I am a Poet & Writer . मैं काव्य-संग्रह और मुक़्तक लिखता हूँ I मुझे लिखने में मज़ा आता है , धन्यबाद I
Thursday, October 31, 2019
नज्म
कलम की पतवार हो
दिल के करीब
Wednesday, October 30, 2019
Tuesday, October 29, 2019
किस किस को सुनाए
मुझसे badmaashiya
हिन्दी साहित्य अँचल मंच से शिवम अन्तापुरिया को सम्मानित किया गया
पराए हो गए
शिवम अन्तापुरिया साहित्यक लेफ़्टिनेन्ट अवार्ड से सम्मानित (मेरा पाँचवा सम्मान)
लोग प्यार से प्यार करते हैं फ़िर मौत से क्यों डरते हैं
Sunday, October 27, 2019
27/10/2019 दीपावली
दीपावली 27/10/2019
राम राज लाने के चक्कर में
लेख
योगी जी
राम राज के चक्कर में
Thursday, October 24, 2019
शायरी 23/10/2019
Friday, October 18, 2019
दो कविताएँ 1-आहुति देकर, 2-सत्ता रुढी खानों में
प्रेम की कविता
jio to jio
मुझसे जले जो
पतिव्रत
करवा चौथ
Tuesday, October 15, 2019
लाचार किसान
कवि ने बरसते पानी को देख जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और किसानों की फ़सलें जो बर्बाद होती जा रही हैं इन सब स्थितयों को देखते हुए लाचार किसानों की पीड़ा सबके सामने लाने की कोशिश की है और पानी से रूकने की गुहार लगाई है।
"लाचार किसान"
बरश रहा है देख रहा है
बादल धरती वालों को
है परेशान किसान देश
के कैसे बचाए अपने
अनाजों को...
कभी तेज है कभी मन्द है
करता अपने फ़ब्बारों को
रिमझिम-रिमझिम बूँदे बरशे
सूरज को भी ढाँके है
कैसे बच पायेगी फ़सलें
वो असहनीय पीड़ा देता
किसानों को....
अपनी तड़-तड़ की आवाजों से
जिस ओर नज़र जाती है
उनकी बादल घिरे ही दिखते हैं
जरा सी राहत के खातिर
सूरज कहीं न दिखते हैं
पीढा़ उठती है मेरे दिल में
देख मजबूर-लाचार किसानों को...
हे! मेघराज़ अब रुक जाओ
पीड़ा समझो किसानों की
मेरा दिल भी व्यथित हुआ है
गलती गर हो गई हो उनसे
तो अब माफ़ कर दो किसानों को
रचयिता -
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
+91 9454434161
कर्मभूमि
चलना तुम्हे है दुनियां तुम्हें चलाने नहीं आयेगी जब तक तुम उभरकर समाज से ऊपर नहीं आते और अपनी अलग पहचान नहीं बनाते
मनुष्य को अपने बारे में,
दुनियां के बारे में सोचने से कही ज्यादा अधिक सोचना चाहिए
कर्मभूमि और जन्मभूमि
जब मेरी हिन्दी ही है
इसलिए हर जज़्बातो में
मेरी आगे आती ही हिन्दी है
शिवम अन्तापुरिया
दूध वाला
"दूध वाला"
खड़ा होता है दर दर पर
होता है दूध वाला ।
सुबह-शाम पहुँचता है घर घर
रुकता हुआ भी डग-डग
होता है वो भी दूध वाला ।
कहीं लेने कहीं देने चलता
रहता है जो हर दिन
समझता है सभी का दर्द
होता है दूध वाले में मर्म
चिलचिलाती धूप में चलकर
कड़ाके की ठंड को सहकर
सभी को बाँटता फ़िरता ।
दूध अपना समझकर
सभी की बातें सुनकर
निकाल देता बस हँसकर
गरजते बादलों में चलकर
भिगा देता है खुद को
कपकपाते हाथों से जब
साधता है वो लीटर
छलकते देख लीटर को
रो उठा दिल मेरा
देख धरती पर बहते
दूध को
हिल गया दूध वाला ।
कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
बेचारा
"बेचारा"
मेरे हर ख्वाब को
उसने अपने दिल
में है पाला
करूँ क्या अब
इनायत मैं
अधूरा दिल
है बेचारा
सियासत के तूफ़ानों
में न देता कोई
है सहारा
चलो प्यार की राहें
देखें हम वो तड़पता
क्यों है बेचारा
कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश