गौरक्षा गौरक्षा का डंका पीटने वालों जरा इस ओर भी ध्यान दो,
बुलंदशहर जैसी घटना कोई अन्य स्थनों पर भी जन्म न ले ले इससे पहले इस पर अंकुश लगा लें,
कोई भी इतिहास को उठाकर देख लो राजा- महाराजाओं के पन्नों को खोलकर पढ लो
राजा विराट हो या राजा नल या श्रीकृष्ण का उदाहरण ले लो,
सभी के पास गायों के गौशाला थे
अब आज का इतिहास देखो
बात प्रदेश की हो या देश की
जो सत्ता में है वो ही प्रजा का राजा होता है
गौरक्षा का भाषण देने से पहले अपने आप में उस नेता या मंत्री को सोचना चाहिए कि खुद ने कितनी गायों को पाल रखा है या आवारा गायों का कोई अच्छा प्रबंध किया है जिससे न गाय को और न ही किसान कोई समस्या हो,
जबाव दो ! योगी जी, मोदी जी, मोहनभागवत
और आरएसएस वाले सिर्फ दिखावटी हाफ चड्डा पहने हुए हिन्दू धर्म की लत्तालतीफी ही करने में लगे हैं
गाय हमारी माता है, सब जानते है लेकिन जब आधुनिक युग में हर माँ को माँ होने का अधिकार व सम्मान नहीं मिल पा रहा है अपने पुत्रों द्वारा, तो गाय को कैसे मिल पाएगा
गाय गाय गाय पर तो सब डीगें मारते है कभी बछङों की तरफ भी ध्यान है कि नहीं
जब से योगी ने भैंसों की कटान पर रोक लगाई तब से बहुत परेशानी का सबब किसान झेल रहे हैं
मुझे जबाव दो राजा भी तो शिकार खेलने जाते थे तो क्या वो हत्या नहीं होती थी,
जबाव दो
अगर इतने ही दयालु हैं आप तो ये बताओ जो आपके गले में रैलियों में फूलों का माला डाला जाता है वो फूल भी तो सजीव होते हैं
अगर फूल के जीवों की जान को नजरअंदाज कर देते हो तो वैसे हर व्यक्ति की सोच अलग है अपने अपने दृष्टिकोण से काम करता है और मैं गायों और भैसों के कटान के पक्ष में तो नहीं कह रहा हूँ, लेकिन पुराने समय में देखो सारे राज्य के आवारा पशुओं का सटीक प्रबंध होता था और राजा का गौशाला भी, आखिर योगी आप तो पूरे यूपी के राजा ही हैं सारे आवारा पशुओं को अपना गौशाला बनवाकर उसमें रखो ,नहीं तो हर तहसील में मवेशी खाना खुलवा दो जिससे आवारा पशु उसमें रखे जा सके,
एक नजर यहाँ करें...
पहले पुलिस को देखकर लोग डरते थे आज नहीं डरते सीधे उलझ जाते हैं जान लेने और देने पर तुल गए हैं आखिर जो पुलिस अधिकारी मर रहें है उनके भी बच्चे पत्नी हैं आप रूपये ही दे पाएँगे न कि किसी का उजङा सुहाग आपके पैसों से खिल पाएगा, इसलिए बता रहा हूँ मर्यादा खतम हो रही जनता किसी से डरती नहीं क्योंकि अपना खून पसीने की कमाई खाती है,और चुनावीआपदओं से हैरान होकर ही वो ऐसा कदम उठाती है,
नेता जब मंच पर होता है तो लगता है इसके अंदर जनता के हित का टैरिफ डला है,
मंच से उतरते ही उसकी वैधता खतम सी हो जाती है,
जनाब जनता इसलिए गुस्से में नजर आती है,
आपने तो कह दिया कटान बंद,
ये बताओ
किसान पशुओं को लाभ के लिए ही रखता है जहाँ उसे लाभ न होगा तो वो उसको फालतू में बाँधकर क्यों चारा खिलाएगा,
बछङा बिचेगा नहीं तो वो रखेगा क्यों
आज आप जरा किसानों के खेतों का दौरा करके जरा देखें खेतों की हालात खस्ताहाल सी हो गई है???..
मेरी तो आँखें नम हो जाती हैं जब मैं उन आवारा मासूम से बछङे व छोटी सी बछिया को कङाके की सर्दी में ठिठुरता देखता हूँ तो कहीं उनके पैर टूटे और गर्मियों में प्यास से भी मरते देखा है क्योंकि उनको पानी कहाँ से मिले जब मैं इतना बङा 20साल को हो गया कभी यहाँ के नहर वबम्मा में लगातार 15 दिन भी पानी नहीं देखा है और यहाँ तक मैंने कई गाय, बछङों को अपने आँखों के सामने ब्लेड वाले तारों से कटती व कराह भरते हुई मरते देखा है
अब मेरे सहन के बाहर तब ये आज लिख रहा हूँ गुस्सा उनपर भी आता है जिन्होंने इन्हें छोङा है लेकिन
"मजबूरी व्यक्ति को मजबूर कर देती है"
ये मेरा मानना है
किसान छोङे न तो करे क्या चारा की भी तबाही चल रहीहै, और कोई इन्हें खरीदता भी नहीं है
आवारा पशुओं के बोल....
हम तो आवारा थे
आवारा ही हो गए,
पहले भूख मिटाने को जंगल थे
अब वो भी छिन गए,
प्यास मिटती नहीं,
भूख थमती नहीं,
और पास कुछ भी नहीं,
है तो एक छोटी सी 'जान'
जो तङप-तङप कर भी
निकलती नहीं!!
लेख:-
युवा लेखक/कवि/विचारक/चिंतक
शिवम यादव "अन्तापुरिया"
No comments:
Post a Comment