"खड़े हैं द्वार सुनो किसानों की पुकार"
किसानों को इतने दिन हो गए हैं वो अपनी मांग को देकर दिल्ली पहुँच रहे हैं और सरकार उन्हें बरगलाती जा रही है कि हमने कुछ गलत किया नहीं है किसान कानून बिल्कुल सही है, मैं पूछना चाहता हूँ आखिर सरकार को कौन सी आपत्ति है जब किसान नहीं चाहते कि ये बिल लागू हो उन्हें कुछ न कुछ तो दिक्कत है ही इस कानून से तब तो वो इसका विरोध कर रहे हैं, "अगर सरकार किसानों के हित की ही बात करती हैं तो कानून को तत्काल प्रभाव से वापस ले और किसानों को उनके ऊपर छोड़ दे ये मेरी सलाह है सरकार को"
अगर ये वापस लेने में सरकार को ये लगता है कि मेरी थू थू होगी देश हँसाई होगी तो उसके लिए भी मैं उपाय ये बता रहा हूँ ।
'सरकार कहती है कि हम बिचौलियों को खत्म करना चाहते हैं'
किसानों के बीच से हाँ आप हकीकत में अगर किसानों के बीच से बिचौलियों को हटाना ही चाहते हैं तो फ़िर पेट्रोल,डीजल,कच्चे तेल से भी बिचौलियों को हटा दो तो किसानों का हित भी हो जाएगा आपका कानून भी हम स्वीकार कर लेंगे अगर ये आप कर देंगे तो पेट्रोल का मूल्य 32₹ से 35₹ हो जाएगा क्योंकि सरकार पेट्रोल बैरल में खरीदती है एक बैरल में 159 लीटर होते हैं और 54.58 डालर/बैरल में पेट्रोल को भारत खरीदता है अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पेट्रोल का मूल्य क्या चाहिए।
_"पेट्रोल का मुल्य कम्पनियां तय करती हैं ये सरकार का कहना है तो फ़िर किसानों के अनाज का मूल्य सरकार क्यों तय करती है"_
ये मनमानी कब तक चलाएगी सरकार जिस राज्य में चुनाव होता है तो कोरोना खतम चुनाव होते ही कोरोना बढ जाता है।
जल्द ही बिल से बाहर निकले केन्द्र सरकार ये मूषक की तरह छुपने से काम नहीं चलने वाला
अन्दर बैठ कर ये कहना आसान है कि ... "कृषि कानून में संशोधन जरूरी, हम समपूर्णता से कर रहे संशोधन"
ये बात भाती नहीं है जरा भी कि आप किसानों की बात सुनने से पीछे हट रहे हैं और संशोधन की बात करने लगे क्यों संशोधन जरूरी अगर बिल सही है आपका, सुधार उसमें किया जाता है जिसमें गलती होती है
अब ये तो आपने ही स्वीकार कर लिया कि ये कानून गलत इसलिए किसानों की बात मानों और कानून वापस लो ।
अब बात करता हूँ पुलिस फ़ोर्स की...मैं सवाल करता हूँ पुलिस से कि आप जिन किसानों को आन्दोलन करने से रोक रहे हो
यही किसानी परिवारों में आपने भी जन्म लिया है, कई पुलिस कर्मियों का ताल्लुक़ किसान परिवारों से है यही किसानी के खून पसीने के पैसे से ही पढ कर आप इस ओहदे पर हैं फ़िर भी आप अपने ही पिता समान किसानों पर लाठियां ,गोले, पानी बरसाते हो जरा भी शर्म नहीं आती, जबकि तुम्हें तो अपने किसानों का साथ देना चाहिए "चन्द पैसे के लालच में अपनों के ही खिलाफ खड़े हो उनका रास्ता रोके"
अगर आप साथ दें तो जरा भी वक्त नहीं लगेगा सत्ता को किसानों की बात मानने में
मेरा फ़िर से एक आग्रह है देश के प्रधानमंत्री महोदय से
कि इस सर्दी और अनसन में किसानों की मौत आंकडा बढे उससे पहले उनसे मिलिए और आन्दोलन को समाप्त कराइये ।
कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
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