*समस्याओं ने घेरा*
समस्याओं ने मुझे
इस भाँति घेरा
रात सा दिन हो गया
शाम सा लगने
लगा सवेरा
न डरा और न रुका
मैं चल दिया हूँ
उससे लड़ने अकेला
थामा जो साहस का दामन
तो बढ़ गया
हौंसला फिर मेरा
कील कंकड़ पत्थरों ने
रोकना चाहा मुझे
रूक सका न मैं कहीं
मैं डरा अंधकारों से नहीं
हो गया है कारगर
जब सारी दुनियाँ से
हूँ जंग मैं लड़ा
कवि शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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