Friday, November 8, 2019

डुबाया किसने

"डुबाया किसने"

विचरण है ये विहंगम है 
रात दिनों भर बहती रहती 
    यही है प्रेम का संगम है 
  कल-कल छल-छल 
करती बहती रहती कभी 
       न रुकना ही जीवन है ।

 पावन जल अर्पण करना 
ही दुनियाँ को ये मनोरम है 
जो रिश्ता है रात से इसका 
वही रिश्ता दिन से हरपल है ।

नदी को है डुबाया किसने 
पानी को है भिगाया किसने 
दुनियाँ की हर बुराई को लेकर 
  पानी रहता सदा ही निर्मल है ।

     रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

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