*फ़ितरत रही है*
जिन राहों पर तुम चल रहे हो
वो राहें तुम्हारी नहीं हैं
सफ़र जिंदगी का है नाज़ुक
जो तुम्हारे बस में नहीं है
आजकल के हैं दरम्याँ से वाकिफ़
तेरा इन खिताबों से रिश्ता नहीं हैं-2
जिन राहों पर तुम चल रहे हो
वो राहें तुम्हारी नहीं हैं
गम के साओं से दूर रहकर
जिंदगी जो कटे
ऐसा मुमकिन नहीं है -2
लाखों साथी भले ही हो तेरे
मिलना धोखा एक छोटा नहीं है
जिन राहों पर तुम चल रहे हो
वो राहें तुम्हारी नहीं हैं
हर घड़ी नफ़रत से
तुम न मुझको देखो
मेरी नफ़रत से मोहब्बत की
फ़ितरत रही है -2
जिन राहों पर तुम चल रहे हो
वो राहें तुम्हारी नहीं है
लेखक
~ *शिवम अन्तापुरिया*
9454434161
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