लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
आग घर की हो या फ़िर सियासत की हों
इनकी लपटों से हैं कोई बचता नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
लोग रहते जमीं आसमाँ पर जो हों
आज ख्वाबों में घर ऐसे बनते नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
तुमको चाहने वाले भी अंजान हों
ऐसी चाहत पे करना भरोसा नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
कोई बेकार है कोई लाचार है
दिल के दर्दों को कोई समझता नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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