Saturday, November 23, 2019

आज राजस्थान के अखबार में प्रकाशित लेख किसानों के हित में

"धर्म संकट में किसान"  

सदियों पुरानी बात है जिस तरीके से किसान अपनी खेती करते आए हैं लेकिन आज उन पर इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं।
जिससे मेरा दिल व्यथित हो उठा और मेरी कलम लिखने को रुकी नहीं और लिख दिया मैं सवाल करता हूँ सरकार से कि क्या किसान पहले अपनी पराली नहीं जलाते थे या बचे हुए अवशेषों को नष्ट नहीं करते थे क्या जो आज इन पर प्रदूषण फ़ैलाने का एक अपराध उन पर किया जा रहा है जबकि मेरा मानना ये है कि साहब! 
ये प्रदूषण तो अमीरों की दिवाली से छाया है !
और इल्ज़ाम किसानों की पराली पर आया है !!

आप ही सोचे शहर में तो किसान अपनी पराली जलाने जाते नहीं हैं जिससे कि शहर में प्रदूषण फ़ैल व बढ़ रहा है फ़िर अगर खेतों से बना प्रदूषण शहरों में पहुँच सकता है तो क्या शहर का प्रदूषण जो शहर के बड़े -बड़े कारखानों की चिमनियों से निकलता है वो क्या किसानों की फ़सलों पर दुष्प्रभाव नहीं डाल रहा है जिससे किसानों के फ़सलो की पैदावार घट रही है। और हर फ़सलें कोई न कोई रोग से अवश्य ग्रसित हो रही हैं फिर भी 
किसानों की पैदावार की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया कि आखिर क्यों ये सब हो रहा है, लेकिन उनकी पराली को लेकर उन पर दोष मढ़ा जाने लगा कि ये प्रदूषण सिर्फ़ किसानों की देन है और आनन-फ़ानन में उनपर जुर्माना भी लगाने का नियम लागू कर दिया गया। जबकि राजनेता कितने नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं फ़िर भी उनपर कोई जुर्माना का नियम नहीं पास किया गया न ही कोई दण्ड दिया जा रहा क्योंकि वो सत्ता में आसीन हैं आखिर ये दुघाती नहीं तो और क्या है किसानों के द्वारा नियम को तोड़ने पर 2 एकड़ की पराली पर ₹ 2500/ और 5 एकड़ पर ₹ 5000/ और इससे भी ज्यादा एकड़ की पराली पर 15000-25000 ₹ का जुर्माना पास कर दिया गया लेकिन ये नहीं सोचा सरकार ने कि इस साल अधिक बारिश की वजह से फ़सले 75% नष्ट हो गई हैं अगर वो जलाए न तो क्या करें जब उसमें लागत व मज़दूरों की मज़दूरी भी नहीं निकल रही है फ़िर वो ये जुर्माना कैसे भरेंगे या सरकार के डर से नुकसान को भूल जाएं और घर से पैसा लगा कर पराली को एकत्रित करें ।
ये बहुत बड़ा धर्म संकट है किसानों के सामने जिससे वो कैसे उबरे l 
एक बात और अगर किसानों की पराली से ही प्रदूषण फैल रहा है तो फ़िर किसानों के क्षेत्र यानी उनके गांवों में प्रदूषण क्यों नहीं दिख रहा है ।

  लेखक/कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

No comments:

Post a Comment