Thursday, October 24, 2019

शायरी 23/10/2019

सब लोग ही कच्ची दीवारों से 
निकल कर बाहर आए हैं 
   सभी के पुरखा कोई 
    फ़र्श पर थोड़ि पले हैं 

कुछ इश्क ज़ादे मेरे यारों को 
बेवफ़ाई के जख्म दिए बैठे हैं 
और हम... उन्हीं पर आश लगाए बैठे हैं 


आज मेरे यार ज़ाम के ऊपर 
ज़ाम के ऊपर ज़ाम पिए बैठे हैं 
और हम हैं कि उन्हीं अपनाए बैठे हैं 


चलो हम सब आज मिलते हैं 
गम के दो-दो हाथ जड़ते हैं 

जो खड़ी है कल से प्यार की राह में 
जरा उससे तो पूछिए 
किसके दिल में है घर बनाना जरा 
उससे तो पूछिए 


मै घङी की सुईयों की तरह चल तो नहीं सकता,
#क्योंकि मुझे रूकना पङ जाता है;*

काफ़िला गुज़र गया 
   कारवाँ निकल गया 
     हम भी कौन थे 
       दस घर के 
मेरा भी दिल भटक गया 


अब तो हर बात पर्सनल होने लगी 
पति को गैर की पुत्री पर्सनल. लगने लगी 


इश्क की छाँव में 
वो मोहब्बत है करने लगा... 
मिलकर उससे जिंदगी के फ़ैसले करने लगा... 

©®शिवम अन्तापुरिया

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