"अपराध के फ़ैलते पाँव"
अपना भारत देश जिस सभ्यता व संस्कृति के लिए जाना जाता है
दुनियां भर में अब मुझे वो सब लुप्त होता दिख रहा है,
इन्शान के अन्दर इन्शानियत तो बिल्कुल ही मर चुकी है
"इन्शान का इन्शान दर्द समझे
वो अब इन्शान कहाँ रहा,
इन्शानियत को खाने वाले दिख रहे हैं हैवान, अब ऐसा माहौल बन रहा "
विश्वास के पात्र में धोखा का भोजन परोसा जा रहा है
सबसे बड़ी बात तो ये है कि आज के युवा अपराध की ओर ज्यादा बढ़ रहे हैं जिससे मुझे ये आभास हो रहा है कि आधुनिक युग के बच्चों को संस्कार सिखाने की जगह उनको अपराध दिखाने व उनके कड़े परिणामो से अवगत कराना होगा ताकि वो अपराध की ओर कदम रखने से पहले एक बार सोचे जरुर,संस्कार की जगह अपराधो से अवगत कराने को मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज के बच्चों को संस्कार तो सिर्फ ढोंग-धतूरा लगता है उन्हें ये लगता है जो मै कर रहा हूँ बस वही सही है युवाओ को जब तक जुर्म के बारे में पता नहीं होगा की कौन से जुर्म में कानून की कौन सी धारा व दंड का प्रावधान है तब तक उनके अन्दर डर पैदा नहीं होगा,
अपने देश में बढ़ते बलात्कार ज्यादातर युवाओ की ही तो देन है
अगर ये अपने परिवार और घर के सम्मान,संस्कारो पर जरा भी ध्यान दिया करे तो ऐसे कदम कभी नहीं रखें,
अभी टविन्कल के साथ घटी घटना सबके जुबा पर है उसपर
सिर्फ़ इतना ही कहून्गा
मासूम टविन्कल को नमन
आज फ़िर कोई हवशी है कातिल बना
काम मौलाना है, फ़िर भी जाहिल बना
जान है फ़िर गई एक मासूम की
साथ इज़्ज़त का भी है ज़नाज़ा उठा
हाथ भी काटे हैं, पैरों को भी काटा
सारी हद पार की, आँखो को भी नोचा
बर्बरता यही पर भी न है रुकी
सारे शरीर को भी खोखला है किया ।
कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
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