Monday, July 29, 2019

तन्हाई बेबशी

"तन्हाई बेबश"

ख्वाबों की दुनियाँ भरी है
  जिन्दगी गम से भरी है
गम भरे हालात में जीकर
गुज़ारा कर रहे...

जीतना ही जीत जिसको
लग रही...
क्या बताएं ख्वाब दिल में
दिन ब दिन नए उग रहे...

हर तरफ़ तन्हाई बेबश
लोग चलते जा रहे
मैं अधूरा था अभी तक
पूरा खुद को कर रहे...

देख जालिम ये जमाना
बेरहम हर ओर है
क्या से क्या सपने गढ़े थे
दिख रहे कुछ और हैं...

~ शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश भारत

Friday, July 26, 2019

थका थका

बहुत थका थका सा हूँ मैं
बहुत जगा जगा सा हूँ मैं
बहुत चला चला सा हूँ मैं
      जहाँ था वही
अभी रुका रुका सा हूँ मैं

शिवम अन्तापुरिया

डगर मुश्किल जरुर है
लेकिन आगे कामयाबी भी खड़ी है...

शिवम अन्तापुरिया

बस सबके सामने चुप रहे
काम की आवाज तब सारी दुनिया सुनेगी

ऐसा कुछ नहीं
प्यार धोखा नहीं है
मानव धोखा देता है
और
बदनाम प्यार को करता है
क्योंकि सच्चाई ये है कि
आजकल प्रेम कोई नहीं करता
सिर्फ़ साथ सोना चाहता है बस

शिवम अन्तापुरिया

वो बहुत वीर थे जो लड़े कार्गिल,
खुद की जिंदगी से हारकर,
जीतकर मुझे दे गए कार्गिल
सदियों सदियों तक अमर नाम
तुम्हारा रहेगा वीरों
अपने घर-वार की बिन परवाह किए
मुझे जीत में दे गए कार्गिल
! नमन नमन नमन !
_शिवम अन्तापुरिया

Thursday, July 25, 2019

मुक्तक

बदल गया है जमाना बदलने अब रंग प्रकृति भी लगी...

शिवम अन्तापुरिया

कोई खबरो में मुझे लिख दे
कोई लफ़्जो में तुम्हें बक दे
इज़ाज़त सबकी लेता देता हूँ
जरा सा रहम खुदा भी कर दे

करो आज इतनी न तौहीन मेरी...
किसी दिन बनेगे हम जरूरत तुम्हारी...
यही मुफ़लशी गर रही रोज़ चलती...
तो कोई रोज़ तेरी हम इज़ाज़त बनेगे...
©®शिवम अन्तापुरिया

जहाँ बबूल उगे हों उसी को जंगल कहा जाता है...
बबूल न उगे हों तो कौन जंगल कहता है...
©®
शिवम अन्तापुरिया

कलम को न छुआ हमने बहुत कुछ लिखने वाला हूँ...
तुम्हारे प्यार में बह कर
किनारे लगने वाला हूँ...
©®
शिवम अन्तापुरिया

है अब आज़ाद वतन आज़ाद
            तेरे ही कन्धों से
अब देश को नहीं गुलाम होने देंगे
   गद्दार जयचंद जैसी चालों से
©®
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश भारत

कृतियाँ

"मिट्टी गाँव की"

जिसमें सौंधी सौंधी उठती सुगंध
    वो मिट्टी है मेरी गाँव की...
टूटा ध्यान मेरा जिनके कलरव से
जिसमें पली है इनकी चहचहाहट
     वो मिट्टी है मेरी गाँव की...

पुराने बरगद की शाखा
जो अब छू रही है मिट्टी को
    वो मिट्टी है मेरी गाँव की

जो खिल रहे हैं देखकर
मुझको पीपल के कोपलें
      फिर नए
नयी नवेली रंगत भरी
वो मिट्टी है मेरी गाँव की

खुद उगी खुद को उगाया
साथ है मुझको जिलाया
शान को अपनी बढ़ाया
बलिदान से अवगत कराया
होते रहेंगे ऐसे वीर पैदा
      इस धरा पर
वो मिट्टी है मेरी गाँव की

शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश भारत
सम्पर्क +91 9454434161

गज़ल
"मुस्कुराता सावन"

मेरे ख्वाबो में तू आती |
तो मुस्कुरा देता सावन ||.•

    हर जगह हम होते
      गर तू होती उपवन
     मेरे पहलू से गुज़रे
तेरे हर दिन का पल पल

मेरे ख्वाबो में तू आती |
तो मुस्कुरा देता सावन ||

नीद मुझको आती ही कहाँ
तेरे बिन ही अब जीता हूँ यहाँ
    जब से तू हुई है
मेरी आँखों से ओझल...

मेरे ख्वाबो में तू आती |
तो मुस्कुरा देता सावन ||

जिन्दा दिल भी
  मरहम मांगता है
तेरे दिल का बस
साथ मांगता है
अब तेरे ही वियोग में
भटकता है वो वन-वन...

मेरे ख्वाबो में तू आती |
तो मुस्कुरा देता सावन ||

शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश भारत
सम्पर्क +91 9454434161

"पार लाना है"

भँवर मध्यधार में अटकी
उसे अब पार लाना है
मिला है जो सिला हमको
उसे अब भूल जाना है...

घिरे बादल हैं चहुँओरी
घटा ने भी ली अंगड़ाई है
देख मौसम ये सुहाना
लगा हवा ने भी छोड़ी
अपनी चारपाई है...

जब मुश्किलें घेरने आई
तो डर ने भी दिल पर
थाप लगाई है
अकेला था अकेला हूँ
हिम्मत ने नैया को
खेकर पार लगाई है...

शिवम अन्तापुरिया उत्तर प्रदेश भारत

Saturday, July 20, 2019

पावन धरा की मिट्टी को
कैसे हम अपवित्र होने दें,
जो जीने की चाह हैं रखतें
उनको क्यों हम घुट घुट मरने दें,

शिवम अन्तापुरिया

लगभग लगभग लगभग मैं सब कुछ हूँ,
दुनियां समझे न समझे मैं दर्पण हूँ,

शिवम अन्तापुरिया

कोई आवाज देकर
मुझे उलझन सी
देता है,
वो खुदा ही है
बस मुझे जो
सुलझन सी
देता है..

एक खूब सपना था देखा
    जो चल पड़ा था
बिन कहे होकर अपना
अब तक के सफ़र में
मत पूछो क्या क्या है
मैने देखा

सोकर जगी आंखों ने अभी बरसात न देखी थी,
तेरा प्यार में आत्म समर्पण की मुझे ऐसी उम्मीद न थी,

-शिवम अन्तापुरिया

ये तन्हाई करीब
आई है
खुदा से पूछो
कैसी किस्मत
बनाई है
रह रह कर
जी रहा हूँ
फ़िर भी
सामने कई जंग
आई हैं
चल खुदा तेरा
वादा किया पूरा
जो मेरे पूर्वज
गुज़र गए
अब
हिस्से में
मेरे उनकी
सिर्फ़ तस्वीरें
आई हैं

सागर किनारे

"सागर किनारे"

बारिश की पहली
बून्दो की आहट
चाहत की पहली
घुनघुनाहट की आहट...

लगी बून्द पहली
सृष्टि की बरसने
कलरव ने तोड़ी
थी मेरी भी चुप्पी
उपवन गीत छेड़े
  मन में भी है
उठी गुनगुनाहट...

सागर किनारे
कोई मीत मेरा
समेटे खड़ा था
वो चाहत की चादर...

युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया

Thursday, July 18, 2019

किसी का साथ बनकरके मेरा आराध्य बनना तुम

कविता
   "आराध्य बनना" 

किसी का साथ बनकरके
मेरा आराध्य बनना तुम
हजारों खुशियो को लेकर
नया सफ़र शुरू करना तुम...

मन नयी क्रान्ति के क्रंदन से
खुद में ही उलझता जायेगा
    पास रहे गर तुम मेरे
    तो सारा सुख मिल जायेगा

  हाथ हवा का झोंका था
जो थमता नहीं वो चलता था
जो मस्त गगन के उन्मुक्त छोर
का सपने को सजाए बैठा था

किसी का साथ बनकरके
मेरा आराध्य बनना तुम...

शिवम अन्तापुरिया उत्तर प्रदेश भारत
+91 9454434161

साहब

साहब!
ये भी बता दू प्यार अपनी जगह है
संस्कार अपनी जगह है

प्यार को संस्कार की जगह नहीं दे सकते
शिवम अन्तापुरिया

कोई अक्सर मुझसे मिलकर दूर हो जाता है..
पता नहीं क्या उसके मन में ख्याल आता है..
शिवम अन्तापुरिया

मैं सफ़ेद कोट से भी लड़ा हूँ
काले कोट से भी लड़ा हूँ
यहाँ तक की जिंदगी और मौत से भी लड़ा हूँ...

शिवम अन्तापुरिया

ग्रहण 16/07/2019

मैं वैज्ञानिको की ग्रहण वाली बातो से सहमति नहीं हूँ कि धरती की छाया पडती है या बीच में आने से पड़ता है, क्योंकि अगर ऐसा होता तो कभी 1-2ग्रहण पडते हैं तो कभी चार
तो धरती के चक्कर का समय कैसे बदल सकता है
बोलो????

Wednesday, July 17, 2019

छन्द

एक छ्न्द समर्पित है

इश्क मोहब्बत नाम लिए चहुँ ओर  फ़िरे ये बने से ठने
घोर घनघोर देख ये लता सी छटा डूब चाह में वो गये
दिन चार बीत और आठ गए न प्रेम मिलन भी आज भये
मन मन्द भयो तन सुन्न भयो उनको देखन को नैना तरस गये

शिवम अन्तापुरिया

अक्सर

कोई अक्सर मुझसे मिलकर दूर हो जाता है..
पता नहीं क्या उसके मन में ख्याल आता है..

बारिश की बून्दे भी मेरे इश्क की निशानी है ...
सँभल कर पढो ये इश्क की कहानी है ...
©®...शिवम अन्तापुरिया

Saturday, July 13, 2019

खबर न मुझे

"खबर न मुझे"
राहों का मन्ज़र हो
सफ़र हो सुहाना
जिन राहों पर
उसे हो बस
चलते जाना...

यहाँ से वहाँ तक
न खबर हो हमारी
तेरा साथ छूटा जैसे
वो वफ़ा हो हमारी...

     कही जिंदगी का
सिलसिला रुकने न पाए
    खबर है मुझको
    कहाँ जिंदगी लिए ये जाए...

युवा कवि /लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश

खुद में झाँको जरा तो पता चल जाए

गीत

"पता चल जाए"

खुद में झाँको जरा
तो पता चल जाए
कैसी माँ है मेरी
ये नफ़ा हो जाए...

सामना लाखों मुश्किलों
से मेरा हो जाए
साथ मेरी माँ का बस
मुझे मिल जाए ...

खुद में झाँको जरा
तो पता चल जाए...

हम टूटते हुए मन्ज़र
से उलझाए जाएं
और मेरी माँ को गर
   पता चल जाए

खुद में झाँको जरा
तो पता चल जाए...

   जान मेरी बचाने को
माँ जान हथेली पर रख लाए
माँ तो माँ है विधाता
तब मुझे भी समझ आए...

खुद में झाँको जरा
तो पता चल जाए

रचयिता युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया उत्तर प्रदेश भारत
+91 9454434161

खूब खेला है

गीत
    "खूब खेला है"

माँ के सीने से लग के तू...
   कभी खूब खेला है ..
आज फ़िर तूने क्यों  उसे
   अकेला छोड़ा है..

जब लगती थी भूख तुझको
तब-तब माँ का सीना कूटा है...
   माँ थी कहती प्यार से
अब मेरा बेटा भूखा है...

माँ के सीने से लग के तू...
   कभी खूब खेला है ..

जब गायब हो मुस्कान
तेरे चेहरे की
माँ लरज़ते हुए कहती थी
मेरा लाडला क्यों रुठा है...

माँ के सीने से लग के तू...
   कभी खूब खेला है ..

चैन की नींद उसने
कहाँ सोई है...
उसके बेटे को जब तक
न नींद आई है...

माँ के सीने से लग के तू...
   कभी खूब खेला है ..

रचयिता युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
भारत

पूछता सैनिक

"पूछता सैनिक"
भारत वाले पूँछ रहे हैं
इन हुकूमत के दरवारों से,

कब तक माँ न रोकेगी...
बेटों को सरहद पर जाने से...
जान गवाँकर मिला क्या उनको,
मिट्टी में मिल जाने से...
शौर्य पुरुष भी नहीं कहा है
दिल्ली के दरबारों ने...
घर अपना सूना कर डाला,
वीर सपूतों लालों ने...
माँ-बहने रोती हैं बिलखती
बीते दिन की बातों में...
सर्दी-गर्मी कुछ न देखें
वो भारत माँ को जिताने में...
जीतते जीतते खुद हार गया वो
अपने ही अधिकारों से...

भारत वाले पूँछ रहे हैं
इन हुकूमत के दरवारों से,

युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश भारत

Thursday, July 11, 2019

ऎ उमड़ता हुआ बरश जा बादल,
या फ़िर जा चला चला जा बादल,
शिवम अन्तापुरिया

आज मेरा लेख "नई पीढ़ी पर नज़र रखने की आवश्यकता " टाइटल से ठोस कदम अखबार में प्रकाशित प्रदेश में तेज़ी से बढ़ती लोक प्रियता

" नज़र रखें नई पीढ़ी पर "

आज कोई एक गाँव की ही नहीं बल्कि पूरे देश दुनियां की भी बात की जाए अगर तो भी वही स्थिति नज़र आ रही है जो सम्पूर्ण संसार की है,हमारी आने वाली नई पीढ़ी तो बिल्कुल उसी रंग रूप में ढलती जा है जिसमें जिसमे पुराने लोगो का अब ढलना शुरू हुआ है, आज हम बात कर रहे हैं उन नासमझ और मासूम बच्चों की जिन्हें अपने भविष्य की कोई परवाह बिल्कुल ही नहीं है सिवाय
अपने शौक और नशे की लत को पूरा करने की ,मैने स्वम देखा है वर्तमान समय में जिनके हाथों में किताब होनी चाहिए उनके हाथों में धुम्रपान के पैकेट नज़र आ रहे हैं,घर से मिले रुपये जो पढाई में खर्च करने के लिए दिए गए हैं वो उनको अपने ऊपर ही उड़ा रहे हैं,
क्योंकि वो नशे की लत के शिकार बनकर लत के जाल में जकड़ते जा रहे हैं ऐसी स्थिति आपके घर परिवार को घोर संकट की दशा में लाकर खड़ा भी कर सकती है,अगर आप जानबूझकर भी अंदेखा करते जा रहे हैं ये सोच कर कि ... आगे चलकर खुद ही संभल जायेगा ,
आज के समय में अधिकतर लोगों ने "नशे को ही जीवन का सार बना रखा है"फ़िर चाहें नशा वो छोटा हो या बढा, मैने देखा है कि आज तीन माह का बच्चा भी मोबाइली बातों व तकनीको को समझने लगा है इस बात को मैं दावे के साथ कह रहा हूँ,कही दूर का उदाहरण नहीं मैं अपने भान्जे रुद्र्देव की बात कर रहा हूँ जो फ़ोन को देखकर बहुत ही खुश हो उठता है, और उसको चलने के लिए मचल उठता है, यही सब देखकर मैं पूरे समाज को इन चीजो से अवगत कराना चाहता हूँ कि अपनी पीढी पर नज़र रखें कही वो कोई नशे शिकार तो नहीं हो रहे हैं, किसी चीज को लेकर वो अधिक चिंतित तो नहीं हो रहे हैं, इस आधुनिक युग में कोई तकनीकी यन्त्र में ही तो नहीं लगे रह रहे हैं,क्योंकि छोटे बच्चों का जब ध्यान शुरुआत से बट जाता है तो फ़िर

जुगुनू की तरह

जुगनु की तरह अंधकार में रहकर, ,,,
अपनी अलग पहचान छोड़ना सीखो ,,

भीगा मन

"भीगा मन"

रिमझिम बूँदे बरश रहीं हैं
  मन भी भीगा जाए
ये सावन रंगीला रंगीला
   दिल भी बहका जाए
   आज धड़क कर
       दिल है बैठा
मौसम बहका बहका जाए...

कभी है दिल
बादल बन जाता
कभी दूर दूर वो जाए
मेरा दिल हो गया बाबरा
जिसको न बहलाया जाए...

झम-झम छन-छन
    करती बूँदें
ठुमरी गीत सुनाए
ये मौसम है बहुत सुहाना
जिसमें कवि ये बहता जाए...

   युवा कवि/लेखक
  शिवम अन्तापुरिया
      उत्तर प्रदेश

लगा मैं हवा हूँ

"लगा मैं हवा हूँ"

लिखूँ मौसम की क्या ताकत
  तेरे कदमों में लाने को
   मुशाफ़िर बन चुका हूँ मैं
     तेरी चाहत को पाने को...

बना हूँ सिरफ़िरा खुद मैं
अभी आज़ाद बनने को
लगा मैं हूँ हवा की बारिश
खुद को भिगाने को...

  यहाँ की भीड़ बस्ती को
मैं हवा का झोंका लगता हूँ
यहाँ की ख्वाब खामोशी के
बदले ज़रा सा प्यार दो मुझको...

युवा कवि /लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश

Wednesday, July 10, 2019

तेरे दिल शेर

आशिक तेरे दिल में बसते गुज़रते,
हम तो सुबह शाम रहते हैं ज़गते,

शिवम अन्तापुरिया

Tuesday, July 9, 2019

झोंका

"झोंका हूँ"

ये सावनी बयार है
कर रही पुकार है
बह रहा झोंका सा मैं
  गिर रहे फ़ुहार हैं...

    है हवा बहार में
   हो रहा गुलज़ार मैं
किस तरह बताऊँ उसको
वो बारिश का ही सुकुमार है ...

बन हवा का झोंका मैं
फ़िर कर दिया आह्वान है
  है जरुरत बन जरूरत
     कर रहा पुकार है ...

युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया

Sunday, July 7, 2019

तन्हाँ खड़े हैं

"तन्हाँ खड़े हैं"

कभी हाथ उनके थे
कभी हाथ मेरे
सफ़र जिंदगी के थे
बहुत ही टेड़े...

जब जब चला मैं
गिरता रहा हूँ
गिरकरके उठता
सँभलता रहा हूँ...

मेरा शौक जीना ही
  मंजिल नहीं है
  दुनियाँ बिगड़ती जाए
ये मुझको मुनाशिफ नहीं है..

मुझे देखकर तुम जिओगे कैसे
   हम तो हजारों में भी
      तन्हाँ खड़े हैं...

शिवम अन्तापुरिया

पतंगे जानकर भी
सम्माँ के पास आते हैं
गवाने जा रहा हूँ जान
       "अपनी"
ऐसी खुशियाँ मनाते हैं

शिवम अन्तापुरिया

Saturday, July 6, 2019

दिल दर्द भी है
दिल दवा भी है
क्या बताऊँ इस
शहर के लिए दिल
हवा भी है

शिवम अन्तापुरिया
हमे फ़ुरसत ही कहाँ है खुद से,
रहते हैं हमेशा काम करते,
हम कैसे बसें तुम्हारे दिल में,
हम चलते ही हैं रुकते रुकते,

शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश (भारत )

गूलरे पक गयी भुने भुने आ गए
मानो चाहत के सारे ख्वाब मिल गए
शिवम अन्तापुरिया

Thursday, July 4, 2019

कविता मची खलबली

"मची खलबली"

घिरे बादलों की
भूख बस यही है
ज़मीं भीग जाए
कमी बस यही है
घिरे घनघोर बादल
उमड़ ही रहे हैं
जिन्हें देखकर दिल
में मची खलबली है

आशाओं की किरणें
हिलोरें भर रहीं हैं
मन की मनोदशा
शिथिल हो रही है
मेरी साँस रूकती
बिखरती जा रही है
लगा जैसे मेरी साँसे
बारिश की बूँदों से
जुड़ती जा रहीं हैं

युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
भारत
गूलरे पक गयी भुन भुन आ गए
मानो चाहत के सारे ख्वाब मिल गए
शिवम अन्तापुरिया

बिना मर्ज़ी सबके घरों में घुस जाऊँगा
     जो देखना भी न चाहते थे
     उनके ही खरीदे अखबार में  
                     जब छापा जाऊँगा

शिवम अन्तापुरिया

ऎ उमड़ता हुआ बरश जा बादल,
या फ़िर जा चला चला जा बादल,
शिवम अन्तापुरिया