गीत
"खूब खेला है"
माँ के सीने से लग के तू...
कभी खूब खेला है ..
आज फ़िर तूने क्यों उसे
अकेला छोड़ा है..
जब लगती थी भूख तुझको
तब-तब माँ का सीना कूटा है...
माँ थी कहती प्यार से
अब मेरा बेटा भूखा है...
माँ के सीने से लग के तू...
कभी खूब खेला है ..
जब गायब हो मुस्कान
तेरे चेहरे की
माँ लरज़ते हुए कहती थी
मेरा लाडला क्यों रुठा है...
माँ के सीने से लग के तू...
कभी खूब खेला है ..
चैन की नींद उसने
कहाँ सोई है...
उसके बेटे को जब तक
न नींद आई है...
माँ के सीने से लग के तू...
कभी खूब खेला है ..
रचयिता युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
भारत
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