Sunday, July 7, 2019

तन्हाँ खड़े हैं

"तन्हाँ खड़े हैं"

कभी हाथ उनके थे
कभी हाथ मेरे
सफ़र जिंदगी के थे
बहुत ही टेड़े...

जब जब चला मैं
गिरता रहा हूँ
गिरकरके उठता
सँभलता रहा हूँ...

मेरा शौक जीना ही
  मंजिल नहीं है
  दुनियाँ बिगड़ती जाए
ये मुझको मुनाशिफ नहीं है..

मुझे देखकर तुम जिओगे कैसे
   हम तो हजारों में भी
      तन्हाँ खड़े हैं...

शिवम अन्तापुरिया

पतंगे जानकर भी
सम्माँ के पास आते हैं
गवाने जा रहा हूँ जान
       "अपनी"
ऐसी खुशियाँ मनाते हैं

शिवम अन्तापुरिया

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