"दूध वाला"
खड़ा होता है दर दर पर
होता है दूध वाला ।
सुबह-शाम पहुँचता है घर घर
रुकता हुआ भी डग-डग
होता है वो भी दूध वाला ।
कहीं लेने कहीं देने चलता
रहता है जो हर दिन
समझता है सभी का दर्द
होता है दूध वाले में मर्म
चिलचिलाती धूप में चलकर
कड़ाके की ठंड को सहकर
सभी को बाँटता फ़िरता ।
दूध अपना समझकर
सभी की बातें सुनकर
निकाल देता बस हँसकर
गरजते बादलों में चलकर
भिगा देता है खुद को
कपकपाते हाथों से जब
साधता है वो लीटर
छलकते देख लीटर को
रो उठा दिल मेरा
देख धरती पर बहते
दूध को
हिल गया दूध वाला ।
कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
No comments:
Post a Comment