विचरण है ये विहंगम है
रात दिनों भर बहती रहती
यही है प्रेम का संगम है
कल-कल छल-छल
करती बहती रहती कभी
न रुकना ही जीवन है ।
पावन जल अर्पण करना
ही दुनियाँ को ये मनोरम है
जो रिश्ता है रात से इसका
वही रिश्ता दिन से हरपल है ।
नदी को है डुबाया किसने
पानी को है भिगाया किसने
दुनियाँ की हर बुराई को लेकर
पानी रहता सदा ही निर्मल है ।
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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