कवि ने बरसते पानी को देख जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और किसानों की फ़सलें जो बर्बाद होती जा रही हैं इन सब स्थितयों को देखते हुए लाचार किसानों की पीड़ा सबके सामने लाने की कोशिश की है और पानी से रूकने की गुहार लगाई है।
"लाचार किसान"
बरश रहा है देख रहा है
बादल धरती वालों को
है परेशान किसान देश
के कैसे बचाए अपने
अनाजों को...
कभी तेज है कभी मन्द है
करता अपने फ़ब्बारों को
रिमझिम-रिमझिम बूँदे बरशे
सूरज को भी ढाँके है
कैसे बच पायेगी फ़सलें
वो असहनीय पीड़ा देता
किसानों को....
अपनी तड़-तड़ की आवाजों से
जिस ओर नज़र जाती है
उनकी बादल घिरे ही दिखते हैं
जरा सी राहत के खातिर
सूरज कहीं न दिखते हैं
पीढा़ उठती है मेरे दिल में
देख मजबूर-लाचार किसानों को...
हे! मेघराज़ अब रुक जाओ
पीड़ा समझो किसानों की
मेरा दिल भी व्यथित हुआ है
गलती गर हो गई हो उनसे
तो अब माफ़ कर दो किसानों को
रचयिता -
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
+91 9454434161
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