Tuesday, October 15, 2019

लाचार किसान

कवि ने बरसते पानी को देख जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और किसानों की फ़सलें जो बर्बाद होती जा रही हैं इन सब स्थितयों को देखते हुए लाचार किसानों की पीड़ा सबके सामने लाने की कोशिश की है और पानी से रूकने की गुहार लगाई है।

    "लाचार किसान"

बरश रहा है देख रहा है
बादल धरती वालों को
है परेशान किसान देश
के कैसे बचाए अपने
   अनाजों  को...

  कभी तेज है कभी मन्द है
  करता अपने फ़ब्बारों को
रिमझिम-रिमझिम बूँदे बरशे
   सूरज को भी ढाँके है
कैसे बच पायेगी फ़सलें 
वो असहनीय पीड़ा देता
    किसानों को....
अपनी तड़-तड़ की आवाजों से

   जिस ओर नज़र जाती है
उनकी बादल घिरे ही दिखते हैं
जरा सी राहत के खातिर
  सूरज कहीं न दिखते हैं
पीढा़ उठती है मेरे दिल में
देख मजबूर-लाचार किसानों को...

हे! मेघराज़ अब रुक जाओ
पीड़ा समझो किसानों की
मेरा दिल भी व्यथित हुआ है
गलती गर हो गई हो उनसे
तो अब माफ़ कर दो किसानों को

  रचयिता -
शिवम अन्तापुरिया
    उत्तर प्रदेश

+91 9454434161

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