अब खुद ही खुद की जिंदगी से
अलग सा हो गया हूँ
लोग प्यार से प्यार करते हैं
फ़िर मौत से क्यों डरते हैं
किसी की तपन और ठण्डक से
जमता-पिघलता रहता हूँ
ऐसा कब-तक (कमज़ोर) चलेगा (समाप्त)
ये देखता हूँ
न जाने क्यों लोग मुझे
बदनाम करने की
कोशिसें व साजिशें रचा करते हैं
मुझमे ऐसी गलती क्या है
खुद ही खुद में खोजा करते हैं
लिखते गए अपनी खामोशियाँ
लोग करते रहे मुझसे बदमाशियाँ
शिवम अन्तापुरिया
No comments:
Post a Comment