Tuesday, December 22, 2020

"स्त्री पुरुष के बीच असमानता की खाई अभी भी है"

_"स्त्री पुरुष के बीच असमानता की खाई अभी भी है"_ 

अपने देश में स्त्रियों को देवी का रूप माना जाता रहा है,मानते भी आए हैं लेकिन वर्तमान में हमारा समाज अपने पुरखों के दिए हुए ज्ञान के कसौटी पर खरा बिल्कुल भी नहीं उतर पा रहा है इसमें अगर कमियाँ व्याप्त हुईं हैं तो इसका जीता जागता सुबूत हमारा समाज ही है, समाज ने अपनी भावी पीढ़ी को कहीं न कहीं संस्कारों से वंचित रखा है।

तभी तो देवी स्वरूप स्त्रियों की दशा आए दिन दुर्दशा में तब्दील होती जा रही है और हमारा समाज आज भी अपने मूल संस्कारों से कहीं दूर भटकता चला जा रहा है। आज भी अब भी सँभलने का एक अवसर है जिसे हम गँवाए नहीं भुनाने की कोशिस करें,

देश आजाद हुआ जिसमें किसी एक की भूमिका नहीं थी न कि मात्र देश को ही आजाद नहीं कराना था, अपना मकसद अंग्रेजों से ही आज़ाद होना भी नहीं था 
आजादी भी कई तरीके की थी जिसमें 
किसानों को जमीदारों से,निम्नवर्ग को मध्यम वर्ग से,मध्यम वर्ग को उच्च वर्ग से , आजादी चाहिए थी और स्त्रियों को अपने हक़ और पुरुषत्व की आजादी चाहिए थी। साथ ही साथ उन्हें शिक्षा का भी अधिकार मिले, उन्हें अपने फ़ैसले लेने का अधिकार मिले,

जब बात समानता की आती है तो कई जगह ऐसी हैं जहाँ तक अभी भी स्त्रियाँ नहीं पहुँच पाई हैं भारतीय न्यायालय की बात की जाए को (सी.जे.आई.) चीफ़ जस्टिस आॅफ़ इंडिया के पद पर देश को आजाद हुए सात दशक गुजर रहें हैं लेकिन एक भी महिला इस पद पर नहीं आसीन हो सकी, एक मात्र महिला हाईकोर्ट के न्यायायिक पद तज पहुँची है जिसे आप सब जानते हैं।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कई मौके ऐसे आते हैं जब न्यायायिक प्रक्रिया चलती है महिला अपने बयान एक पुरुष जज के सामने वो सटीक बातें नहीं पेश कर सकती है जो एक महिला जज के सामने बोल सकती है खैर ये तो बात अलग लेकिन भारत में उच्च न्यायलय में लगभग 1113 जज हैं जिसमें मात्र 82 महिला जज हैं पूरे भारत में सबसे ज्यादा महिला जजों का औसत हरियाणा और पंजाब में ही हैं।

        सबसे बड़ी समस्या तो तब  खड़ी हो जाती है जब आए दिन देश में स्त्रियों पर अत्याचार होने की खबरें अखबारों में छपती हैं।
वो भी जब तक बात नई रहती है या फ़िर पत्रकार उस बात को उठाते रहते हैं तब तक ही शासन के कानों आवाज़ जाती है और जैसे ही आवाज़ उठानी बंद कर दी जाती है वैसे सब शांत हो जाता है सरकार कुछ भी कानून बनाए लेकिन स्त्रियों की मुझे वही दिखती है फ़िर वो चाहें जो भी राज्य हो, किसी भी सरकार ने अपने किसी भी कानून को भले ही अमली जामा पहना लिया हो लेकिन स्त्रियों की दशा कोई परिवर्तन होता नहीं दिखता है। इस लिहाज़ हमारे समाज़ को एक बार बहुत ही गहराई में जाकर सोचने की घोर आवश्यकता है जिससे कोई न कोई हल अवश्य निकाला जा सके। क्योंकि 

 _हर समस्या का हल होता है।_
_आज नहीं तो कल होता है।।_

स्त्रियों को भले ही पुरुषों के समानता का अधिकार मिल गया हो लेकिन अगर कोई ये कहे की समाज में स्त्रियों को अब हक़ बराबर हो गया है ये मुझे बिल्कुल  नहीं लगता क्योंकि इसमें कहीं न कहीं कोई कमी जरूर छूट जाती है।
    इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता है कि स्त्रियों पर होते अत्याचार का जिम्मेदार सिर्फ़ पुरुष ही है इसमें कहीं न कहीं कुछ गलतियाँ स्त्रियों की भी सामने आती रहती हैं। मेरा मानना है कि अगर स्त्रियों को अपने स्वाभिमान को बचाना है तो वो खुद ही इतनी सशक्त बनें कि उनके विरोध में जब कोई खड़ा हो तो वो स्वंम ही विरोधी का सामना करने सामर्थवान होकर उसका सामना कर सकें, सरकारों ने स्त्रियों को हर विभाग में समानता का दर्ज़ा भले ही दे दिया हो लेकिन हर जगह किसी न किसी तरह से इनका शोषण जरूर किया जा रहा है इस बात से भी हमको अनदेखा नहीं करना चाहिए, इन्हें वो आज़ादी अभी तक नहीं मिल पाई है जिसकी इन्हें तलाश थी। स्त्रियों को जहाँ जाना होता उनके दिमाग में एक बात जरूर घर लेती है कि पुरुषों के बीच में मुझे जाना है इस बात की हिचकिचाहट सी रहती है क्योंकि स्त्री को पुरुष के नाम का डर सा भर गया है जो कि सही भी है ( ऐसा कभी भी कोई पुरुष को भी महसूस होता है क्या कि मैं स्त्रियों के बीच में जा रहा हूँ ) 
इस नज़रिये से देखा जाए तो ये काम सरकार नहीं बल्कि समाज का खुद ही है कि वो अपनी सोच  में बदलाव लाए स्त्रियों के प्रति हर स्त्री के अंदर ऐसे विचार आने चाहिए जब वो कही भी जा रही हो जैसे कि वो अपने पिता, भाई के साथ जाने में खुद को महसूस करती है अगर ऐसी सोच हमारे समाज में हो जाए तो कभी कोई भी स्त्री पर कोई भी आँच नहीं आ सकती है।
मैं एक बात ये भी कहता हूँ उन लोगों से जो स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाते हैं... उनके लिए  कि ये याद रहे पुरुषों को 

 _एक स्त्री को चरित्रहीन बनाने में_ 
 _एक चरित्रहीन पुरुष का ही हाथ होता है_ 
ये भी मत भूलिए 

      मैं पुरुषों से सवाल करता हूँ कि एक 16-20 साल की लड़की जब अपने 5-7 साल के भाई को लेकर सड़क पर निकलती है तो वो अपने आप को पूर्णतया सुरक्षित समझती है जब स्त्री पुरुषों को इतना कुछ समझती है तो हम पुरुषों को भी सोचना चाहिए कि हम भी उनकी रक्षा के लिए नहीं अपनी व समूचे समाज की सोच में बदलाव लाने की मुहिम शुरू करें अगर ऐसा एक बार हो गया न तो मुझे अपने बहन बेटियों की कभी भी सुरक्षा करने जरूरत नहीं पड़ेगी।

        लेकिन समाज में हमेशा कोई न कोई अपवाद जन्म लेते ही रहते हैं इसलिए मेरी तरफ़ से स्त्रियों को एक सलाह या शिक्षा है जिसको स्त्रियाँ जरूर अपने अंदर बैठा ले कि हर पुरुष पर आधुनिक युग में पूर्ण विश्वास साधारणतया नहीं कर लेना चाहिए क्योंकि 

दुनियाँ के हर व्यक्ति का चरित्र इस प्रकार अलग-अलग होता है।
जैसे बंदगोभी के हर पत्ते का स्वाद अलग-अलग होता है ।।

ये मानता हूँ कि हर कोई स्त्री रानी लक्ष्मीबाई,अवन्ती बाई नहीं बन सकती ।
लेकिन कितने समय कौन किसका रूप धारण कर ले ये भी नहीं कहा जा सकता ।।

 _शिवम  "अन्तापुरिया"_
     _कानपुर उत्तर प्रदेश_ 

  _+91 9454434161_

1 comment:

  1. स्त्री हाशिए पर थी,है,और सदा रहेगी।

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