देख देख कर मुझे कहाँ रंग चढ़ता है,
हम तो वो बेरन्गी दुनियां में जीते हैं,
जिसमें कभी रंग नहीं चढ़ता है
शिवम अन्तापुरिया
वो खूबसूरती ही क्या जिसमें गुण ही न हों,,
वो जिंदगी ही क्या जिससे दुनियाँ में नाम ही न हो,,
"हार नहीं चाहिए"
जिंदगी बहती हुई धारा है
जो रुकनी नहीं चाहिए
जिंदगी में कितने भी स्पीड
ब्रेक लगे मगर थमनी
नहीं चाहिए
भले ही मौत से लड़नी
पड़े जंग फ़िर भी मुझे
मौत से हार नहीं चाहिए
कोई गर बांध भी
दे लगा जिन्दगी में
करने रोकने का
साहस लगे
तेज धार बन फाड़
दो उस बांध को
क्योंकि जिंदगी में
बांध किसी का
स्वीकार करना
नहीं चाहिए,..
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
मरने के बाद ही सँभलते लोग हैं।
लेकिन हकीकत तो ये है
मरना चाहता कौन है।।
~ कवि शिवमयादव जख्म
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