Tuesday, January 22, 2019

आजकल के लङकों पर व्यंग्य

आजकल के लङके माँ-बाप को छोङकर
प्रेमिकाओं की सेवा करने लगे,
लङकियों ने दो लब्ज प्यार से क्या बोले
खुद को पत्नी महसूस करने लगे,

आजकल के लङके खुद को पत्नी महसूस करने लगे...

माँ-बाप की सेवा का फर्ज भूले
लङकियों पर जान न्योछावर करने लगे

खुद पर खुद का अधिकार न रहा
खुद को लङकियों की प्रापर्टी समझने लगे,

आजकल के लङके खुद को पत्नी महसूस करने लगे...

बंदरगाहों पर मिलते बादलों की तरह
चंद प्यार को दिन के तारे समझने लगे,

आजकल के लङके माँ-बाप को छोङकर प्रेमिकाओं की सेवा करने लगे...

बदला जमाना रो रोकर लङकियों से मिन्नतें
लङके माँगने लगे..
न जाने क्यों वो लङकियों को
प्यार का देवता समझने लगे

आजकल के लङके खुद को पत्नी महसूस करने लगे...
लेखक-
~ शिवम यादव अन्तापुरिया  पुत्र रामप्रसाद सिंह "आशा"

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