Saturday, November 23, 2019

किसी और के

"किसी और के"

हम चाटुकारिका हैं करते नहीं 
     जिन्दगी ये है अपनी
       कोई गैर की नहीं 
       वो होंगे जो इशारे 
     पर तुम्हारे चलते होंगे,

हम नहीं हैं कठपुतली
 कोई लकड़ी की 
जो नाचे हम तुम्हारे 
इशारे पर उंगली की

देश के समाज को जो 
   खोखला हैं कर रहे 
  वो दूसरों के पैरों में 
सुशोभित खुद को कर रहे 

काम सब वो कर रहे 
   इशारे किसी और के 
     रचे उत्पात सारे उनके 
सिर रखे जाते किसी और के 

      रचयिता 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

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