"प्रेम नहीं पहचानेंगे"
नाम मोहब्बत का सुनते ही
मेरा दिल घबराता है
याद तुम्हारी आती है
ये बदन भीग सा जाता है
सारी रात जागते हैं कोई
उपचार नहीं मिल पाता है
तट तटस्थ होकर थक जाते
ये अश्रु नहीं रूक पाते हैं
महज़ समाजी ठेकेदारों के
कारण
ये प्रेम विलय न हो पाते हैं
बहुत लहू धाराएँ बहतीं
बहुत बदन मिट्टी हो जाते हैं
ये ढाई शब्द का बोझ जरा
क्यों लोग नहीं सह पाते हैं
द्वंद्व उठा आरोप लगा
वो मन ही मन मुस्काते हैं
जरा प्रेम की बात को लेकर
वो अम्बार बनाते जाते हैं
सच्चाई की दहलीजों को
लोग तरसते जाते हैं
प्रेम एक ये सच्चाई है
जिससे लोग मुकरते जाते हैं
प्रेम जरा भी करना हो तो
सावधान होकर करना
प्रेम ग्रंथ के पन्नों में
इतिहास जरा होगा पढ़ना
ये घोर कलयुगी धारा में
राधा-माधव,मीरा न पहचानेंगे
जरा सन्देह बेबुनियादी साक्ष्यों से
तुमको आरोपी बतला देंगे
प्रेम बिछड़ जो जाता है
तो मौत नहीं हल होता है
जरा सब्र रखकर देखो
सब पहले जैसा हो जाता है
जरा-जरा सी बातों को क्यों
दिल पर तुम ले जाते हो
प्रेम पुजारिन राधा को क्यों
भूल यहाँ पर जाते हो
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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