हाँफ कर भी श्वाॅस लेता है
सब उगाकर भी
भूखा सोचता है,
मन उमङता है,
चिल्लाता है,
खुद को समझाता भी है,
क्योंकि सुनाने के लिए
कोई पास नहीं होता है
जिंदगी की दौङ में
दौङकर भी सबसे
पीछे रहता है,
हाँ हाॅफ कर भी श्वाॅस लेता है ।
पानी की जगह
तपती धूप में
खून को पसीना
बनाकर बहाता है,
जरा सी प्रकृति की मार में
वो अपने हाथों में
कुछ नहीं बचा पाता है,
हे भगवान! पूँछता हूँ आपसे
क्यों होती किसानों
की दुर्दशा है
जबकि सारा संसार
उन्हीं पर टिका है
हाॅफ कर भी श्वाॅस लेता है ।।
युवा लेखक/कवि
शिवम यादव अन्तापुरिया
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