हर हालात से हम गुज़रते रहे
पुराने बिस्तरों पर हम सोते रहे
चारपाई भी थी टूटी मेरी
रात भर करवटें हम बदलते रहे
वो याद है शुष्क ठंण्ड थी रात में
खुले आसमान में हम लेटे रहे
तुम्हें पुकारा हजारों बार मैंने
और तुम चैन से सोते रहे
नज़दीकियाँ थी
तुम्हारे-हमारे बीच बहुत सारी
मगर मुश्किलों में साथ भी तुम
बीच राह में ही छोड़ते रहे
तुम मुझसे प्रेम करते थे
या पाप करते रहे
और हम सच समझकर
खुद को प्रेम की ज्वाला में
आहुति देकर जलाते रहे
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
"सत्तारुढी खानों में"
देख लिया है मैैंने उसके
बेवशी के मन्ज़र को
नीर नहीं मिल पाता
उसको मज़बूर है
आँशू पीने को
मंजिल पथ पर खड़ा हुआ है
खुद को कुछ सिखलाने को
लोग पैर अब खींच रहे हैं
मिट्टी में दफ़न कराने को
कैसे कैसे लोग पड़े हैं
सत्तारुढी खानों में
जिनमें जरा न रहम बचा है
ऊँची सीढ़ी पाने को
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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