Tuesday, September 10, 2019

देख कर

सस्ती होती शोहरते गर इस जमाने में
लोग लिए फ़िरते शोहरते हर घराने मेंजरूर आऊँगा हाथों में लिए
तेरे वो खत सारे
जो तूने भेजे सज़ा कर मेरे लिए
बहुत सारे प्यारे सितारे

मुझे हजारों की ज़रूरत कहाँ
रहते हैं हम अकेले कहाँ
अनगिनत हैं मेरे आलोचक
  जिनके निशाने से हम
      बचते हैं कहाँ


आजकल चल रहें हैं कुछ
    ऐसे पथों पर
जिनकी मन्ज़िल कहाँ
जिसकी खबर भी नहीं है
मगर चलने में कम नहीं है
हजारों कंकड़ों ने आकर
रोका मुझे, मगर हम बेहद
जिद्दी हैं
उसके कहने से
हम रुके ही कहाँ पर

देख देख कर मुझे कहाँ रंग चढ़ता है,
हम तो वो बेरन्गी दुनियां में जीते हैं,
जिसमें कभी रंग नहीं चढ़ता है
शिवम अन्तापुरिया

बारिश भी गुस्ताखियाँ किया करती है ।
हर पल में अपने चेहरे बदला करती है।।
...??

No comments:

Post a Comment