"झोंका हूँ"
ये सावनी बयार है
कर रही पुकार है
बह रहा झोंका सा मैं
गिर रहे फ़ुहार हैं...
है हवा बहार में
हो रहा गुलज़ार मैं
किस तरह बताऊँ उसको
वो बारिश का ही सुकुमार है ...
बन हवा का झोंका मैं
फ़िर कर दिया आह्वान है
है जरुरत बन जरूरत
कर रहा पुकार है ...
युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
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