उसने धैर्य नहीं खोया होगा
सारी रात जागकर भी
वो दिन में नहीं सोया होगा
मुझसे ज्यादा कृषकों के
हालात कौन अब जानेगा
जो फ़सलों को पानी देता
क्या वो ही पानी को तरसेगा
शिवम अन्तापुरिया
कृषकों की पीढ़ा क्या है मैं
सम्मुख तेरे लेकर आऊँगा
औकात तेरी क्या शासन है
मैं तुझे बताने आऊँगा
"आँसू पीते देखा"
दुर्बल और निर्बल काया
को मिटते हमने देखा है
अभी टूटती साँसों का
दम घुटते हमने देखा है
अन्न उगाते सत्ता खाती खुद
को धूल फ़ाकते देखा है
लाचार किसानों की काया
को फ़न्दे पर लटका देखा है
हाँ अब कृषकों की पीढ़ा
का कैसे मैं आव्हृान करूँ
सत्ता में निर्दयी सब बैठे हैं
अब कैसे मैं ये सहन करूँ
नहीं भाव मिलता है उसको
मन्डी में लुटता हमने देखा है
तुम कहते हो दोगुना करेंगे
हमने तो सिंगल उसको देखा है
तुम तो सत्ता में मस्त हुए
किसान बेचारे पस्त हुए
वो कहते खुशियाँ हमने बाँटी हैं
हमने तो आँसू पीते देखा है
~ शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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