पावन धरा की मिट्टी को
कैसे हम अपवित्र होने दें,
जो जीने की चाह हैं रखतें
उनको क्यों हम घुट घुट मरने दें,
शिवम अन्तापुरिया
लगभग लगभग लगभग मैं सब कुछ हूँ,
दुनियां समझे न समझे मैं दर्पण हूँ,
शिवम अन्तापुरिया
कोई आवाज देकर
मुझे उलझन सी
देता है,
वो खुदा ही है
बस मुझे जो
सुलझन सी
देता है..
एक खूब सपना था देखा
जो चल पड़ा था
बिन कहे होकर अपना
अब तक के सफ़र में
मत पूछो क्या क्या है
मैने देखा
सोकर जगी आंखों ने अभी बरसात न देखी थी,
तेरा प्यार में आत्म समर्पण की मुझे ऐसी उम्मीद न थी,
-शिवम अन्तापुरिया
ये तन्हाई करीब
आई है
खुदा से पूछो
कैसी किस्मत
बनाई है
रह रह कर
जी रहा हूँ
फ़िर भी
सामने कई जंग
आई हैं
चल खुदा तेरा
वादा किया पूरा
जो मेरे पूर्वज
गुज़र गए
अब
हिस्से में
मेरे उनकी
सिर्फ़ तस्वीरें
आई हैं
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