मैं लङते-लङते मर जाऊँगा
लेकिन शीश नहीं झुकाऊँगा
चाहें भले ही मौत से ही
क्यों
न हो मेरा सामना
हँसते-हँसते उससे भी
उलझ जाऊँगा,
चाहे कुछ भी मुझे करना पङे
तिरंगा के कफन पर ही
अपना नाम लिखाऊँगा,
चाहें जीत की दहलीज हो
या मौत सरहद पार हो
मगर तिलक भारत की
मिट्टी का ही लगाऊँगा,
चाहें दुश्मन की
गोली का निशाना हो
या मौत को गले
लगाना हो
हूँ नहीं मैं लौटने वाला
चाहें लाखों जख्मों से
मेरा सामना हो
क्यों न आया ऊपर से
पर परवाना हो
~ शिवम अन्तापुरिया "निर्मोही"
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