" पत्थर दिलों की यादें "
मुझे वक्त याद आया
पत्थर बना रहा हूँ
उन जख्मों वाले घावों
पर मरहम लगा रहा हूँ
मेरा तर बतर ये होना
मेरे जीवन की है ये गवाही
छाँव के नीचे धूप से
मैं पिघला जा रहा हूँ
उम्मीद की वो राहें
छूटी नहीं हमसे
तेरी यादों में अब तक आशूँ
बहा रहा हूँ
तेरे कहे वो लफ्जों को
अपने होंठों से भुला रहा हूँ
मुझे जोङ करके
तोङा उनको...
वही भुला रहा हूँ
इतना भी याद रखना
जो प्यार था मेरा झूठा
तो अब तक खुद को
क्यों रूला रहा हूँ
प्यार के शहर में रहकर
अब नफरत जगा रहा हूँ
बिछङे पत्थर दिलों की
यादों में
अन्तापुरिया
नवगीत लिखा रहा हूँ
अन्तापुरिया
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