लौटना बहुत ही मुश्किल था 
फ़िर भी रातों दिन की जद्दोजहद के मैं अब तो सब बिल्कुल परेशान था लेकिन मैं उसे बताना नहीं चाहता था कुछ भी क्योंकि इसमें उसकी गलती जरा भी नहीं थी और मैं ऐसे मोड़ पर हूँ जहाँ से मेरे जर फ़ैसले मुझपर भारी पड़ सकते थे 
लेकिन इसी कि कहते हैं सच्चा प्रेम जो अपने साथी ही हर बात को समझे न कि सिर्फ़ अपनी ही बातें उसके सामने रखता है जो उसने बहुत ही अच्छे से कर दिखाया है जिससे मैं खुश भी हूँ और अपने आप निराश क्योंकि शायद कमी मेरी ही थी मैं क्यों नहीं उसके योग्य था अभी फ़िर भी वो मुझे अपने योग्य कहकर मुझे अपनी कमियाँ महसूस नहीं होने देती है मैं क्यों नहीं उसको जितना अन्दर से प्रेम करता हूँ उतना ही ऊपरी सतह से प्रेम कर पा रहा हूँ... 


     लेखक 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश 

सच्चाई न खोजें आप

माफ़ किया

"माफ़ किया"

 _गलतियाँ अपनों की हजारों_ 
 _माफ़ किया करता हूँ_ 
 _फ़िलहाल मैं किसी को माफ़_
_करने के लायक नहीं_
 _फ़िर भी बस जिंदगी के हजारों_ ख्वाब जिया करता हूँ_ 

 _कुछ भी हो तुम्हें तो गलत हम_ _कह सकते नहीं_ 
 _जिंदगी ये कहाँ ले जाएगी इसका_  _तो पता नहीं_
_अभी तो बस अपनी_ _आलोचनाओं को सहा करता हूँ_ 
 _रूठे हुए लोगों की मुस्कान बना_ _करता हूँ_ 

 _मैं नाराज होता ही नहीं तुमसे रूठ_ _कर जाऊँगा कहाँ_ 
 _किसने मुझसे क्या कहा सबको हूँ_  _मैं बताता कहा_ ँ 

 _शिवम अन्तापुरिया_
 _कानपुर उत्तर प्रदेश_

Saturday, September 26, 2020

"अभी शेष है"

" अभी शेष है "

बहुत शेष है मुझको करना 
 सबसे सावधान है रहना 
जीवन की पतवार धरा पर 
खुद है खेकर पार लगाना 

  बहुत शेष है मुझको करना 

अब अंधकार के पथ हैं सारे 
जिनपर रोशन होकर चलना 
शासन सत्ता के गलियारों पर 
कभी नहीं तुम भरोसा करना 

  बहुत शेष है मुझको करना

यहाँ कर्म भूमि में युद्ध है लड़ना 
 सँभल-सँभल के पग है रखना 
 ये जीवन है आशाओं का डेरा 
 हाँ है आशाओं को पाले रखना 

   बहुत शेष है मुझको करना

      शिवम अन्तापुरिया
         उत्तर प्रदेश