का आभारी हूँ
I am a Poet & Writer . मैं काव्य-संग्रह और मुक़्तक लिखता हूँ I मुझे लिखने में मज़ा आता है , धन्यबाद I
Friday, November 29, 2019
न पता था
"न पता था"
ये क्या प्यार में था
सही और गलत था
नज़रे मिली वो
तुम्हारा हुआ था
प्यार की राह में उसे न
दिन-रात का पता था
चल दिया है किधर वो
न इस राह का पता था
न जात का पता था
न पात का पता था
कब हुए एक दूसरे के
न इस बात का पता था
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
हैं रूकते नहीं
"हैं रूकते नहीं"
हारे हिम्मत अगर
इस जहाँ में पुरुष
देखकर मेरा मन
पिघल भी जायेगा
सोचता हूँ मैं कैसा
इरादा होता है इनका
दृढ़ और अटल सारे
गमों को भुला जाएगा
कितनी भी बड़ी हो संवेदना
कितनी भी बड़ी हो वो वेदना
पैर मर्दों के हैं रूकते नहीं
हर दुखःड़ा कलेजे में समा जाएगा
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
अधूरा साथ
"अधूरा साथ "
जिन्दगी ये मेरी कोई शीशा नहीं
खेलकर तोड़ दो है खिलौना नहीं
वर्षों लगी हैं मुझे सजाने में इसे
छोड़कर जाऊँ कोई है मकाँ नहीं
बेजह तुम बनें जिन्दगी यूँ रहे
साथ मेरे करते खिलवाड़ क्यों रहे
हम तो अकेले थे बनें रहने देते
अधूरा साथ मुझको देते क्यों रहे
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
राह कहाँ छोड़ी है
"राह कहाँ छोड़ी है"
आज छोटी उड़ाने गगन चूम लें
मिलकरके ऐसा एक संकल्प लें
जीत मिलती सदा उन्हीं को यहाँ
जो अपने हौंसलों को दृढ़ कर लें
लोग कहते हैं कर पाएगा ये क्या
अपने जज्बातों को दिखा दो यहाँ
भरा है क्या मेरे दिल में जुनूँन
सफलता इन्हें भी दिखा दो यहाँ
अभी काम व पहचान छोटी है
शोहरत की गली थोड़ी छोड़ी है
चलते जाएँगे बढ़ने की राह में
सफलता की राह कहाँ छोड़ी है
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Sunday, November 24, 2019
गीत
" गीत "
1- छोड़ कर प्यार की
राह तुम चल दिए
इस कदर तेरा जाना
न हम सह सके...
2- अब है जाना तुम्हें
तो चले जाइए
अब ये नज़रे न
हमसे मिलाना कभी...
छोड़ कर प्यार की
राह तुम चल दिए
इस कदर तेरा जाना
न हम सह सके...
2- न ही हम दूर थे
न ही तुम दूर थे
एक दम क्या हुआ
तुम बिखर से गए....
छोड़ कर प्यार की
राह तुम चल दिए
इस कदर तेरा जाना
न हम सह सके...
2- कोई दीवाना कहे
कोई फ़साना कहे
तुम मोहब्बत में
कैसे जकड़ से गए...
छोड़ कर प्यार की
राह तुम चल दिए
इस कदर तेरा जाना
न हम सह सके...
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
गजल
" गजल "
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
आग घर की हो या फ़िर सियासत की हों
इनकी लपटों से हैं कोई बचता नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
लोग रहते जमीं आसमाँ पर जो हों
आज ख्वाबों में घर ऐसे बनते नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
तुमको चाहने वाले भी अंजान हों
ऐसी चाहत पे करना भरोसा नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
कोई बेकार है कोई लाचार है
दिल के दर्दों को कोई समझता नहीं...
लोग इनको जला राख कर देते हैं।
ये घरौंदे कभी हैं बिगड़ते नहीं।।
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
फर्ज है तेरा
"फर्ज है तेरा"
माँ-बाप के अपने अहसानों
को भुला तुम यू कैसे सकोगे
पाला है जिसने खुद जागकरके
उसको तुम कैसे रुला सकोगे
है श्राध्द में पानी देना फर्ज़ तेरा
फर्ज़ से कैसे मुकर सकोगे
पानी से बुझती है प्यास उनकी
प्यासा उनको कैसे रखोगे
पूर्वजों की मर्यादाओं का
सम्मान तुम्हारे हाथ में है
उम्मीदें हैं उनको तुम्हारी
पूरी उनको तुम्हीं करोगे
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Saturday, November 23, 2019
आज राजस्थान के अखबार में प्रकाशित लेख किसानों के हित में
"धर्म संकट में किसान"
सदियों पुरानी बात है जिस तरीके से किसान अपनी खेती करते आए हैं लेकिन आज उन पर इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं।
जिससे मेरा दिल व्यथित हो उठा और मेरी कलम लिखने को रुकी नहीं और लिख दिया मैं सवाल करता हूँ सरकार से कि क्या किसान पहले अपनी पराली नहीं जलाते थे या बचे हुए अवशेषों को नष्ट नहीं करते थे क्या जो आज इन पर प्रदूषण फ़ैलाने का एक अपराध उन पर किया जा रहा है जबकि मेरा मानना ये है कि साहब!
ये प्रदूषण तो अमीरों की दिवाली से छाया है !
और इल्ज़ाम किसानों की पराली पर आया है !!
आप ही सोचे शहर में तो किसान अपनी पराली जलाने जाते नहीं हैं जिससे कि शहर में प्रदूषण फ़ैल व बढ़ रहा है फ़िर अगर खेतों से बना प्रदूषण शहरों में पहुँच सकता है तो क्या शहर का प्रदूषण जो शहर के बड़े -बड़े कारखानों की चिमनियों से निकलता है वो क्या किसानों की फ़सलों पर दुष्प्रभाव नहीं डाल रहा है जिससे किसानों के फ़सलो की पैदावार घट रही है। और हर फ़सलें कोई न कोई रोग से अवश्य ग्रसित हो रही हैं फिर भी
किसानों की पैदावार की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया कि आखिर क्यों ये सब हो रहा है, लेकिन उनकी पराली को लेकर उन पर दोष मढ़ा जाने लगा कि ये प्रदूषण सिर्फ़ किसानों की देन है और आनन-फ़ानन में उनपर जुर्माना भी लगाने का नियम लागू कर दिया गया। जबकि राजनेता कितने नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं फ़िर भी उनपर कोई जुर्माना का नियम नहीं पास किया गया न ही कोई दण्ड दिया जा रहा क्योंकि वो सत्ता में आसीन हैं आखिर ये दुघाती नहीं तो और क्या है किसानों के द्वारा नियम को तोड़ने पर 2 एकड़ की पराली पर ₹ 2500/ और 5 एकड़ पर ₹ 5000/ और इससे भी ज्यादा एकड़ की पराली पर 15000-25000 ₹ का जुर्माना पास कर दिया गया लेकिन ये नहीं सोचा सरकार ने कि इस साल अधिक बारिश की वजह से फ़सले 75% नष्ट हो गई हैं अगर वो जलाए न तो क्या करें जब उसमें लागत व मज़दूरों की मज़दूरी भी नहीं निकल रही है फ़िर वो ये जुर्माना कैसे भरेंगे या सरकार के डर से नुकसान को भूल जाएं और घर से पैसा लगा कर पराली को एकत्रित करें ।
ये बहुत बड़ा धर्म संकट है किसानों के सामने जिससे वो कैसे उबरे l
एक बात और अगर किसानों की पराली से ही प्रदूषण फैल रहा है तो फ़िर किसानों के क्षेत्र यानी उनके गांवों में प्रदूषण क्यों नहीं दिख रहा है ।
लेखक/कवि
शिवम अन्तापुरिया
छन्द चाटुकारता
जो दिन रात रहते हैं
चाटुकारिता के बस में
उनको तो न्याय में
भी अन्याय चाहिए,
सच का लिबास
ओढे रहते हैं झूठवादी
उनको तो प्रकाश में
भी अंधकार चाहिए,
बात हो भले ही
अपने देश की
मगर उनको तो
हर जगह सियासत
का खेल चाहिए,
हम तो कहते हैं अब
निडर होके अब
ऐसे झूठे देशभक्तों
को मौत देनी चाहिए,
शिवम अन्तापुरिया
सियाचिन में जवान शहीदो को समर्पित
विनम्र #श्रद्धांजलि 💐🇮🇳🙏
#सियाचीन के #बर्फीले #तूफान से लड़ते हुए हमारे जवान #शहीद हो गए, बहुत ही #दुःखद 🙏 कानपुर सिकन्द्रा से #शिवम_अन्तापुरिया अपनी #पंक्तियों से अपने जवानो को #विनम्र #श्रद्धांजलि 💐🇮🇳🙏
लोग घर में रजाई थे ओड़े पड़े
वो सियाचिन में आंखे थे खोले खड़े
वो तो शहीद शान से हो गए
वो तो भारत के अनमोल सम्मान थे
वो तो बर्फ़ो की चट्टानें पिघला गए
बर्फ़ जमती रही वो पिघलते रहे
दिल के अरमान तूफ़ाँ से लड़ते रहे
भारत माँ की गोद में हैं सो गए
#शिवम_अन्तापुरिया
#शहीदों के प्रति नम आँखों से #श्रद्धांजलि अर्पित करता है 💐
🇮🇳💐🇮🇳-------->
"
किसी और के
"किसी और के"
हम चाटुकारिका हैं करते नहीं
जिन्दगी ये है अपनी
कोई गैर की नहीं
वो होंगे जो इशारे
पर तुम्हारे चलते होंगे,
हम नहीं हैं कठपुतली
कोई लकड़ी की
जो नाचे हम तुम्हारे
इशारे पर उंगली की
देश के समाज को जो
खोखला हैं कर रहे
वो दूसरों के पैरों में
सुशोभित खुद को कर रहे
काम सब वो कर रहे
इशारे किसी और के
रचे उत्पात सारे उनके
सिर रखे जाते किसी और के
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Friday, November 22, 2019
तेरे काबिल नहीं
ये मोहब्बत शिवम तेरे काबिल नहीं...
लोग करते हैं सज़दा होते शामिल नहीं...
जिन्दगी अब वज़ह बेज़ह है बनी ...
प्यार करके उसे चैन मिलती नहीं...
Thursday, November 21, 2019
सर्दी की बात
"सर्दी की बात"
कट-कट-कट-कट
बज़ते दाँत
करने न देते हैं बात
ये तो है
भाई सर्दी की बात
अब तो हैं सर्दी के राज़
इनसे लड़ने की न
करना बात
कहीं मचा न दे ये उत्पात
कहीं कोहरा का है बवाल
कहीं है जनजीवन बेहाल
गाँव-शहर के गलियारों में
चलती बस सर्दी की बात
ऊनी और मखमली कपड़े
देते हैं सर्दी को दाद
भैया ये तो है सर्दी की बात
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
खत्म संकल्प-प्रतीक्षा
"खत्म संकल्प-प्रतीक्षा"
कब तक भारत की माताएँ
पीढाओं को सहती जाएंगी
होते उनपर अनाचारों को
अनदेखा वो करती जाएंगी
बहुत हुए संकल्प-प्रतीक्षा
अब वो न रुकने वाली हैं
ईटों के जवाब अब वो
पत्थर से देने वाली हैं
ये भरत भूमि है भारत की
जो नारी शक्ति कहलाती है
हिल जाते हैं पैर सभी के
जब वो लक्ष्मी, अवन्ती,
अहिल्या बनकर धरती
पर अपना साहस
दिखलाती हैं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Saturday, November 16, 2019
उठे जो हाथ हैं
"उठे जो हाथ हैं"
पुरानी परम्परा को
जिन्दा रखना मेरा
रिवाज़ है
खुशियों का इज़हार
करना होता नेग है
रिश्तों को मजबूत
अगर रखना है
तो लोक रिवाज़ को
जीवित रखना है
किसी की मदद को
उठे जो हाथ हैं
उन्हीं को प्यार से नाम
देते हम व्यवहार हैं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
घट गया पौरुख
"घट गया पौरूख"
वो सफ़र था सुहाना
जब शरीर में भरपूर
चेतना थी हमारे
घट गया है पौरुख
ये शरीर हुआ अब
तुम्हारे हवाले ।
डर लगता है बुढ़ापे से
दबा दबा सा रहता हूँ
कहीं बुढ़ापा बिगाड़ न दें
ये नए खून के दीवाने ।
आजकल बुजुर्गों के हाल
बद से बदतर हो जा रहे हैं
दुतकारते हैं बेटे माँ-बाप
को ऐसे परिणामों का डर
पल रहा है दिल में हमारे ।
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
उठे जो हाथ हैं
"उठे जो हाथ हैं"
पुरानी परम्परा को
जिन्दा रखना मेरा
रिवाज़ है
खुशियों का इज़हार
करना होता नेग है
रिश्तों को मजबूत
अगर रखना है
तो लोक रिवाज़ को
जीवित रखना है
किसी की मदद को
उठे जो हाथ हैं
उन्हीं को प्यार से नाम
देते हम व्यवहार हैं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
बात अपनो की
बात अपनों की तादाद बढ़ जाएगी
बात मंदिर-मस्जिद की आ जाएगी ।
बीच में ये सियासत जो आती रही
बात हिन्दू-मुसलमाँ पे रूक जाएगी ।।
शिवम अन्तापुरिया
Saturday, November 9, 2019
गुणी विज्ञान है
"गुणी विज्ञान है"
बाल मन बाल हठ को
पहचानना मनोविज्ञान है
बाल बच्चों के दिमाग में
बस रहा है विज्ञान है
बाल मन की बाल उम्मीदें
छू रहीं आसमान है
इन उम्मीदों से ही आता
जमीं पर आसमान है
बाल मन की कुछ आदतें
कर रहीं हैरान हैं
क्या पनपतीं हैं सभ्यताएँ
समझ सके जो इसे वही
गुणी विज्ञान है
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Friday, November 8, 2019
सुर्ख आते रहे
सुर्ख आते रहे, सुर्ख जाते रहे
हम जहाँ थे वहीं,मुस्कुराते रहे
©® शिवम अन्तापुरिया
ख्वाब हैवान थे या नशेवान थे
जिन्दगी के सबब से परेशान थे
देखकर हाल उनका तो ऐसा लगे
वो तो इन्शानियत के सैतान थे
शिवम अन्तापुरियाख्वाब हैवान थे या नशेवान थे
जिन्दगी के सबब से परेशान थे
देखकर हाल उनका तो ऐसा लगे
वो तो इन्शानियत के सैतान थे
शिवम अन्तापुरियानौका मध्य धार में
और उसपार तुम हो
मिलन है अधूरा
कैसे मिलन हो
भंवर बीच फंस गई
है कस्ती हमारी
कोई न खेवाईया
आसरा अब तुम्हीं हो
शिवम अंतापुरिया
बदले नियम
"बदले नियम"
उम्र बढ़ती गई और बदल गए नियम
भाई भाई न समझे ये हैं नियम
था जमाना कि एक साथ खाते थे हम
सोच में अब तो सबके जहर घुल गया
तन्हा-तन्हा से अब तो रहते हैं हम
याद उनको आती नहीं या सताती नहीं
ये सोचकर है मुझे नींद आती नहीं
वो जिंदगी के जख्म बन चुके हैं अब
नासूर बनते उन्हें देख सकते नहीं हम
शिवम अन्तापुरिया
डुबाया किसने
"डुबाया किसने"
विचरण है ये विहंगम है
रात दिनों भर बहती रहती
यही है प्रेम का संगम है
कल-कल छल-छल
करती बहती रहती कभी
न रुकना ही जीवन है ।
पावन जल अर्पण करना
ही दुनियाँ को ये मनोरम है
जो रिश्ता है रात से इसका
वही रिश्ता दिन से हरपल है ।
नदी को है डुबाया किसने
पानी को है भिगाया किसने
दुनियाँ की हर बुराई को लेकर
पानी रहता सदा ही निर्मल है ।
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Wednesday, November 6, 2019
दैनिक जागरण अखबार में प्रकाशित मेरी रचना
समस्याओं ने मुझे
इस भाँति घेरा
रात सा दिन हो गया
शाम सा लगने
लगा सवेरा
न डरा और न रुका
मैं चल दिया हूँ
उससे लड़ने अकेला
थामा जो साहस का दामन
तो बढ़ गया
हौंसला फिर मेरा
कील कंकड़ पत्थरों ने
रोकना चाहा मुझे
रूक सका न मैं कहीं
मैं डरा अंधकारों से नहीं
हो गया है कारगर
जब सारी दुनियाँ से
हूँ जंग मैं लड़ा अकेला
साथ हैं अब भी मेरे
समस्याएँ जैसे
मानों उन्होंने ही
हो पाला मुझे
लगकर गले चल
रही हैं ऐसे
मानों अपना ही
घर समझा है मुझे
रचयिता
कवि शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
साहित्य संगम संस्थान पर प्रकाशित
फ़िल्मो में आजकल
अश्लीलता आ गई
लाज़,इज्ज़त सब
बँध कर रख गई
फिल्मों में सारी
हदें पार हो गई
मर्यादाएँ सारी
खण्डित सी हो गई
लोग करने लगे
फुल्लहड़ गीतों
का भरोसा
ज्ञान की गीता
बंद रखी रही
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
मेरा सातवाँ सम्मान
singing star समूह में हुए कवि सम्मेलन में मुझे ये सम्मान से सम्मानित किया गया जो कि मेरा सातवाँ सम्मान है
गीत ~लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
" गीत "
लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
जिंदगी फ़लसफ़ा,चलती जाती सदा
लोग मौकों पर,इरादे बदल लेते हैं
लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
हम इरादों से अपने, न पीछे हटें
लोग डरते हैं,वहाँ हम लड़ लेते हैं
लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
कुछ इरादे सबब में हैं पिघले हुए
हम बरफ़ की तरहा जम लेते हैं
लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
"लिखकर भूल गए"
"लिखकर भूल गए"
याद में तेरी बहुत
कुछ लिख डाला
मगर भेजने से ही
पहले जला डाला
तेरे प्यार में हमने
बहुत जख्म पाए
जिनपर आज है
हमने पर्दा डाला
दूर-दूर तक खोजा
है तन्हाई में ढूँढा
जिसने है फिर मेरे
जख्मों को कुरेदा
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
"तुम मिले तो"
"तुम मिले तो"
मिले तुम जहाँ पर
सफ़र एक नया
शुरू हो गया
मिलन हम दोनों का
एक पर एक ग्यारह
सा हो गया
हम एक अकेले थे
तुम मिले तो
मेरा प्रभाव दस
गुना सा हो गया
बिना इज़ाज़त के
तुम्हारे अब तो चलना
मुश्किल हो गया
नए मिलन से तुम्हारे
नए लक्ष्य से
मुकाबला हो गया
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
"गुमशुदा हो गए"
"गुमशुदा हो गए"
बिन कहे चल दिए
वो प्यार के रास्ते
बन गए अनकहे
रिश्ते प्यार के वास्ते
नाम दे न सके
ऐसे रिश्ते बने
चलते हुए अजनबी
पथिक हम बने
गुमशुदा वो हो गए
रिश्ते की राह में
बाद वर्षों मिले तो
वो शादीशुदा हो गए
नाम देने से पहले
वो बेनाम हो गए
हम अधूरे-अधूरे
से पैगाम हो गए
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
जख्म भर जाएंगे
गज़ल
"जख्म भर जाएंगे"
प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।
प्यार की राह में, हम भटकते रहे
प्यार ही प्यार में,हम तड़पते रहे
जख्म लाखों मिले वो भी भर जाएंगे
प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।
हम उसी राह पर हैं,अब भी खड़े
दिल हमारे-तुम्हारे, फ़िर से मिल जाएंगे
प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।
याद ही याद में उनकी यादें बनें
बिन तेरे प्यार में हम बिखर जाएंगे
तेरे खातिर हम जग उलझ जाएंगे
प्यार से देख लो, जख्म भर जाएंगे ।
जख्म भर जाएंगे, या उभर जाएंगे ।।
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
संवेदना का अकाल
विषय -संवेदना का अकाल
वो हर ओर नज़र आते हैं
संवेदना व्यक्त करते जाते हैं
संवेदनाएँ कम पड़ती जाती हैं
इतने संवेदना के अवसर आते हैं
सड़क,चौराहे,गलियारे पर भी
संवेदनाओ के अम्बार नज़र आते हैं
कैसी दुर्दशा हो रही देश की
इसके अन्ज़ाम नज़र आते हैं
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
प्यार की भूमि वर्षों से सूखी पड़ी..
प्यार की भूमि वर्षों से सूखी पड़ी...
फसलें उगती नहीं भूमि बंजर पड़ी...
प्यार में थी तेरे उऱर्वरा की कमी...
फिर क्यों कहते हो खेती से उन्नत नहीं
पल भर ही मैं लिखता हूँ...
कुछ ऐसी मेरी
कहानी है...
आँख उठाकर देखो तुम...
तो दर्द से सजी कहानी है...
शिवम अन्तापुरिया
अधूरा इश्क है तेरा
हमारा नाम लो चाहें
मैं तुझसे हार करके भी
तुझको हार पहनाऊँ
कोई चाहत में मुझको
खोजकरके
गुम हो जाता है
मैं हूँ प्रेम का तिनका
प्रेम में बहता जाता हूँ..
इश्क के हिस्से में उनके हिस्से बनें
आजकल प्यार के मेरे किस्से बनें
छोड़कर मुझको कैसे जाओगे सनम
प्यार के हम तुम्हारे सितारे बनें
लोग अक्सर वहाँ,पर छोड़ देते हैं।
सारे रास्ते जहाँ,से खतम होते हैं।।
मन्ज़िल अपनी चलने कोई और नहीं आयेगा
इस दुनियां में गिराने वाले बहुत हैं
उठाने कोई नहीं आयेगा
प्यार की भूमि वर्षों से सूखी पड़ी...
फसलें उगती नहीं भूमि बंजर पड़ी...
प्यार में थी तेरे उऱर्वरा की कमी...
फिर क्यों कहते हो खेती से उन्नत नहीं
शिवम अन्तापुरिया
खिल गए
"खिल गए"
कुछ पल बीते
कुछ लब बीते
बीत गई अब
वो सारी जीतें
बीती रात आज
फ़िर वो थी
खिल गए वो
जैसे कमल दल थे
उनके भी चेहरे
आ खिल गए
जिनके माथे पर
बनी सिलवटें थी
खुशहाल माहौल
था जब घर में
तब उसने दस्तक दी
स्वागत के खातिर
उसके न्योछावर सारे
कमल दल थे
रचयिता
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
Saturday, November 2, 2019
उनकी पहचान थे
"उनकी पहचान थे"
साथ के सफ़र में हम
उनसे अनजान थे
प्यार की राह में हम
उनकी पहचान थे
चलते चलते वो
चलते गए
हम यादों में उनकी
बसते गए
साथ जीने-मरने
की उम्मीद लेकर
साथ उनके कदम
हम भी रखते गए
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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