"सागर किनारे"
बारिश की पहली
बून्दो की आहट
चाहत की पहली
घुनघुनाहट की आहट...
लगी बून्द पहली
सृष्टि की बरसने
कलरव ने तोड़ी
थी मेरी भी चुप्पी
उपवन गीत छेड़े
मन में भी है
उठी गुनगुनाहट...
सागर किनारे
कोई मीत मेरा
समेटे खड़ा था
वो चाहत की चादर...
युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
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