"राहें बताती रही"
मैं कहता रहा वो सुनती रही
जिंदगी की हर कली खिलती रही
हम उसे अपना अपना कहते रहे
वो आँखों से आँखें मिलाती रही
ऐ़ त़जुर्बा नहीं है मोहब्बत का मुझे
वो रोज़ मोहब्बत सिखाती रही
हम कहाँ थे कहाँ आ गए हैं
वो मुझको राहें बताती रही
ख़्वाब और सपने बड़े उसके भी हैं
हम समझते थे हम अकेले ही हैं
ये जिंदगी कहाँ क्या कर जाए
हम ऐसी राहों पर चलते ही हैं
~ शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
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