Monday, September 2, 2019

ख्वाबो का जिकर, बलिदान

"बलिदान"
छिड़ गई बहस अब बन्द नहीं होने वाली,
गीदड़ दें धमकी ये पीढी नहीं सहने वाली,
हो गई थी जो भूल पहले
अब वो भूल नहीं होने वाली
ये भरत भूमि की मिट्टी है
जो बदनाम नहीं होने वाली
पैदा होते आए हैं इस मिट्टी में
शूर,वीर, महा बलिदानी
जिनसे ये भूमि सुनसान नहीं होने वाली
अब भी नहीं रुका जो तू दुश्मन
तो तेरी अब जान नहीं बचने वाली

       - शिवम अन्तापुरिया

गज़ल
"ख्वाबों का जिकर"

लिखकर तूने मेरे ख्वाबों का जिकर ...
साबित था किया तुझको रहती है मेरी फ़िकर ....
रात को सोने से पहले मैं बड़ी देर तक जागा
तेरी यादों का था ये कैसा असर
हैं हमारे-तुम्हारे अब दुश्मन भी ज्यादा
तभी लोग शायद मुझपे रखतें हैं ज्यादा नज़र ...
आज देखा था इक,बहुत हशीन चेहरा
नहीं है पता क्यों ,मिलाए था नज़र से नज़र ...
लिखकर तूने मेरे ख्वाबों का जिकर
साबित था किया तुझको रहती है मेरी फ़िकर...

युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
  उत्तर प्रदेश

हजारों शामें भी साहब!सुबह में तब्दील होती हैं ...
मुसीबतें कितनी भी हों यारों एक दिन फेल होतीं हैं ...

शिवम अन्तापुरिया

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