अब न्याय भी न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहा है,
ऐसा भारत में देखना कोई आश्चर्य की बात नहीं है,
क्योंकि न्याय के साथ जो अन्याय हो रहा है उसकी असली वजह सिर्फ ये है कि इसमें भी राजनीति का दखल होने लगा है,
और ये सब नेताओं की अपनी अपनी तानाशाही पर निर्भर करता है कि कौन कितनी तुर्रश के साथ लोकतंत्र पर अपना रूआब जमाता है और वो भी सिर्फ़ो सिर्फ अपने जीवन को विलाशता पूर्ण जी सकें,
मैंने कई न्यायाधीशों के अनुभव और तजुर्वों को देखा, समझा और उनसे पूछा भी है,
तब ये लिखा है
रही बात बात का बतंगढ बना कर किसी भी आम आदमी पर केश दर्ज करवा दिया जाता है जिसको पढ़ते ही जज साहब! समझ जाते हैं लेकिन उनकी भी बेबशी होती है जिसके चलते बेबुनियादी मुकदमा को भी चलाते रहते हैं,
यहीं एक तरफ ऐसा भी होता है कोई अपने स्वार्थ मात्र के लिए किसी बेगुनाह को गुनाह साबित कर दिया जाता है
जो बेचारा लाचार, असाह सा महसूस करता है
अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए वो मोटी रकम के बदले मुकदमा वापिस भी लिया है,
क्योंकि वो बेचारे के पास रूपये देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता है,
क्योंकि?
जज साहब भी मानते हैं कि विक्टिम द्वारा लगाए गए सभी आरोप हमेशा सत्य ही नहीं होते हैं
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