गज़ल
"ख्वाबों का जिकर"
लिखकर तूने मेरे ख्वाबों का जिकर ...
साबित था किया तुझको रहती है मेरी फ़िकर ....
रात को सोने से पहले मैं बड़ी देर तक जागा
तेरी यादों का था ये कैसा असर
हैं हमारे-तुम्हारे अब दुश्मन भी ज्यादा
तभी लोग शायद मुझपे रखतें हैं ज्यादा नज़र ...
आज देखा था इक,बहुत हशीन चेहरा
नहीं है पता क्यों ,मिलाए था नज़र से नज़र ...
लिखकर तूने मेरे ख्वाबों का जिकर
साबित था किया तुझको रहती है मेरी फ़िकर...
युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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