Tuesday, January 14, 2020

मुक्तक,छंद

" मुक्तक, छंद "

नित नित नए आयाम पर रहे पहुँच अब लोग 
क्या मुश्किल है सफ़र में 
न जाने सब लोग

जंग से जंग को जीत हम जाएंगे 
तेरी चाहत के दीपक भी जल जाएंगे 
ये समाँ आसमाँ मेरा क्या कर सकें
प्यार से हम तेरे जब निखर जाएंगे

बेमौसम बरसात 

आज फ़िर से वही है मिज़ाज़ तेरा 
ये किसानों के खेतों पे राज़ है तेरा 
ये तो गिरते उठते भी चले जाएंगे 
हर जगह अब अपमानों में जिक्र है तेरा 

मौसमों के जरा हाल मत पूछिए 
प्रकृति से करें क्या सवाल ये मत पूछिए
नेता खा हैं रहे सब किसानों का हैं     
और क्या ढाए है जुलम प्रकृति ये मत पूछिए 

ये प्यार मोहब्बत में मैने जो भी लिखा है 
वो कल्पनाए हैं 
संभावनाए नहीं 

साल बदला है शलीके नहीं बदले 
खर्चा वही रहेगा 
लोगों के तरीके 
नहीं बदले 


इश्क की दूरियाँ और अब बढ़ गईं 
तेरे होने न होने से क्या फ़ायदा 
जिंदगी से मेरी एक खफ़ा हो गई 
प्यार लाखों से करने से क्या फ़ायदा 

भारतीय सेना की हिम्मत क्या है पता है आपको 

जब चीन युध्द में सरकार सेना को रोटियाँ नहीं भेज पाई 
युद्ध लड़ा सेना ने गोली खाकर भूख मिटाई 
सेना की हिम्मत को तुमको सदा दाद देनी होगी 
घर में इकलौता पूत था जो उसने भी गोली खाई 

नई राहें,नई मंजिल 
अपनी राहें,अपनी मंजिल 



लाहौर में ननकाना साहिब गुरूद्वारे पर हमले का जवाब दिया दे रहा हूँ नापाक पाकिस्तान सुन 

तू कर रहा अधर्म के काम पाक हो नहीं सकता 
गर हम हुए गुस्सा फ़िर तू बच भी नहीं सकता 
बार बार की गलतियों से तंग आ चुका हूँ अब 
जो उठे हाथ मेरे तो पाकिस्तान बच नहीं सकता 

हमने वो मन्ज़र देखें हैं 
जो तुम देख नहीं सकते 
हमने वो खन्ज़र सहे हैं 
जो तुम सह नहीं सकते 
पाकिस्तान अब भी वक्त है
 सँभल जा हम वो हश्र करेंगे 
जो तुम देख नहीं सकते 


लखनऊ में हूँ आज इसलिए 
साहब! 
इस शहर में सबको जल्दी है शायद 
ये भूल रहे हैं जिन्हें जल्दी थी वो चले गए हैं शायद 

साहब !
प्यार को प्यार ही रहने दें 
धोखे से तलवार न बनने दें 


साहब! ये इश्क है इससे दूर ही रहा जाए ।
जिंदगी के साथ खिलवाड़ न किया जाए ।।

अरे कल्पना तेरी कल्पना क्या करूँ 
जिंदगी की हर मोड़ पर यारी 
करूँ
जिंदगी मौत से जूझे या फ़िर खत्म हो जाए 
मगर कल्पना से अब कल्पना क्या करूँ

मैं देख रहा हूँ तेवर भारत के इन गद्दारों के 
जो सीना छलनी करवाते हैं 
माँ भारती के लालों के 
कभी खड़ा किया होता अपना पुत्र सीमा पर 
तो गद्दारी बह गई होती तुम्हारे आँखों से 

शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश

No comments:

Post a Comment