सब लोग ही कच्ची दीवारों से
निकल कर बाहर आए हैं
सभी के पुरखा कोई
फ़र्श पर थोड़ि पले हैं
कुछ इश्क ज़ादे मेरे यारों को
बेवफ़ाई के जख्म दिए बैठे हैं
और हम... उन्हीं पर आश लगाए बैठे हैं
आज मेरे यार ज़ाम के ऊपर
ज़ाम के ऊपर ज़ाम पिए बैठे हैं
और हम हैं कि उन्हीं अपनाए बैठे हैं
चलो हम सब आज मिलते हैं
गम के दो-दो हाथ जड़ते हैं
जो खड़ी है कल से प्यार की राह में
जरा उससे तो पूछिए
किसके दिल में है घर बनाना जरा
उससे तो पूछिए
मै घङी की सुईयों की तरह चल तो नहीं सकता,
#क्योंकि मुझे रूकना पङ जाता है;*
काफ़िला गुज़र गया
कारवाँ निकल गया
हम भी कौन थे
दस घर के
मेरा भी दिल भटक गया
अब तो हर बात पर्सनल होने लगी
पति को गैर की पुत्री पर्सनल. लगने लगी
इश्क की छाँव में
वो मोहब्बत है करने लगा...
मिलकर उससे जिंदगी के फ़ैसले करने लगा...
©®शिवम अन्तापुरिया
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